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Udaipur / झीलें ,तालाब हमारे क्षीर सागर,अब सागर मंथन मे सिर्फ हलाहल विष ही - श्री लक्ष्मी व अमृत नहीं

clean-udaipur झीलें ,तालाब हमारे क्षीर सागर,अब सागर  मंथन मे सिर्फ हलाहल विष ही  - श्री लक्ष्मी व अमृत नहीं
अनिल मेहता October 24, 2022 01:43 PM IST

समुद्र मंथन की पौराणिक कथा जल स्रोतों  के समग्र पर्यावरण, पारिस्थितिकी  तथा  जैव विविधता  की  समृद्धता व फलस्वरूप श्री लक्ष्मी की प्राप्ति की  कथा है। यह  कथा इंगित करती है कि श्री लक्ष्मी व अमृतत्व की प्राप्ति के लिए पहाड़ , पेडों तथा जलीय जैव विविधता का होना नितांत जरूरी है। 

समुद्र मंथन के लिए  मन्दराचल  पर्वत को  मथनी और वासुकी नाग को मथने वाली रस्सी बनाया गया था। मन्दराचल पर्वत का वर्णन आता है कि वह पर्वत  चन्दन, पारिजात, नागकेशर, जायफल और चम्पा सहित विविध प्रजातियों   के वृक्षों से वह हरा-भरा  था।  समुद्र मंथन बिना गरुड़ व वासुकी नाग के भी संभव नही हो पाया। वासुकी  नाग ने  रस्सी बनकर मथनी को चलाया। कथा कहती है कि इस कार्य को सफल बनाने के लिए  श्री विष्णु को  कच्छप रूप  धारण करना  पड़ा। 

मंथन में विष भी निकला और कल्पवृक्ष, पारिजात, आम इत्यादि   वृक्ष,  विविध वनस्पतियाँ , शंख, कौस्तुभ मणि, उच्चे श्रुवा नामक घोड़ा, ऐरावत नाम के  हाथी सहित  दिव्यरूपा देवी महालक्ष्मी और अमृत भी।  

पर्यावरणीय संकट के वर्तमान दौर मे यह कथा महत्वपूर्ण है। शहरीकरण के लिए हम पहाडों को काट रहे हैं। और इस कारण हमारे गाँव- नगर के  क्षीर सागर   अर्थात झीलें व तालाब  संकट मे है। पहाड़  स्थानीय जलवायु नियमन  व  जैव विविधता के पोषक है। वे  झीलों तालाबों मे बरसाती जल आवक के मुख्य आधार है। ये सभी हमारे मंदराचल पर्वत है।  दुर्भाग्यवश, इन मंदराचलों को बेरहमी से काटा जा रहा है। जो बचे है वे वृक्षविहीन होते जा रहे हैं। जल ग्रहण क्षेत्र के जंगल व पहाड़ नष्ट होने से कई  वन्य जीव समाप्त हो गए  है। 

झीलों तालाबों मे मानव जनित प्रदूषण निरंतर बढ़ रहा है। सीमाओं पर  व पेटे मे अतिक्रमण सहित   केमिकल, सीवरेज, घरेलू व व्यवसायिक संस्थानों के कचरे के विसर्जन, ईंधन चालित मोटर बोट्स के अनियंत्रित व अंधाधुंध संचालन इत्यादि विविध कारणों से झीलों तालाबों का पानी विष होता जा रहा है।   झीलों तालाबों के लिए महत्वपूर्ण   फ्लोरा व फॉना, वानस्पतिक व जीवीय जैव विविधता समाप्त हो रही है। कच्छप(कछुए) , जलीय  सृप व कई मछलियाँ प्रजातियाँ समाप्त हो गई है। 

परिणाम स्वरूप  हमारे स्थानीय  क्षीर सागर - झीलें तालाब  विषैले  बन रहे है।  इनकी अमृतत्वता समाप्त होती जा रही है।  श्री लक्ष्मी इनमे वास नही कर सकती। वह स्थायी रूप से रूठ जायेगी। अब  केवल और केवल विष ही उपजेगा।

आइये, इस दीपावली  पर प्रकृति रूपी ईश्वर से एक स्वर मे प्रार्थना करें,  प्रायश्चित करें। सभी मिल पेड़, पहाड़, पानी के संरक्षण का संकल्प करें। क्षीर सागरों को पुन: अमृत व श्री लक्ष्मी प्रदाता बनाएं।

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