उदयपुर, 24 सितंबर 2022 :उदयपुर शहर की जीवन दायिनी पेयजल झीलों में पेट्रोल/डीजल चलित नावों मुख़ालफ़त शहर का एक बड़ा वर्ग कई समय से कर रहा है। इस पर नीति निर्धारकों द्वारा कोई फैसला न लेते देख झील प्रेमी इस मामले को लेकर हाई कोर्ट का दरवाजा तक खटखटा चुके है। एक ही झील से जुड़े मुद्दों के मामलें में माननीय हाई कोर्ट ने शहर के वरिष्ठ झील प्रेमी की PIL पर सुनवाई करते हुए स्थानीय प्रशासन को छह महीने में झीलों में पेट्रोल-डीजल चलित नावों को बाहर निकालने के लिए कह चुका है और इनके स्थान पर नीति अनुसार सोलर/बैटरी चलित नाव चलवाने के लिए निर्देशित किया है,जिसकी मियाद इसी महीने खत्म हो रही है।
उदयपुर जिला कलेक्टरेट में आयोजित झीलों की निगरानी समिति की मीटिंग में नगर निगम,UIT, सिंचाई विभाग और परिवहन विभाग के अधिकारियों के साथ समिति के सदस्य जी पी सोनी और डॉ प्रवीण खंडेलवाल मौजूद थे। बैठक में सरकारी अधिकारियों ने नाव परिवहन को लेकर कहा कि फिलहाल हाई कोर्ट के 30 सितंबर को बाहर निकालने के आदेश के जवाब में हाई कोर्ट से तीन माह और माँगने के आग्रह पर सहमति व्यक्त की गई जिस पर समिति सदस्यों ने कहा कि पहले ही 6 महीने का समय दिया गया था जिस पर उदयपुर प्रशासन ने अभी तक गम्भीरता नहीं दिखाई। अब आखरी वक्त पर हाई कोर्ट से समय मांगा जा रहा है,जिसका जवाब कोर्ट में दिया जाएगा।
अधिकारियों को सोलर/बैटरी नावों के बारें में नहीं कोई भान
इसके साथ ही स्थानीय अधिकारियों ने बिना होम वर्क किये झीलों में सोलर/बैटरी नावें चलने के विपक्ष में कहा कि ऐसी नावों का भार कम ज्यादा होने (स्टैण्डर्ड नहीं होने की बात कही गयी) की बात कही। जिस पर झील प्रेमी ने कहा कि हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने बनारस में 11 सोलर बैटरी ऑपरेटेड नावों का उद्घाटन किया है। जबकि वो नावें बहते पानी में भी सफलता पूर्वक चल रही है तो यहाँ की झीलों में तो पानी स्थिर है । इस पर उदयपुर कलेक्टर ने एक टीम को बनारस भेजने की बात कही।
ऐसे में ये प्रश्न उठता है कि 6 महीने पहले जब हाई कोर्ट ने निर्देश दिया था तो अब तक अधिकारी वृन्द किसका इंतजार कर रहे थे। आज के डिजिटल जमाने में इंटरनेट पर केवल 'इलेक्ट्रिक नाव' (electric boat) लिखने पर मेड इन इंडिया नावों के कई ऑप्शन दिखाई देते है। वही पड़ोस के शहर डूंगरपुर में पहले से ही गैप सागर झील में इलेक्ट्रिक का प्रयोग किया जा रहा है। साफ है कि झीलों के प्रति इन अधिकारियों में कोई प्रतिबद्धता नजर ही नहीं आती और ये नाव संचालन को लेकर गालियां निकालने में लगे है।
इन अधिकारियों की गलियां निकालने की प्रवृत्ति के कारण हाई कोर्ट के निर्देशों के अंतिम दिनों तक कार्यवाही न करने का खामियाजा नाव संचालन करने वालों को मिल सकता है। यदि हाई कोर्ट ने 3 महीने की मोहलत देने से इनकार कर दिया तो यकायक सभी पेट्रोल चलित नावों को भी बन्द करने की नोबत आ सकती है। हालांकि दो होटल वाले पहले से ही इलेक्ट्रिक नावों को खरीदने का आर्डर दे चुके है।
इसके साथ ही अधिकारी वृन्द हाई कोर्ट के आदेश को अपने हिसाब से परिभाषित करते हुए ये कहते आये है कि हाई कोर्ट ने झीलों में सोलर/बैटरी नावों को संचालित करने के लिए कंसीडर करने को कहा हैं और ये कही नही नहीं कहा है कि केवल बैटरी/सोलर नावें ही चलेंगी।
