उदयपुर, 22 मार्च 2022 : स्मार्ट सिटी सूची में तीसरे स्थान पर होने के बावजूद, उदयपुर की झीलें संरक्षण के अभाव में टूटने के गंभीर खतरे में है क्योंकि इसकी जल संरक्षण प्रणाली की सदियों पुरानी विरासत सोचे समझे बगैर ध्वस्त किया जा रहा है। पुराने शहर की चारदीवारी में रहने वाले पुराने लोगों के अनुसार पीछोला की बड़ी पाल बांध की दीवारों पर दरारों से पानी रिस रहा है, जिससे हजारों निवासियों की जान जोखिम में है। इसके साथ ही चारदीवारी वाले शहर की झीलों और बांधों में और उसके आसपास गतिविधियां रोक के बावजूद बदस्तूर जारी है।
अपनी सुंदर जल संरक्षण और पारंपरिक जल प्रणाली ने यह सुनिश्चित किया था कि शुष्क महीनों के दौरान खूबसूरत झीलों में जल स्तर बहुत नीचे नहीं जाना चाहिए। साथ ही ये भी तय किया गया कि बड़ी पाल पर पीछोला बांध पर कोई निरंतर दबाव न हो और इस बांध पर कोई गतिविधि या निर्माण न हो। इसे सुरक्षा कारणों से और बांध की लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए बनाए रखा गया था। लेकिन अब, प्रसिद्ध पिछोला झील के सभी आउटलेट को अवरुद्ध कर दिया गया है और दूध तलाई और पिछोला झील जैसे जल निकायों के बीच दीवारें खड़ी कर दी गई हैं, जिससे पूरे वर्ष बांध पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे पीछोला बांध के फटने की संभावना बढ़ रही है।
पीछोला के साथ ही उदयपुर की अन्य झीलों की पिछले 50 वर्षों में बांध की मरम्मत नहीं की गई है। बार-बार मरम्मत के लिए अनुरोध और बांध पर गतिविधियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए जो इसकी सुरक्षा से गंभीर रूप से समझौता करते हैं, अधिकारियों / सरकारों को पत्र भीभेजे गए हैं लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। ये गतिविधियां कानून के प्रावधानों के खिलाफ भी हैं।
इससे पहले महाराणा महेंद्र ने भी झीलों में बारिश के दौरान पीछोला के उच्च जल स्तर को एक अदूरदर्शी कदम करार दिया और इसे पिछोला झील में जल स्तर को अस्वाभाविक रूप से ऊंचा रखने के लिए अधिकारियों के एक खतरनाक निर्णय के रूप में उद्धृत किया। हाल ही में उन्होंने उदयपुर की झीलों पर क्रूज टूरिज्म के विचार का भी विरोध किया था। हालाँकि इन मुद्दों के बावजूद भी पीछोला बांध को अभी भी लीक होते देखा जा सकता है, जिससे इसके टूटने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही झीलों पर नाव संचालन के लिए जेट्टीया भी लगायी है ,जो स्थानीय लोगों को लगता है कि यह अधिकृत नहीं है।
पीछोला का इतिहास,कब टूटा ? किसने बनवाया और कैसे बना इतना विशाल ?
