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उदयपुर हेरिटेज दरवाजों का इतिहास,तकनीक और सरकारी उपेक्षा !
झीलों के शहर को पूर्व के वेनिस दोनों के रूप में जाना जाता है। उदयपुर दक्षिण राजस्थान में पिछोला झील के तट पर एक आश्चर्यजनक स्थान पर स्थित शहर है। अपने लुभावने दृश्यों, राजसी महलों, विश्व स्तरीय संग्रहालयों और लक्जरी होटलों के लिए जाना जाता है। उदयपुर इतिहास में डूबा हुआ है। मेवाड़ के महाराणाओं की लगातार पीढ़ियों के लिए घर रहा है।
ये तो तब है जब विरासत की प्रचुरता होते हुए हम उदयपुर वालों सहित नगर निगम उदयपुर और स्मार्टसिटी उदयपुर विरासत संरक्षण के लिए कुछ खास नहीं कर रहे है। मजे कि बात ये कि विरासत और इतिहास जनता को पता नहीं और नाहीं नगर निगम उदयपुर और स्मार्टसिटी ने जागरूकता के लिए कुछ किया। उदयपुर शहर में 300 से ज्यादा विरासत (हेरिटेज) की प्राचीरें,मंदिर और इमारतें है जिनके बारे में प्रशाशन चिन्तित ही नहीं है। पुराना शहर अपने आप एक इतिहास है जिसे मॉडिफाइड कर होटल वालो ने तो संजो लिया है पर आम जनता और पर्यटक मेवाड़ के इतिहास और वास्तविक खूबसूरती से महरूम रह जाते है।
उदयपुर शहर पिछोला के पुर्वी किनारे पर उतर दक्षिण पहाड़ी के पार्श्व में बसा है। इसके उत्तर में समतल भूमि हैं जिसका विस्तार होता चला गया। राजमहलो के पास सभी सरदारों ,जागिरदारो ,उमराव, सेठों और अन्य समुदायों व जाति के लोग मोहल्ले बना कर रहते थे। पुराने कारखाने अर्थात औफिस महकमे शहर के अन्दर थे ,जैसे ऊंटों का कारखाना ,नाव का कारखाना ,फराशखाना ,देवस्थान ऑफिस ,कसोटी, कोतवाली ,मण्डी ,मोचीवाड़ा, तेलीवाड़ा, गानछीवाडा, वारिवाडा ,बोहरवाडी ,सिलावट वाडी, ये सब तेज़ी से उदयपुर में बसते चलें गए।उदयपुर एक परकोटे से घिरा हुआ था जिसमें कई द्वार (गेट या पोल ) थे और उनमे से कुछ मुख्य थे जिनका अपना इतिहास ,कहानी और महत्त्व है।
ये सभी वास्तु ,सुरक्षा और उदयपुर नियोजन को ध्यान में रखते हुए निर्माण किए गए। कुछ बुजुर्गो के मुंह से तो ये भी सुना जाता है कि पुराने शहर परकोटे के अन्दर कोई वास्तु दोष नहीं लगता जैसे कटोरी में से दाल फैलने की संभावना नहीं होती।
मुख्य रूप से सुरक्षा की दृष्टि से नगर के साथ साथ प्राचिर (शहर कोट) बनायी गयी और उसके आगे खाई खोदी गयी। इस खाई को पिछोला तालाब से एक नहर से मिलाया गया तथा इसमें मगरमच्छ जैसे जानवर छोड़े गए ताकि दुश्मन खाई को पार न कर सके। शहर में प्रवेश के लिए बारह पोल अर्थात दरवाजे बनाए गए। जिसमें से पांच सिंहद्वार थे और इनका नाम सुरजपोल, देहली गेट, हाथीपोल, किशनपोल और उदयापोल थे। जिसमें भी उदयापोल का नाम कमल्या पोल और किशनपोल का नाम कृष्ण पोल था। ये सभी मुख्य दरवाजे थे ,बाकि के सात दरवाजे सामान्य थे जिनका नाम ब्रहमपोल, चांदपोल, अम्बापोल, सिताबपोल, रमणापोल, हनुमान पोल, दण्डपोल।