जनता और जनप्रतिनिधि नहीं चाहते है कि उदयपुर की झीलों में पेट्रोल -डीजल चलित नावों का संचालन हो। वही अधिकारियों ने आज तक इस बारे में कोई जानकारी भी नहीं जुटाई है और कहा जा रहा है कि कोर्ट से अतिरिक्त समय मांगा जाएगा। यहाँ ये बात समझ से परे है कि अधिकारियों को सोलर/बैटरी चलित नावों को चलवाने में आपत्ति क्यों है? भाई जिसे नाव चलवानी है वो बाजार से खरीद कर ले आएगा। अधिकारियों ने इलेक्ट्रिक नावों के भार संतुलन सम्बन्धी अनर्गल तथ्य दिए है जबकि पहले से भारतीय बाजार में मेक इन इंडिया सोलर/बैटरी ऑपरेटेड नाव के कई विकल्प मौजूद है। इलेक्ट्रिक नाव के अध्ययन के लिए टीम को बनारस भेजने की बात भी समझ से परे है क्योंकि न केवल इसमें समय खर्च होगा बल्कि पैसों की बर्बादी भी होगी। आज के मोबाइल और इंटरनेट के युग में सारी सूचनाएं मोबाइल कॉल और क्लिक पर मौजूद है। अगर जिजीविषा हो तो 2 दिनों में इलेक्ट्रिक नावों के बारे में पता लगाया जा सकता है।
क्या है पूरा मामला
उदयपुर की झीलों में नाव संचालन और सीमांकन को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए कहा था कि आगामी 6 महीनों में उदयपुर की झीलों में चलने वाली पेट्रोल और डीजल की नावों को बैटरी और सोलर आधारित व्यवस्था में बदलना होगा। वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता और विनोद कुमार भारबनी की बेंच में यह निर्णय स्वप्रेरणा के प्रकरण और झील प्रेमी ज्ञान प्रकाश सोनी द्वारा पेश एक प्रार्थना पत्र में उठाई गई आपत्तियों के आधार पर दिया था।
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन से झीलों में हुए निर्माण और प्रतिबंधित क्षेत्र में निर्माण समेत कई बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा और कहा कि अगली सुनवाई तक इस बाबत अपना शपथ पत्र कोर्ट को पेश करें ।इसके साथ ही हाईकोर्ट ने साल 2014 में पिछोला में प्रदूषण को लेकर एक याचिका दायर हुई थी जिस पर उच्च न्यायालय ने स्वप्रेरणा से संज्ञान लेते हुए एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने झीलों की निगरानी के साथ समय-समय पर हाई कोर्ट में रिपोर्ट पेश करने के बात कही गई थी, लेकिन इसी दौरान समिति के एक सदस्य ने हाईकोर्ट में आपत्ति दर्ज करवाई कि जिला प्रशासन को प्राधिकरण की हर तीन माह में बैठक करनी थी जो कि नहीं की जा रही है। इसके साथ ही झीलों में कई अन्य तरीकों की अवैध गतिविधियों के बारे में भी अवगत करवाया गया था। इस पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने जिला प्रशासन से झीलों के संबंध में समस्त निर्माण कार्यों के बारे में स्पष्टीकरण मांग लिया था।
आपको बताते चलें कि हाईकोर्ट की प्रोसिडिंग में झील संरक्षण समिति ने एक याचिका पहाड़ों की कटाई संबंधी दायर की थी,जिसे हाईकोर्ट ने झील प्रेमी ज्ञान प्रकाश सोनी की याचिका के साथ क्लब करने के आदेश दिये थे।
उदयपुर की झीलों से संबंधित एक स्वप्रेरणा प्रकरण 7077/2014 दिनांक 2-2-2018 को निर्णित हुआ था जिसके अनुसार कोर्ट ने उसके आदेशों की पालना के लिये एक निगरानी समिति गठित की। इस निगरानी समिति के अध्यक्ष ज़िला कलक्टर हैं और याचिकाकर्ता ज्ञान प्रकाश सोनी भी एक सदस्य है। इस कमेटी की बैठक हर तीन माह में होनी चाहिए थी, जो कि नहीं हो रही थी और बैठक के निर्णयों की पालना में ढिलाई हो रही थी। इस पर याचिकाकर्ता ज्ञान प्रकाश सोनी ने कोर्ट को एक पत्र भी लिखा था। इसी पत्र पर कार्रवाई हो कर निर्णित स्व प्रेरणा प्रकरण वापस खोला गया ।
इस पर याचिका कर्ता के निजी वकील के माध्यम से एक स्टे प्रार्थना पत्र 8179/2021 पेश किया, जिसमें चाँदपोल ब्रह्मपोल के बीच डूबक्षेत्र में पानी में प्रस्तावित सड़क, डीजल- पेट्रोल नावों, मछली मारने के ठेकों व वाटर स्पोर्ट्स जैसे बंजी जंपिंग व स्काई साइक्लिंग पर रोक लगाने की माँग की गई थी। साथ ही गुमानियावाला नाले से मलबा निकालने की माँग भी इसमें शामिल थी।
