
माछला मंगरा जिसने 6 महीने मराठों को रोके रखा और आन बचाई मेवाड़ की !
उदयपुर शहर के दक्षिण में किशनपोल के नजदीक मत्स्य शैल नाम का पर्वत हैं जिसका वर्तमान में नाम माछला मंगरा अर्थात मछली के आकार का पर्वत हैं। सैकड़ो हमलों और लड़ाइयों में बम गोलों सहित दुश्मनों को झेलकर इसने मेवाड़ की रक्षा की है। इस माछला मंगरा पर एक गढ़ बना हुआ है जिसे एकलिंग गढ़ के नाम से जाना जाता है। इस गढ़ से एक प्राचिर (दिवार) जलबूर्ज दरवाजा को जोडती है दुसरी तरफ यह किशनपोल पुराना नाम कृष्ण पोल के नाम से जाना जाता है। यह गढ़ इतिहास में विशेष दर्जा रखता है।
मेवाड़ के प्रधानमंत्री अमरचंद वडवा के द्वारा बनवाएं इस गढ़ ने मराठा सहित कई अन्य आक्रमण झेले और अब अतिक्रमण का दंश झेल रहा है।
महाराणा अरिसिह जी द्वितिय के समय मेवाड़ की हालत बिगड़ी हुई थीं। इसका लाभ उठाकर मराठो ने यह कहकर आक्रमण करने की चुनौती दी कि उन्हें सपने में भगवान श्रीनाथ जी ने कहा है कि उनकी सेवा पूजा ढंग से नहीं हो रही। इसलिए अब मराठा लोगों का हक़ बनता है कि वो श्रीनाथ जी पर अधिकार कर उनकी सेवा पूजा करे।
तब महाराणा और सलाहकार सरदारों ने प्रधानमंत्री अमर चन्द वडवा को मेवाड़ की सुरक्षा प्रबंध करने को कहा। प्रधानमंत्री अमर चन्द वडवा बहुत ही कुशल मंत्री और समज़दार व्यक्ति थे। युद्ध की तैयारी के अनुरूप गढ़ को मजबूत करना ,रसद इकट्ठा करना, सैन्य सामग्री इकट्ठा करना, प्राचीर को मजबूत करना आदि तैयारीयां प्रारंभ करी गयी। तत्पश्चात एक बहुत ही भारी तोप इस गढ़ पर चढ़वाई गयी जिसका नाम दुश्मन भंजक था और इसका गोला देबारी दरवाजे तक मार करता था यह एक आश्चर्यजनक और दुशकर कार्य था।

जब मराठा आक्रमण हुआ तब इसी तोप से गोले बरसाएं गए। मराठो ने चाल चली कि तोपची जिनका नाम बाघसिंह था, उसे अपनी ओर मिलाने का प्रलोभन दिया और उसके पास पचास हजार रुपए पहुंचाए गए। बाघसिंह ने वे पचास हजार रुपए अमरचंद जी को दिए और दुश्मनों पर तोप चलाना जारी रखा। इस तोप से दुश्मन छः माह तक उदयपुर में घुस नहीं पाए और अन्त में सन्धी को मजबूर होकर एक अहदनामा अमरचंद जी को भेजा। उन्होंने वह अहदनामा फाड़ दिया और अपनी शर्तों पर सन्धि करी। यह तोप उदयपुर कि ऐतिहासिक धरोहर थी। महाराणा भूपालसिह जी के काल तक यह निरन्तर चलती थी। उसके धमाके के बाद शहर के सारे दरवाजे बन्द कर दिए जाते थे। आजादी के बाद यह तोप कहां गई ?क्या हुआ ?रहस्य है ? कूछ लोगों के मुंह से सुना था कि भारी होने की वजह से इस धरोहर को काट कर बेच दिया गया। एकलिंगगढ़ का शेष ऐतिहासिक सामान भी पी.डब्लू. डी. डिपार्टमेंट में जमा करा दिया गया था।
वर्तमान में यह सामान कहा है किसी को पता नहीं !वर्तमान समय में यह गढ़ वन विभाग के पास है। यहां गढ़ की प्राचीर से उदयपुर पिछोला, राजमहल और पुरा शहर एक प्राकृतिक कुदरती छटा बनाता है। अभी भी गढ़ का सामान पी डब्लू डी डिपार्टमेंट से लेकर यहां डेवलपमेंट किया जाए तो पर्यटक के साथ साथ उदयपुर का गौरव यह गढ़ एक ऐसा स्थान बनें जिसको आमजन नमन करने के साथ साथ गौरवान्वित महसूस कर सकें।
आज तक गढ़ बनने के बाद से वर्तमान समय तक यह गढ़ अपराजित रहा है यह उदयपुर की शान विजयस्तम्भ की तरह तन कर खड़ा है।
इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
Email:erdineshbhatt@gmail.com