ये सभी प्राचीर अधिकतम 10 मीटर ऊंची और और चार मीटर चौड़ी है। इनमे कुछ तो ध्वस्त हो चुकी है और कुछ दरवाजे अच्छी हालत में है जिनके संरक्षण की महती जरुरत है। प्राचीर के अवशेष दरवाजे के साथ दुधतलाई से जलबुरज मार्ग में है।कुछ रेल्वे स्टेशन के सामने है जहाँ कच्ची बस्ती सहित अन्य लोग इस प्राचीर को समाप्त करने पर तुले हुए है। माछला मंगरा पर जो एकलिंग गढ़ है उसको जोड़ती हुई प्राचीर (शहर कोट ) पिछोला तक जोड़ती है। यहां एक दरवाजा भी है जिसे पहले हनुमान पोल कहते हैं। वर्तमान मे इसे जलबूर्ज दरवाजा कहते हैं।
खाई और नहर शहर विस्तार के साथ खत्म होते चले गए। उनके स्थान पर नगर नियोजन के अनुसार बापू बाजार, अश्वनी बजार बन गए। कही कही बापुबाजार,देहली गेट में जो गोल बिल्डिंग दिखती है ,ये सभी नगर प्राचीर को गिराकर बनाई गई है जिन्हें व्यापारीयो ने खरीद लिया। बापु बाजार में शायद कहीं कहीं बरामदे नजर आते हैं बाकी सभी ने दुकानों की साईज बढ़ा ली। सुरजपोल दरवाजा और हाथीपोल दरवाजे मुख्य दरवाजे थे। बाहर से आने वाले इन दरवाजों के बाहर सराय में रुक सकते थे।
दरवाजा बन्द होने पर प्रवेश के लिए एक छोटा दरवाजा था ,वह भी उसी समय खोला जाता जब उदयपुर शहर से कोई व्यक्ति तस्दीक (पहचान )करता। दरवाजे को समय का पता माछला मंगरा स्थित एकलिंग गढ़ जो प्राचिर से जुड़ा था, तोप छुटने से समय पता लगता और दरवाजे बंद हो कर दिए जाते।
यह प्राचीर महाराणा करणसिंह जी ने सन् 1620 से 1628 के मध्य बनवाना शुरू की।लेकिन निर्माण अधुरा रह गया जिसे महाराणा संग्राम सिंह द्वीतिय ने पूरा करवाया। वर्तमान में किशनपोल, उदयापोल, सुरजपोल ,दिल्ली दरवाजा ,हाथीपोल ,चांद पोल ,अम्बापोल, ब्रहमपोल,जलबूर्ज,सिताबपोल, रमणापोल और दण्ड पोल अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। इनके इर्द गिर्द दूकाने बन गई है।
जो बचा है उसको संवारने के प्रयास की आवश्यकता है। सिटी स्टेशन के सामने धरोहर पर झोपडीया भारी पड़ रही है। रेल जब स्टेशन तक पहुंचती है तब सुन्दर परकोटे को देखकर विरासत संरक्षण की लापरवाही सबसे पहले पर्यटकों को नज़र आती है।
जलबूर्ज दरवाजा, जिसके दरवाजे नष्ट हो रहे हैं। इस दरवाजे की चौड़ाई, ऊंचाई और लम्बाई इसकी भव्यता और मजबुती का अहसास कराती है। क्या मजाल कि कोई दुश्मन आपके शहर में घुस पाता या कोई अपराधी बिना तस्दीक के प्रवेश कर पाता !
जयपुर जैसे शहर को जिसकी हेरिटेज इमारतें उदयपुर से काफी कम है,यूनेस्को द्वारा प्रमाणित और लिस्टेड किया गया क्योंकि जयपुर के अधिकारियों ने प्रयास किये। दुःख की बात तो ये की उदयपुर के नगर निगम ,स्मार्ट सिटी ,पर्यटन विभाग सहित किसी भी स्थानिय विभाग ने इस बारे में सोचा तक नही। उदयपुर की आर्थिक धुरी का आधार पर्यटन है। पर्यटक गुमराह हो रहे है। गाइड कमीशन खा रहे है।सच्ची ऐतिहासिक जानकारी खत्म हो रही। विरासत खत्म हो रही। इतिहास खत्म हो रहा।
इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
Email:erdineshbhatt@gmail.com