इस पर डूब क्षेत्र में प्रस्तावित सड़क पर स्टे सितंबर माह में मिल गया। साथ ही नावों पर आदेश मिला व बाक़ी अभी विचाराधीन हैं। इसके साथ ही माननीय उच्च न्यायालय ने जिला प्रशासन से झीलों में मछलियां पकड़ने के ठेके रद्द कराने, झीलों में पेट्रोल डीजल नाव के संचालन और पर्यटन की सुविधा के लिए किए गए विकास कार्यों के साथ झीलों के सीमांकन, प्रतिबंधित क्षेत्र में बाउंड्री निर्माण सहित अन्य मामलों में झील विकास प्राधिकरण से अनुमति प्राप्त की गई या नहीं, इस बारे में शपथ पत्र के साथ स्पष्टीकरण देने को कहा था।
झील संरक्षण समिति द्वारा रिट याचिका (नंबर 1374/2019) द्वारा उदयपुर की झीलों में अवैध निर्माणों के संबंध में, उदयपुर के आसपास की पहाड़ियों और जलग्रहण क्षेत्रों की परिधि पर रीट दायर की गयी थी, जिस पर कोर्ट ने स्वत: संज्ञान याचिका लिया और इसे जी.पी. सोनी द्वारा दायर की स्टे अर्जी के साथ टैग करने के आदेश पिछली सुनवाई में दिए थे।
याचिका में पार्टियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण मुद्दे उठाये ,जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता जताई:-
(1) क्या उदयपुर की झीलों में झील (संरक्षण एवं विकास) प्राधिकरण अधिनियम, 2015 के राज की धारा 4 के तहत सभी झीलों की भौगोलिक सीमाओं का परिसीमन जारी किया खासकर पिछोला झील?
(2) उदयपुर में और उसके आसपास झील की सीमाएँ झीलें (सामान्य रूप से) और पिछोला झील (विशेष रूप से) के लिए झील (संरक्षण एवं विकास) प्राधिकरण अधिनियम, 2015 के राज की धारा 4 के तहत झील के परिसीमन को आगे बढ़ाने में संरक्षित क्षेत्र घोषित करते हुए क्या कोई नोटिफिकेशन जारी किया गया
(3). क्या झीलों (सामान्य रूप से) और पिछोला झील (विशेष रूप से) में झील (संरक्षण एवं विकास) प्राधिकरण अधिनियम, 2015 के राज की धारा 5 के तहत कोई अधिसूचना उदयपुर में और उसके आसपास गतिविधियों को प्रतिबंधित/विनियमित करने हेतु जारी की गयी
(4). क्या झील संरक्षण और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 2015 की धारा 5 के तहत वर्तमान में चल रही और प्रस्तावित वाणिज्यिक नाव संचालन पिछोला और/या फतह सागर झीलों में गतिविधियां निर्णय/अधिसूचना के संदर्भ में अधिकृत है ?
(5). झील पारिस्थितिकी तंत्र/जलीय जीवन को हाइड्रोकार्बन ईंधन के उपयोग से किस हद तक खतरा है और इस मुद्दे पर क्या किसी भी उपयुक्त विशेषज्ञ निकाय जैसे जिला झील विकास एवं संरक्षण समिति और/या राज्य झील विकास प्राधिकरण द्वारा जांच की गई है ?
(6) क्या झीलों में तेल रिसाव/निर्वहन की घटनाएं हुई हैं? नौका विहार गतिविधियों के अनुसरण में क्या झीलों को किसी भी तरह से इससे बचाने के उपायों की परिकल्पना की गई है?
(7) झील में खेल और मनोरंजन/मनोरंजन गतिविधियों के लिए अनुमति का अनुपालन न्यायालय द्वारा डी.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 4271/1999 और 2015 का अधिनियम के तहत दिया जा रहा है अथवा नहीं?
इसके साथ ही उपरोक्त प्रश्नों पर न्यायालय को संतुष्ट करने के लिए अगली सुनवाई की तिथि को प्रतिवादी के वकील संबंधित हलफनामे दाखिल करने को कहा गया था । साथ ही निर्देश दिया कि संबंधित स्थानीय निकाय सभी जीवाश्म ईंधन चलित नौकाओं के प्रवेश पर रोक लगाने पर विचार करेगा। साथ ही अगले छह महीनों में उदयपुर की झीलों में नावों को बैटरी/सोलर ऊर्जा से बदलने के लिए कहा गया ।