महाराणा स्वरुप सिंह के समय पीछोला का पूर्वी बाँध टूट गया,उसको 1847 में दुबारा बनवा कर इस हिस्से का नाम स्वरुप सागर रखा गया। महाराणा सज्जन सिंह जी ने पीछोला के बीच के सारे बाँधो को एक साथ मिलाकर एक बड़ी पीछोला झील का रूप दे दिया। कुल मिलाकर समूचा पीछोला बांध/झील मिट्टी की फ़ीलिंग और मज़बूत दीवारों के बीच लाखों क्यूबिक घन मीटर पानी को आज तक रोक कर रखे है जो मेवाड़ी निर्माण कला की उत्कृष्ट्ता का अनुपम नमूना है।
पीछोला का निर्माण 1420 ईस्वी में महाराणा लाखा (लक्ष्य सिंह) ने किसी बंजारे से बँधवाया था। पीछोली गाँव की सीमा के पास होने के कारण झील का नाम पीछोला पड़ा। जब उदयपुर को राजधानी बनाया गया तब महाराणा उदयसिंह ने श्रेय लेकर वर्तमान बड़ी पाल को सुदृढ कर पीछोला को बड़ा करवाया।
बाद में महाराणा जगत सिंह प्रथम ,संग्राम सिंह द्वितीय ,भीम सिंह और जवान सिंह समय समय पर पीछोला में अलग अलग निर्माण करवा कर बड़ा और भव्य बनवाते रहे।
1765 में महाराणा भीम सिंह के समय भारी बारिश के कारण पीछोला बांध/झील टूट गयी और आधा उदयपुर शहर बह कर तबाह हो गया। वर्तमान कालाजी गोराजी सहित सूरजपोल,दिल्ली गेट और शहर के नीचले हिस्से पानी से डूब गए।
महाराणा जवान सिंह के समय फिर भारी बारिश के कारण पीछोला बांध को खतरा मंडराया तो महाराणा जवान सिंह ने अपने विवेक से पीछोला के किनारे एक बुर्ज जवान बुर्ज (जब्बल बुर्ज) बनवाया और इसके दूसरी ओर दिवार बनवा कर बीच में मिट्टी डाल कर इसे पाटा गया और इसका विस्तार बड़ी पोल तक किया गया। वर्तमान में यह हिस्सा जलबुर्ज से लेकर पिछोला की वर्तमान पाल (जो दूधतलाई के पास स्थित है ) से राजनिवास बड़ी पोल तक है। इसी दौरान महाराणा जवान सिंह की मृत्यु हो जाती है और बाद में महाराणा सज्जन सिंह जलबुर्ज से लेकर पिछोला की वर्तमान पाल पर दुबारा मिटटी डलवा कर पीछोला का सुरक्षित करवा देते है।
बड़ी पाल की लम्बाई 334 गज़ और 110 गज़ चौड़ाई है।
दूध तलाई,अमरकुण्ड ,रंगसागर ,स्वरुप सागर पीछोला झील के विस्तार का ही हिस्सा है। पहले पीछोला की सीमा केवल सिताब पोल तक ही थी और इसके आगे अमर चाँद बड़वा द्वारा बनाया गया अमर कुंड था और इसके चारो ओर पक्के घाट और फव्वारे लगे हुए हुए थे जिसे बाद में दक्षिण उत्तर दिशा के घाट को तोड़ कर महाराणा सज्जन सिंह ने इसे पीछोला में शामिल करवा लिया।
पीछोला की उत्तरी पाल पर ब्रह्मपोल और उदयपुर शहर के बीच बने पुल के नीचे से 320 साल पहले महाराज कुमार जय सिंह के बनवाये हुए रंग सागर में पानी आने लगा। अम्बावगढ़ का पश्चिमी हिस्सा कुमारया तालाब ,अम्बावगढ़ के नीच ओटे का हिस्सा भी रंग सागर का हिस्सा थे।
वही रंग सागर के उत्तर में स्वरुप सागर है जिसके पानी में कलालों का शिव मंदिर होने के कारण इसे कलाल्या शिव सागर भी कहते है। महाराणा स्वरुप सिंह के समय इसका पूर्वी बाँध टूट गया,उसको 1847 में दुबारा बनवा कर इस हिस्से का नाम स्वरुप सागर रखा गया। महाराणा सज्जन सिंह जी ने पीछोला के बीच के सारे बाँधो को एक साथ मिलाकर एक पीछोला का रूप दे दिया।
वर्तमान में फतहसागर झील का सीमांकन यहाँ के अधिकारियों की भूमाफिया से मिली भगत और उदासीनता के कारण छोटा होता जा रहा है। स्वरूप सागर की पाल पर तीन जगहों से लीकेज के कारण करोड़ों लीटर पानी प्रतिदिन नालियों में बह रहा है। गोवर्धन सागर झील की पाल कमजोर है ,लेकिन उदयपुर के अधिकारी और जनता खामोश है।