पीछोला का निर्माण 1420 ईस्वी में महाराणा लाखा (लक्ष्य सिंह) ने किसी बंजारे से बँधवाया था। पीछोली गाँव की सीमा के पास होने के कारण झील का नाम पीछोला पड़ा। जब उदयपुर को राजधानी बनाया गया तब महाराणा उदयसिंह ने श्रेय लेकर वर्तमान बड़ी पाल को सुदृढ कर पीछोला को बड़ा करवाया।
बाद में महाराणा जगत सिंह प्रथम ,संग्राम सिंह द्वितीय ,भीम सिंह और जवान सिंह समय समय पर पीछोला में अलग अलग निर्माण करवा कर बड़ा और भव्य बनवाते रहे।
1765 में महाराणा भीम सिंह के समय भारी बारिश के कारण पीछोला बांध/झील टूट गयी और आधा उदयपुर शहर बह कर तबाह हो गया। वर्तमान कालाजी गोराजी सहित सूरजपोल,दिल्ली गेट और शहर के निचले हिस्से पानी से डूब गए।
महाराणा जवान सिंह के समय फिर भारी बारिश के कारण पीछोला बांध को खतरा मंडराया तो महाराणा जवान सिंह ने अपने विवेक से पीछोला के किनारे एक बुर्ज जवान बुर्ज (जब्बल बुर्ज) बनवाया और इसके दूसरी ओर दिवार बनवा कर बीच में मिट्टी डाल कर इसे पाटा गया और इसका विस्तार बड़ी पोल तक किया गया। वर्तमान में यह हिस्सा जलबुर्ज से लेकर पिछोला की वर्तमान पाल (जो दूधतलाई के पास स्थित है ) से राजनिवास की बड़ी पोल तक है। इसी दौरान महाराणा जवान सिंह की मृत्यु हो जाती है और बाद में महाराणा सज्जन सिंह जलबुर्ज से लेकर पिछोला की वर्तमान पाल पर दुबारा मिटटी डलवा कर पीछोला का सुरक्षित करवा देते है।
कुल मिलाकर समूचा पीछोला बांध/झील मिट्टी की फ़ीलिंग और मज़बूत दीवारों के बीच लाखों क्यूबिक घन मीटर पानी को आज तक रोक कर रखे है जो मेवाड़ी निर्माण कला की उत्कृष्ट्ता का अनुपम नमूना है।
बड़ी पाल की लम्बाई 334 गज़ और 110 गज़ चौड़ाई है।
दूधतलाई,अमरकुण्ड ,रंगसागर, स्वरुप सागर पीछोला झील के विस्तार का ही हिस्सा है। पहले पीछोला की सीमा केवल सिताब पोल तक ही थी और इसके आगे अमर चंद बड़वा द्वारा बनाया गया अमर कुंड था और इसके चारो ओर पक्के घाट और फव्वारे लगे हुए हुए थे, जिसे बाद में दक्षिण उत्तर दिशा के घाट को तोड़ कर महाराणा सज्जन सिंह ने इसे पीछोला में शामिल करवा लिया।
पीछोला की उत्तरी पाल पर ब्रह्मपोल और उदयपुर शहर के बीच बने पुल के नीचे से 320 साल पहले महाराज कुमार जय सिंह के बनवाये हुए रंग सागर में पानी आने लगा। अम्बावगढ़ का पश्चिमी हिस्सा कुम्हारिया तालाब ,अम्बावगढ़ के नीच ओटे का हिस्सा भी रंग सागर का हिस्सा थे।
वही रंग सागर के उत्तर में स्वरुप सागर है जिसके पानी में कलालों का शिव मंदिर होने के कारण इसे कलाल्या शिव सागर भी कहते है। महाराणा स्वरुप सिंह के समय इसका पूर्वी बाँध टूट गया,उसको 1847 में दुबारा बनवा कर इस हिस्से का नाम स्वरुप सागर रखा गया। महाराणा सज्जन सिंह जी ने पीछोला के बीच के सारे बाँधो को एक साथ मिलाकर एक पीछोला का रूप दे दिया।
इस पीछोला के मध्य दो टापू जल महल,जग मंदिर और जग निवास के नाम से जाने जाते है।जगमंदिर में बड़े गुम्बद की नींव 1615 ईस्वी में महाराणा अमरसिंह प्रथम और बादशाह जहाँगीर से सुलह होने के समय शहजादा ख़ुर्रम के सामने रखी गयी थी। शहज़ादा ख़ुर्रम (जो शाहजँहा के बाद दिल्ली तख़्त पर बैठा था ) ने अपने पिता बादशाह जहाँगीर से बाग़ी होकर पटना ,झाँसी ,मथुरा ,रणथम्बौर और माण्डू आदि स्थानों पर फिरता और लूट पाट करता हुआ बादशाही सेना के पीछे पड़ने पर भयभीत होकर उदयपुर की शरण में आया। तब महाराणा करणसिंह ने अपनी वंश परम्परा निभाते हुए उदारता अनुसार शहजादा ख़ुर्रम को महलों के पास देलवाड़ा की हवेली में रखा। बाद में जब जगमन्दिर में गुम्बद का काम पूरा होने पर खुर्रम को यहाँ रखा गया।
जगमन्दिर के गुम्बद मे जो पच्चीकारी का काम हुआ है वो भारतवर्ष में प्राचीन कला का नमूना है। जगमंदिर में शहजादे ख़ुर्रम ने राफूर नाम फ़क़ीर की मज़ार भी बनवाई। उदयपुर में रहने के दौरान ख़ुर्रम ने महाराणा करणसिंह के साथ पगड़ी बदल कर भाई का नाता जोड़ा और बाद में इस पगड़ी को गुलाब बाग के विक्टोरिया हॉल वर्तमान सरस्वती लाइब्रेरी में रखा गया।
