सज्जनगढ़ का नाम लेते ही रूमानी हवाओं के साथ ख़ास बेहतरीन एहसास हर उदयपुर वासी के साथ सैलानीयों का मन मोह लेता है। गर्मियों मे भी यहाँ कभी गर्मी का एहसास नहीं होता चाहे आप सज्जनगढ़ के किसी भी कमरे में बैठे हो। उदयपुर के हर कोने से नज़र आने और रात के अँधेरे में पहाड़ी पर रोशनी से नहाये दिखने पर लोग इसे हवा में लटका महल भी कह देते है। बारीश में बादलों के सज्जनगढ़ के नीचे आने के कारण इसे मानसून महल या बादल महल भी कहते है। आज ही के दिन जन्मे यानि 8 जुलाई 1859 जन्म विक्रम संवत 1916 आषाढ़ सुदी 9 को जन्मे महाराणा सज्जनसिंह के समय की ये इमारत हमें सदैव महाराणा सज्जनसिंह की याद बरकरार दिलाती रखेगी।
ये महाराणा अपने अल्प काल में उदयपुर को कई सौगात देकर विदा हुए। जिसमें सज्जन निवास बाग (वर्तमान गुलाब बाग़), सज्जनगढ़ किला, सज्जन निवास यन्त्रनालय ,वीर विनोद इतिहास मेवाड़ गजेटियर छापाखाना जैसे कार्य सदैव उदयपुर के इतिहास में महाराणा सज्जन सिंह का नाम रोशन रखेंगे।
इसी श्रृंखला में महाराणा सज्जनसिंह जी के द्वारा बनवायी गयी इमारत जो आज वर्तमान समय में भी उदयपुर की महत्वपूर्ण विरासत में शुमार होती है।सज्जनगढ जिसे महाराणा ने योजनाबद्ध तरीके से तैयार करवाने का कार्य प्रारंभ 1884 ईस्वी में किया। यह गढ़ आज भी सैलानियों को आकर्षित करता है। महाराणा की योजना एक पहाड़ी जिसका नाम बन्सधरा है और जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 3100 फिट है। यहां पर एक गढ़ को बनवाने का काम प्रारंभ किया और उद्देश्य था कि उंचाई देखते हुए सामरिक दृष्टि से यह उपयोगी हो। सज्जन सिंह जी महाराणा चाहतें थे इसकी उंचाई सात मंजिल तक हो ताकि यह एक लाईट हाउस के रूप में भी काम आ सके। इस गढ़ की ऊंचाई लगभग 1100 फिट हैं। यह वास्तु कला का अदभुत नमुना है।
यहां पर जनाना और मर्दाना महल बना हुआ है।सामरिक दृष्टि से अत्यंत मजबूत इस गढ़ के मुख्य द्वार से गढ़ के पीछे एक अंडर ग्राउंड वाटर टैंक बना है जो बरसाती पानी को पीने योग्य बनाकर इन विशाल टेंक में संचय करता है।इस टैंक में 1,95,500 लीटर पानी का संरक्षण होता है जो कि
वर्तमान के 50 वाटर टैंकरों जितना पानी है। जहाँ प्रधानमन्त्री मोदी जल संरक्षण को को बढावा दे रहे है वही जल संरक्षण की पुरानी टेक्नोलॉजी और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का बेहतरीन सुनियोजन मेवाड के राजाओं ने 200 साल पहले ही कर लिया था और कमोबेश आप हर मेवाड़ी दुर्ग,महल,मंदिर या अन्य महलों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कही न कहीं देख लेंगे क्योंकि राजाओं के पूर्वज इन्हे समझा गए थे अकाल का दर्द और पानी का महत्व।
