उदयपुर के महाराणाओं की खडग पूजा और सवारी,गुलाब बाग में छुपा इतिहास !
खड्ग बलिदान का शस्त्र है। देवी दुर्गा, चण्डी माता के रूप में इसका प्रयोग करती हैं। प्राचीन समय में होने वाले युद्धों में इसका बहुत प्रयोग होता था। खड्ग के दोनों ओर धार होती है, इससे काटना और भोंकना दोनों कार्य किए जाते हैं।
महाराणा हम्मीर को बहरी जोगन ने एक खड्ग (एक तरह की तलवार) दिया था। यह खड्ग सदैव मेवाड़ के महाराणाओ के लिए पूज्यनीय रही और नवरात्र के दिन खड्ग की विधिवत स्थापना विधि विधान के साथ करी जाती थी। यह परम्परा महाराणा भूपालसिह जी के काल तक निरन्तर चलती रही।
नवरात्रि के समय एकम यानि पहले दिन नवरात्रि की स्थापना की जाती थी। अस्त्र शस्त्र सम्बंधित अधिकारी को आदेश दिया जाता कि हेलो पड़ाव अर्थात ऊंची आवाज में खड्ग जी की सवारी के लिए न्योता दिया जाता था। शाही लवाजमे के साथ खड्ग जी की सवारी निकलती थी। एक साधु जो कलडवास के रहने वाले थे ,खड्ग जी उन्हें पदरा (समर्पित कर देना ) दिए जाते। यह साधु नौ दिन तक बिना अन्न जल, बिना हिले डुले अपने स्थान पर खड्ग जी के साथ अपनी दैनिक क्रिया को वश में रख कर खडे रहते।
यह सारा इंतजाम गुलाब बाग में लौटन मंगरी पर होता था। वहां आज भी खड्ग जी का स्थान है और एक छतरी भी बनी हुई है।लौटन मंगरी के पुर्व दिशा मे तम्बू पाण्डाल लगा दिया जाता। लोग इन तपस्वी के दर्शन करने आते थे और साथ ही लोग ज्वारे (नवरात्रि के दौरान माता की भक्ति में बर्तन में ज्वार रोपना ) के भी दर्शन कर सकते थे लेकिन नियम था कि ज्वारे पर किसी प्रकार की छाया नही पडनी चाहिए।
नवरात्रि के नौवें दिन वापस खड्ग जी उसी विधान से महलों में लाए जाते और महाराणा खड्ग झेलते (स्वीकार करते)। फिर वापस सिलहखाने के अधिकारी को खड्ग सौंपते। इसके बाद भाट चारण को गीत गाने का हुक्म होता। तोपों की सलामी दी जाती। दरिखाने मे गोठ (पार्टी) का न्योता दिया जाता था। इस गोठ में मुस्लिम समुदाय के लोग भी शिरकत करते थे। हाथियों की लड़ाई होती थी। फिर सीख का बिडा अर्थात रुखसती का पान दिया जाता था।
महाराणा तीसरे पहर रोज नवरात्रि में गुलाब बाग खड्ग जी के स्थान अर्थात वर्तमान में लौटन मंगरी को पधारते और व्रत पालन करते थे।
महाराणा भूपालसिह जी के काल में कई प्रत्यक्ष दर्शियों ने इस उत्सव का जबानी वर्णन भी किया है
इस एतिहासिक महत्व के स्थान पर एक बोर्ड सरकार को लगाना चाहिए ताकि पर्यटक इस स्थल के बारे में जानकर उस तपस्वी भुमि को नमन कर आस्था प्रकट कर सके।
इतिहासकार : जोगेन्द्र राजपुरोहित
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
Email: erdineshbhatt@gmail.com
नोट : उपरोक्त तथ्य लोगों की जानकारी के लिए है और काल खण्ड ,तथ्य और समय की जानकारी देते यद्धपि सावधानी बरती गयी है , फिर भी किसी वाद -विवाद के लिए अधिकृत जानकारी को महत्ता दी जाए। न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम किसी भी तथ्य और प्रासंगिकता के लिए उत्तरदायी नहीं है।
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