उदयपुर, 1 जनवरी, नववर्ष समारोह उदयपुर की आबोहवा के लिए आफत बन कर आया। हजारों पर्यटक वाहनो, चकाचौन्ध रोशनी, पटाखों के तीव्र शोर , पर्यटन कचरे से पशु पक्षी,झीलें, आम जन सभी पीड़ित हुए। झील प्रेमियों ने इस पर चिंता व्यक्त की है।
रविवार को आयोजित झील संवाद मे झील संरक्षण समिति के डॉ अनिल मेहता ने कहा कि उदयपुर की धारण क्षमता से अधिक पर्यटन दबाव उदयपुर के लिए घातक है। समय आ गया है कि पर्यटन व्यवसाय को निरंतर व सतत बनाये रखने के पर्यटन को नियंत्रित व संतुलित बनाया जाए। सहनीय व पर्यावरण अनुकूल पर्यटन से ही उदयपुर के पेड़, पहाड़, पानी व संस्कृति बचे रह पाएंगे।
झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि नववर्ष के स्वागत पर चले पटाखों से प्रवासी पक्षी की मौत तक हुई है। झीलों किनारे व भीतर कांच व प्लास्टिक की बोतलों का विसर्जन हुआ है। यह उदयपुर के स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल स्थितियाँ है।
गांधी मानव कल्याण सोसाइटी के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि पर्यटन से पहले पेयजल है। पर्यटन व्यवसाय के लिए जलग्रहण क्षेत्र मे होटल, गेस्ट हाउस इत्यादि बनते जा रहे हैं। इससे जल आवक व जल गुणवत्ता, दोनो पर विपरीत प्रभाव हो रहा है।
युवा पर्यावरणविद कुशल रावल ने कहा कि अत्यधिक पर्यटक वाहनो तथा वाहन जाम की स्थितियों के कारण उदयपुर की वायु गुणवत्ता खराब हो जाती है। उदयपुर के बच्चो व वृद्धों के लिए यह बहुत पीड़ा का कारण बन रहा है।
द्रुपद सिंह ने कहा कि पर्यटन के नाम पर झीलों पर अत्याचार असहनीय है। संवाद से पूर्व श्रमदान कर पिछोला झील किनारे व भीतर से कचरे को हटाया गया।