फिर गढ़ के अन्दर मुख्य होल में एक बड़ा सा दरीखाना है ,जहां पर अन्दर फव्वारो की व्यवस्था हैं और पीतल के फ़व्वारे भी ऐसे जिसमें चमक आज तक है। इसी दरीखाने में अंदर सामने पोल के नीचे सफ़ेद पत्थर के स्तंभो पर उभरे हुए फूलो की खूबसूरती देखते ही बनती है। इन्ही स्तंभो के ठीक ऊपर तीन सुन्दर नक्काशीदार गोखडें बने हुए जिसमे बीच वाला काले पत्थर का बना हुआ है और अन्य दो सफ़ेद संगमरमर से बने है। पीछे की ओर काफी बड़ा गोल दालान सा बना हुआ है।
महत्वपूर्ण बात ये कि सज्जनगढ़ जहाँ अपने बेस से चार मंजिल ऊँचा है वही ये तीन मंजिल नीचे ओर है। नीचे की तरफ गुप्त कमरे है और दो मंजिल नीचे जाने पर अंतिम दो कमरों में पत्थरों के नीचे से गुप्त रास्ता जाता दिखता है (देखे वीडियो) लेकिन इन दोनों अंतिम कमरों में सुरंग जैसे लगने वाले इन गुप्त रास्तों को मलबे से पाट दिया गया है और ज्यादा जानकारी इस बावत न्यूज़एजेंसीइंडियाडॉटकॉम की टीम को नहीँ मिल सकी है । एक ओर महत्वपूर्ण बात ये कि इन कमरों की मंजिल की संरचना ऐसी है कि आपको नीचे जाने वाली सीढिया दिखती तक नहीं है। इसका मतलब साफ़ है कि कोई नीचे आए तो चकरा जाय कि रास्ता बंद है। अन्तिम कमरों में एक शौचालय भी जिसके पास कमरों में नीचे जाने जैसा कोई रास्ता है और इसमे मलबा पाट दिया गया है।
आप जितना सज्जनगढ़ देखते है उसका आधा हिस्सा जनाना महल है जिसके अंदर प्रवेश करने पर सामने त्रिपोलिया और सामने गणेश देवड़ी भी है। अंदर की ओर चार मंजिला शानदार जनाना महल है जिसमे दूसरे तल पर पुलिस विभाग का वायरलेस ऑफिस भी है जिसमे एक कर्मचारी चौबीसों घंटे रहता है।
महाराणा सज्जनसिंह जी ने जब इस गढ़ को बनवाना प्रारम्भ किया। यह डेढ़ मंजिल तक ही बन पाया और महाराणा सज्जनसिंह का अल्पआयु में देवलोकगमन हो गया। वे इसे सात मंजिल बनाना चाहते थें और इसके लिए पानी के जहाज से बेल्जियम से कांच मंगवाने की योजना थी।
परन्तु आकस्मिक निधन हो जाने पर बाद में महाराणा फतह सिंह जी के काल में इस योजना को छोटा कर दिया गया। कारण था दुर्ग तक दुर्गम पहुँच होना। आज भी इस दुर्ग में पहुंचना दुर्गम और कठिन है। इस गढ़ तक पहुंचने के लिए 11 विकट मोड़ पार करने पर यहां पहुंचा जा सकता है। यहां शिकार के लिए ओदीया बनी हुई है। जंगली जानवरों का यहां डेरा था। बाद में महाराणा फतह सिंह जी के काल में इस गढ़ की योजना में परिवर्तन कर यह गर्मी के मौसम में अपने आवास के रूप में परिवर्तित कर दिया।
सज्जनगढ़ में प्रवेश द्वार के नीचे गढ़ में एक रेस्टॉरेंट भी है जो शायद राजस्थान हेरिटेज गज़ट का उल्लंघन हो सकता है।
बरहाल दोस्तों जाइए और देखिये।
सज्जनगढ़ विरासत ! विरासत उदयपुर ! अदभुत उदयपुर ! शानदार उदयपुर !शानदार मेवाड़ !
इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
Email:erdineshbhatt@gmail.com