
पीछोला झील की बडी पाल की जड में रहस्य और तकनीक से चलता है ये पुतली का फव्वारा !

झीलों की नगरी उदयपुर लबालब भरी झीलों से गुलज़ार होती नज़र आ रही है। जहाँ पीछोला और गोवर्धन सागर लबालब हो चुके है ,वहीं फतहसागर में पीछोला से पानी की आवक जारी है और सीसारमा का जलस्तर अभी भी पांच फ़ीट के आसपास चल रहा है।
झीलों के साथ उदयपुर की पहचान 1568 के रूप में शुरू हुई जब महाराणा उदय सिंह ने अपनी राजधानी को यहां स्थानांतरित करने का फैसला किया। उन्होंने रणनीतिक रूप से शाही महल को सुरक्षित रूप से झील पिछोला झील के कृत्रिम तटबंध के पूर्व में बनाने का आदेश दिया।क्षेत्र के धीरे-धीरे ढलान वाले इलाके घरेलू और सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ शाही परिवार के लिए एक मनोरंजक परिदृश्य बनाने के लिए पानी के प्रवाह को बांधा गया । लेक पिछोला का दक्षिणी छोर जिसकी गहराई 4 से 8 मीटर तक है, शहर की जीविका के लिए पानी की बारहमासी आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पत्थर की चिनाई के साथ बांध बनाया गया था।
इसी बांध की पाल के नीचे समोर बाग में महाराणा जी के बाग में स्थित है यह संगमरमर की पुतली।यह पिछोला झील के भरने पर पानी के दाब से बिना विद्युत के, बिना मोटर की उर्जा के चलने वाला एक झरना रुपी फव्वारा है और साथ ही साथ यह पिछोला झील की भराव क्षमता को भी दर्शाती है। यह पुरानी मेवाड़ी स्थापत्य कला और तकनीक का बेहतरीन उदाहरण है जो मनोरंजन के साथ साथ बाग में सिंचाई प्रबंधन की व्यवस्था करती है और समोर बाग सहित गुलाब बाग में सारण (नहर) द्वारा पानी पहुँचाती है। इसके साथ ही यह पिछोला झील की भराव क्षमता (गेज ) बताती है।
पुतली के हाथ में कलश है और जब पीछोला 8 फ़ीट से ऊपर भर जाता है तब पुतली की मटकी से पानी की धार गिरनी शुरू हो जाती है और नीचे बनें गोल थाली नुमा टेंक में जल भरने के बाद जल रिसाव के द्वारा दो भागों में विभक्त होकर बाग में दो धारा में विभक्त होकर बाग को तृप्त करने चली जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि पुतली पीछोला पाल के नीचे पानी के स्तर के नीचे है अर्थात इसका सीधा मतलब है कि पाल जिसकी चौड़ाई 18 फ़ीट से ज्यादा है उसके अंदर पाल के अंदर एक मोखी है जिससे पहले पाल के अंदर पानी जाकर एक निश्चित स्तर पर जाकर पुतली के अलग अलग हिस्सों से अलग अलग पानी की मात्रा पर अलग अलग स्तर पर पानी गिराती है। ऐसी तकनीक आज तक किसी ऐसी प्राचीन झील में कही ओर देखने को नहीं मिलती है।
पुतली का ये पुराना फोटो है जब कई साल अकाल पड़ने के बाद उदयपुर में पानी आया तो कट्टे लगाकर पानी का स्तर बढ़ाने की कोशिश की गयी। जब पुतली पर अत्यधिक दाब पड़ा तो पानी प्रेशर से निकलने लगा और तब पाल को नुकसान पहुँचने की आशंका के चलते लोग भयभीत हो गए। यह उस समय का एक मात्र फोटो है।
इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
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