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Udaipur / 1950 में कैसे लबालब पीछोले को बचाने तोडा गया,कैसे आयी बाढ़ उदयपुर में !

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News Agency India July 02, 2019 03:38 AM IST

1950 में कैसे लबालब पीछोले को बचाने तोडा गया,कैसे आयी बाढ़ उदयपुर में !

बात आजादी के बाद सन् 1950 के भादवा (भादों) महीने की है। महाराज प्रमुख महाराणा भूपालसिह जी सज्जन गढ़ मय जनाना और स्टाफ के साथ आठ दिवसीय केम्प के लिए गए थे।

इसी दौरान एक दिन अत्यन्त मुसलाधार बारिश आ ग‌ई। उदयपुर में चारो तरफ पानी ही पानी होने लगा। सवेरे छः बजे तक झील में पानी फेलने लगा। तब महाराणा के भरोसे मंद अधिकारी ने महल के उपर जाकर पानी देखा तो आशंका का आभास होते ही अधिकारी ने महाराणा को इत्तला करवा दी। महाराणा ने जब सज्जनगढ़ से दुरबीन से मुलाहिजा किया और फरमाया कि शहर के बारे में न‌ई सरकार जानती नहीं है। शहर को नुक्सान होने वाला है। अफसर को कहा जाकर कमीशनर को घटना में अवगत कराओ।

 

फिर अधिकारी कमीशनर को घटना के बारे में बताया गया। कमीशनर को गाड़ी में बिठाकर महल लाकर स्थिति समझायी गयी। जगनिवास और लेकपैलेस में दो दो फिट तक पानी भर गया। देखते ही देखते पानी इतना बढ़ गया कि बडी पाल से पानी छलक कर सड़क पर आने लगा। उसमें दरार पड़ गई और सड़क फट गई। अधिकारी ने तोपखाने के आफिसर को पहले ही बुला रखा था।

तब अधिकारी ने बताया कि चार तोप छुड़वा दो। ये एक संकेत है कि सुरजपोल की तरफ रहने वालें लोग ऊंचे स्थानों की ओर चले जाए। तब कमीशनर ने कहा में यहां ज्यादा वाकिफ नहीं हूँ और आप जो उचित हो वो करें। आप जिसे उचित समझे ,तामिल करवा दें। मैं हस्ताक्षर कर दुंगा। तब तोपखाना आफिसर तख्त सिंह जी साहिवाले को कहा कि एकलिंग गढ़ ईशारा कर दो और चार झण्डियां हिला दो। जैसे ही महलों से माछला मंगरा इशारा हुआ वैसे ही चार झण्डियों का संकेत पाते ही एकलिंग गढ़ से चार तोप के गोले दागे जिनके धमाके से शहरवासी सुरक्षित स्थान पर पहुंचने लगे। यह मेवाड़ का सुचना तन्त्र था। सज्जन गढ़ से महाराज प्रमुख भूपालसिह जी का दुरबीन से अवलोकन और महलों में सुचना देना। फिर महलों से माछला मंगरा इशारा तोप का छुटना और लोगों का तुरंत सचेत होना,मेवाड़ के समय के आपदा प्रबंधन को दिखाता है।

अब पीछोला के फाटक पुरे खोल दिये परन्तु पानी की निकासी कम हो रही थी। फिर महलों के नीचे अर्जुन खुर्रा है, उसकी दीवार तुड़वाई ग‌ई। जेठियो के अखाड़े वाली गली में पानी तीन तीन फिट था। जब अर्जुन खुर्रा तोड़ा गया तों पानी सुरजपोल होकर निकलने लगा। आयड में इतना पानी था कि लोगों के बंगलों में तीन तीन फिट पानी भर गया था। तत्कालीन डी आई जी गोवर्धन लाल जी शर्मा फतहपुरा चौराहे पर खड़े थे और पानी की निकासी देख रहे थे। डी आई जी बंगले से आदमी ने आकर सुचना दी कि आपके बंगले में तीन तीन फिट पानी आ गया है और बाल बच्चों को निकालने का प्रबंध करना पड़ेगा। जहां वर्तमान में रेलवे टेनिग स्कूल है ,वहाँ से फतहपुरा तक पानी भर गया था। तब डी आई जी ने फिल्ड क्लब से महलों में फोन करके कहा कि किसी प्रकार से हमारे बच्चों की सुरक्षा का प्रबंध करिये।

तब एक अधिकारी अपने घोड़े पर सवार होकर साथ चार घोड़े लेकर डी आई जी के बंगले जाकर नगर में एक सेठ था जिसका नाम मोचा सेठ था उसको फोन करके डी आई जी के बंगले पर उसकी लाईफ बोट मंगाई। पानी घुड़सवार के घुटने तक था। लाईफबोट में बिठाकर घोड़े के साथ बनेडे रावजी के बंगले के पास होते हुए फिल्ड क्लब में बाल बच्चों को छुडवाया।

धीरे धीरे तालाब में पानी कम होने लगा दुसरे दिन महाराज प्रमुख मय जनाना हाथिपोल के रास्ते मोटर सवार महलों में पधारे और बड़ी पाल का जायजा लेकर मरम्मत के लिए सम्बंधित विभाग को कहा।

बड़ी पाल के ठीक नीचे तली में समोर बाग के अन्दर एक पुतली लगी है जिसके हाथो में छोटी मटकी है। यह पिछोला का गेज बताती है। जैसे जैसे पिछोला भरता जाएगा ,पुतली की मटकी में पानी बढ़ता जाएगा और पुतली के कुण्ड में भरा पानी पिछोला का स्तर बताएगा यह दाब से चलती है और साथ ही पुरानी टेक्नोलॉजी का बेहतरीन नमूना है।

यह आंखों देखा हाल इतिहासकार जोगेंद्र पुरोहित के दादाजी की डायरी से लिया है और महाराणा भूपालसिह जी द्वारा यह कार्यवाही उन्हीं के निर्देशन में हुई थी। जहां जहां अफसर का नाम लिखा है वो इतिहासकार के दादाजी विश्वेश्वर नाथ पुरोहित है

इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित

शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)

Email:erdineshbhatt@gmail.com

 

नोट : उपरोक्त तथ्य लोगों की जानकारी के लिए है और काल खण्ड ,तथ्य और समय की जानकारी देते यद्धपि सावधानी बरती गयी है , फिर भी किसी वाद -विवाद के लिए अधिकृत जानकारी को महत्ता दी जाए। न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम किसी भी तथ्य और प्रासंगिकता के लिए उत्तरदायी नहीं है।


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