उदयपुर,14 सितम्बर 2022 :उदयपुर के स्मार्ट सिटी लिमिटेड द्वारा करवाये जाने वाले काम की गुणवत्ता में हमेशा से प्रश्नचिन्ह लगता आया है। चाहे हेरिटेज संरक्षण का काम हो या सीसी सड़क अंडर ग्राउंड केबलिंग और पेयजल के काम हो। कहीं गुणवत्ता से समझौता हो रहा है तो कहीं काम मे देरी। मजे की बात तो ये कि स्मार्ट सिटी के जिम्मेदार अधिकारियों ने आज तक काम करने वाली फर्म पर प्रोजेक्ट में देरी को लेकर कोई जुर्माना नहीं लगाया है। फलस्वरूप काम करने वाली कंपनी अपनी मन मर्जी से काम कर रही है और उदयपुर की जनता को परेशान होना पड़ रहा है।
फिलहाल उदयपुर की सड़कों पर स्मार्ट सिटी द्वारा सीवरेज चैम्बरों के ढक्कन उदयपुर की जनता के लिए परेशानी का सबब बन गए है। ये ढक्कन सड़क लेवल से ऊँचे और नीचे होने के साथ ही अभी से जगह जगह टूटते भी दिखाई दे रहे है। इसके कारण दोपहिया वाहन चालकों को पीठ दर्द और अन्य रोगों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं लेवल सही नहीं होने से कई बार दोपहिया वाहन चालक सड़क पर वाहन फिसलने से घायल भी हो रहे है।
कहानी यही खत्म नहीं होती । उदयपुर नगर निगम के उपमहापौर ने स्मार्ट सिटी से शहर के तकरीबन 3000 सीवर ढक्कनों को बदलने को कहा है तो दूसरी ओर स्मार्ट सिटी के आला अधिकारी केवल 400 ढक्कन बदलने की बात कह रहे हैं। स्मार्ट सिटी के CEO प्रदीप सांगावत के अनुसार पहले सर्वे करवाया जाएगा और उसके बाद ज्यादा वाहन दवाब वाले क्षेत्र के 400 ढक्कन बदले जा सकते है। इसके अलावा शेष ढक्कन बदलने की जरूरत नहीं है।
दूसरी और उदयपुर के उपमहापौर पारस सिंघवी ने कहा है कि स्मार्ट सिटी द्वारा लगाए गए अधिकांश सीवर ढक्कन पूरी तरह घटिया है और अगर स्मार्ट सिटी ने ये सभी 3000 ढक्कन नहीं बदले तो विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। यदि सीवर ढक्कनों की क्वालिटी घटिया है तो केवल 400 ढक्कनों को बदलने की बजाय सारे ढक्कन बदलने चाहिए क्योंकि इन ढक्कनों की 3 साल वारंटी है।
ऐसे में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि सर्वे करवाने की जरूरत आन पड़ने से पहले क्या स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने सड़कों पर ऊँचे नीचे ढक्कनों का भान नहीं था या कभी सड़कों पर उतर कर इनको चेक भी किया गया अथवा नहीं? क्यों केवल ज्यादा वाहन दबाव वाले क्षेत्रों के ढक्कनों की ही बात की जा रही है जबकि क्वालिटी सभी जगह घटिया है। क्यों स्मार्ट सिटी के अधिकारी काम करने वाली फर्म का पक्ष लेकर जनता के साथ धोखा कर रहे है? अधिकारियों की जिम्मेदारी जनता के लिए है न कि किसी फर्म के लिए। ऐसा क्या कारण है कि जनप्रतिनिधियों के आग्रह को दरकिनार किया जा रहा है?
क्या कहती है पब्लिक
उदयपुर निवासी कपिल मुंदड़ा कहते है कि यदि काम की वारण्टी बाकी चल रही है तो संबंधित फर्म से घटिया सीवर ढक्कनों को हटाए जाने में कुछ अधिकारियों का पेट क्यों दुख रहा है? जनता के टैक्स के पैसे से होने वाले काम में ऐसी लापरवाही ठीक नहीं है। वहीं विनीत सिंह राजावत का कहना है कि जनप्रतिनिधि और जनता अगर घटिया ढक्कनों को बदलने की बात कह रहे है तो अधिकारियों को इसमें क्या परेशानी है? ये रिश्ता क्या कहलाता है?