जहरीले साँपो औऱ खतरनाक जीव जंतुओं को रेस्क्यू करने वालो का जीवन और भविष्य असुरक्षित , सरकार से नहीं मिलता कोई सहयोग !
उदयपुर झीलों की नगरी होने के साथ ही अरावली के वन्य क्षेत्रों और वन्य जीवों से समृद्ध शहर है। यहाँ कई दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव पाए जाते है। उदयपुर में कई तरह के साँप भी पाए जाते है जिनमे 90 प्रतिशत विषैले नही होते। उदयपुर में पाई जाने वाली सबसे जहरीली प्रजातियों में कॉमन क्रेट, रसेल वाइपर, सॉ स्केल्ड वाइपर तथा इंडियन कोबरा शामिल हैं। एक आकलन के अनुसार राजस्थान में हर साल दो हजार से अधिक लोगों की मौत सर्पदंश से होती है। जिनमें सात सौ से अधिक लोगों की मौत अकेले उदयपुर क्षेत्र में होती है। खेतों में ही पाए जाने वाले सांप रसेल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर के काटने से अधिकांश मौतें हुई हैं।
उदयपुर में पाई जाने वाले सांपों की चारों विषैली प्रजातियां जंगल में ही पाई जाती हैं लेकिन अब ये आबादी वाले इलाकों में भी मिलती हैं। रसेल वाइपर, सॉ स्केल्ड वाइपर आमतौर पर बेहद छोटे सांप होते हैं और यह खेतों की मेड़ या पत्थर की बनी चारदीवारी में ही रहते हैं। खेतो को खत्म कर प्लॉट काटे जाने लगे, कॉलोनियां बसने लगी और सांप अपने-आप आबादी क्षेत्र में शामिल हो गए। इसी तरह कॉमन क्रेट तथा इंडियन कोबरा सांप भी आमतौर पर जंगल में पाया जाता है। इसके अलावा उदयपुर में रेट स्नेक, वूल्फ स्नेक, ट्रिंकेट, चेकड प्रजातियां भी पाई जाती हैं लेकिन ये सभी बिना जहर के होते है।
साँप का दिखाई देना ही भयभीत कर देने के लिये पर्याप्त होता है लेकिन जब साँप घर मे निकले तो होशो हवास उड़ जाना स्वाभाविक है। ऐसे समय याद आती है स्नैक कैचर की जो अपनी जान पर खेल कर साँप पकड़ते हैं। उनकी वजह से खतरनाक साँपो से लोगों की जान की सुरक्षा होती है। 24 घंटे ये स्नैक कैचर आमजन की सुरक्षा के लिये मात्र एक फोन पर उपलब्ध रहते है, औऱ हाँ ये स्नैक कैचर कोई सरकारी सेवारत कर्मचारी नही होते , ये लोग स्वेच्छा से बिना किसी मूल्य के जनसेवा का कार्य कर रहे है। कई बार लोग इन्हें आने जाने का पैट्रोल खर्च दे देते है लेकिन ये मामूली पैसे मानवीय जान की कीमत नही लगा सकते और न ही हो सकते है।
उदयपुर के रेबारियों का गुडा निवासी लक्ष्मीलाल वर्ष 2017 से शहर में साँप पकड़ने का काम कर रहे है। वे अब तक 60 हजार से अधिक साँप पकड़ चुके है। वे बताते है कि गर्मी के दिनों में औसतन 5-7 साँपो को वे पकड़ते है और बारिश के दिनों में यही संख्या 20 से अधिक पहुँच जाती है।
लक्ष्मीलाल का कहना है कि वे साँपो के अलावा मगरमच्छ, उल्लू, अजगर, सियार, दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों ,जानवरो का रेस्क्यू कर चुके है। उन्होंने कई बार गहरे कुओं से मगरमच्छ, कुत्ते और नील गाय को मात्र एक रस्से के सहारे निकाला है जो निहायत ही जोखिम भरा काम है।
लक्ष्मी लाल कई बार घायल जीव जंतुओं और साँपो को पशु चिकित्सालय लेकर जाते है जहाँ डॉ कर्मेन्द्र जी भी पूरी मदद और उपचार द्वारा घायल जीवों को ठीक करते है जिसके बाद उन्हें वन्य जीवों को जंगल मे छोड़ दिया जाता है।
लक्ष्मीलाल बताते है कि उदयपुर में रेस्क्यू करने वाले करीब 15 जने है और वे कुल 5 लोग वाइल्ड एनिमल रेस्क्यू सेंटर के अंतर्गत सेवा देते है।
इतना खतरनाक काम करने के बावजूद प्रशासन औऱ सरकार से उन्हें कोई सुविधा या प्रोत्साहन नही मिलता है जिसके कारण हताश होती है कि यदि इस काम मे उनके प्राण चले गए तो उनके आश्रितों का , परिवार का क्या होगा ? उनका भरण पोषण कौन करेगा ?
सरकार को इस संदर्भ में गंभीरता से चिंतन कर इन स्नैक कैचर को वन विभाग में स्थाई सरकारी नोकरी देनी चाहिए ताकि इनकी आजीविका का प्रबंध हो, इनका भविष्य सुरक्षित रहे और ये जनसेवा का ये पुनीत काम भी निर्बाध रूप से कर सकें।