मेवाड़ में एक दस्तुर प्राचीन काल से चला आया था। मेवाड़ राजवंश के महाराणाओ में परम विश्वास होने से मेवाड़ के महाजन, बोहरा, मुस्लिम और हर समुदाय के लोग आपसी लेन-देन में शपथ रखते थे कि "बदलु नहीं बदलु तो राणा जी आण" ।
यह शपथ सैकड़ों सालों से चली आ रही थी क्योंकि मेवाड़ के राजा स्वयं राम के कुल के है और मेवाड़ में राजा राम के काल से दोहा प्रचलन में था- "रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई" और "जो दृढ़ राखे धर्म का तेहि राखे करतार"।
इतिहास साक्षी है कि इस वंश ने कभी भी अपना वचन भंग नहीं किया इसलिए ही मेवाड़ की प्रजा ने सदैव इनको आराध्य मानकर इनके नाम की शपथ से कार्य किए गए। राणा सांगा, महाराणा प्रताप ,राणा राजसिंह , अमर सिंह इसके उदाहरण है।
बात महाराणा फतहसिह जी के काल की है। अंग्रेजी हुकूमत ने हिन्दुस्तान में एक कानुन पास किया की किसी भी प्रकार के लेन-देन में महाराणा जी की आण नामक शपथ नहीं चलेगी और अदालत से हर लिखा पढ़ी की पैमाइश करवाईं जाए। लेकिन सभी मेवाड़ वासियों ने इस बात को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा हम जमाने से चली आ रही परंपरा को नहीं छोड़ेंगे। हम मेवाड़ वासियों को राणा जी की आण की शपथ पर भरोसा है।
अंग्रेजी गवर्नमेंट ने कहा कि जो यह आदेश नहीं मानेगा उसे दण्डित किया जाएगा।
आखिरकर जनता ने चैत्र कृष्ण 7 संवत 1920 को सैकड़ों लोगों के साथ मिलकर इस आदेश के खिलाफ हड़ताल कर दी और सभी लोग रेजिडेंसी (जहाँ आज रेजीडेंसी गर्ल्स स्कूल है ) पहुंचे। वहां पर अँग्रेज रेजिडेंट ने हल्ला सुना पर कुछ मालुम नहीं पड़ने पर सिपाहियों से उसने जनता के साथ दुर्व्यवहार करने का हुक्म दिया। इससे जनता बिदक गई और पत्थर बाजी करने लगीं। दोनों पक्षों के कई लोग घायल हो गये।
वहां से सभी लोग हुजूम बनाकर सहेलियों की बाड़ी में इकट्ठा होने लगे और जब महाराणा फतहसिह जी को इस घटना के बारे में मालुम पडा तो वे सहेलियों की बाड़ी पहुँचे और रेजिडेंट को बुलाकर जनता को समझाइश कर कानुन में रद्दोबदल करवाया तब कही जाकर बलवा शान्त हुआ और जनता अपने घरों की तरफ लौटी।
निर्णय हुआ कि जनता परम्परा अनुसार सौगंध शपथ और महाराणाओ को ईश्वर तुल्य सदा से मानते आए है और मानेंगे। ऐसी ही एक घटना महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय की है। एक दिन जब उनकी सवारी निकल रही थी जिसमें राजकुंवर जगतसिंह भी थे। एक व्यापारी जो कि कुंवर से कुछ पैसे मांगता था, सवारी के आगे आकर कुंवर जी को कहा आपको राणा जी की आण आप पैसे चुकाए बिना आगे नहीं जा सकते ! कुंवर चाहते तो व्यापारी को धमका सकते थे परन्तु महाराणा संग्राम सिंह जी ने कुंवर को सवारी से अलग कर दिया और व्यापारी के पैसे दिलवाएं। जब ऐसा सच्चा न्याय सदियों से होता आया हो तो और आण (आन ) की इज्जत सर्वोपरि मानी जाती हो तब जनता को यकायक अंग्रेजी कानून पर भरोसा कैसे हो सकता था। यही कारण था कि मेवाड़ में पहला विद्रोह अंग्रेजी हकुमत के खिलाफ मेवाड़ की आन बाण बचाने के लिए जनता ने किया।
संकलनकर्ता और इतिहासकार :
जोगेन्द्र पुरोहित
घाणेराव घाटी ,उदयपुर (राजस्थान)
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)