पीछोला का निर्माण 1420 ईस्वी में महाराणा लाखा (लक्ष्य सिंह) ने किसी बंजारे से बँधवाया था। पीछोली गाँव की सीमा के पास होने के कारण झील का नाम पीछोला पड़ा। जब उदयपुर को राजधानी बनाया गया तब महाराणा उदयसिंह ने श्रेय लेकर वर्तमान बड़ी पाल को सुदृढ कर पीछोला को बड़ा करवाया।
बाद में महाराणा जगत सिंह प्रथम ,संग्राम सिंह द्वितीय ,भीम सिंह और जवान सिंह समय समय पर पीछोला में अलग अलग निर्माण करवा कर बड़ा और भव्य बनवाते रहे।
1765 में महाराणा भीम सिंह के समय भारी बारिश के कारण पीछोला बांध/झील टूट गयी और आधा उदयपुर शहर बह कर तबाह हो गया। वर्तमान कालाजी गोराजी सहित सूरजपोल,दिल्ली गेट और शहर के निचले हिस्से पानी से डूब गए।
महाराणा जवान सिंह के समय फिर भारी बारिश के कारण पीछोला बांध को खतरा मंडराया तो महाराणा जवान सिंह ने अपने विवेक से पीछोला के किनारे एक बुर्ज जवान बुर्ज (जब्बल बुर्ज) बनवाया और इसके दूसरी ओर दिवार बनवा कर बीच में मिट्टी डाल कर इसे पाटा गया और इसका विस्तार बड़ी पोल तक किया गया। वर्तमान में यह हिस्सा जलबुर्ज से लेकर पिछोला की वर्तमान पाल (जो दूधतलाई के पास स्थित है ) से राजनिवास की बड़ी पोल तक है। इसी दौरान महाराणा जवान सिंह की मृत्यु हो जाती है और बाद में महाराणा सज्जन सिंह जलबुर्ज से लेकर पिछोला की वर्तमान पाल पर दुबारा मिटटी डलवा कर पीछोला का सुरक्षित करवा देते है।
कुल मिलाकर समूचा पीछोला बांध/झील मिट्टी की फ़ीलिंग और मज़बूत दीवारों के बीच लाखों क्यूबिक घन मीटर पानी को आज तक रोक कर रखे है जो मेवाड़ी निर्माण कला की उत्कृष्ट्ता का अनुपम नमूना है।
बड़ी पाल की लम्बाई 334 गज़ और 110 गज़ चौड़ाई है।
दूधतलाई,अमरकुण्ड ,रंगसागर, स्वरुप सागर पीछोला झील के विस्तार का ही हिस्सा है। पहले पीछोला की सीमा केवल सिताब पोल तक ही थी और इसके आगे अमर चंद बड़वा द्वारा बनाया गया अमर कुंड था और इसके चारो ओर पक्के घाट और फव्वारे लगे हुए हुए थे, जिसे बाद में दक्षिण उत्तर दिशा के घाट को तोड़ कर महाराणा सज्जन सिंह ने इसे पीछोला में शामिल करवा लिया।
पीछोला की उत्तरी पाल पर ब्रह्मपोल और उदयपुर शहर के बीच बने पुल के नीचे से 320 साल पहले महाराज कुमार जय सिंह के बनवाये हुए रंग सागर में पानी आने लगा। अम्बावगढ़ का पश्चिमी हिस्सा कुम्हारिया तालाब ,अम्बावगढ़ के नीच ओटे का हिस्सा भी रंग सागर का हिस्सा थे।
वही रंग सागर के उत्तर में स्वरुप सागर है जिसके पानी में कलालों का शिव मंदिर होने के कारण इसे कलाल्या शिव सागर भी कहते है। महाराणा स्वरुप सिंह के समय इसका पूर्वी बाँध टूट गया,उसको 1847 में दुबारा बनवा कर इस हिस्से का नाम स्वरुप सागर रखा गया। महाराणा सज्जन सिंह जी ने पीछोला के बीच के सारे बाँधो को एक साथ मिलाकर एक पीछोला का रूप दे दिया।
इस पीछोला के मध्य दो टापू जल महल,जग मंदिर और जग निवास के नाम से जाने जाते है।जगमंदिर में बड़े गुम्बद की नींव 1615 ईस्वी में महाराणा अमरसिंह प्रथम और बादशाह जहाँगीर से सुलह होने के समय शहजादा ख़ुर्रम के सामने रखी गयी थी। शहज़ादा ख़ुर्रम (जो शाहजँहा के बाद दिल्ली तख़्त पर बैठा था ) ने अपने पिता बादशाह जहाँगीर से बाग़ी होकर पटना ,झाँसी ,मथुरा ,रणथम्बौर और माण्डू आदि स्थानों पर फिरता और लूट पाट करता हुआ बादशाही सेना के पीछे पड़ने पर भयभीत होकर उदयपुर की शरण में आया। तब महाराणा करणसिंह ने अपनी वंश परम्परा निभाते हुए उदारता अनुसार शहजादा ख़ुर्रम को महलों के पास देलवाड़ा की हवेली में रखा। बाद में जब जगमन्दिर में गुम्बद का काम पूरा होने पर खुर्रम को यहाँ रखा गया।
जगमन्दिर के गुम्बद मे जो पच्चीकारी का काम हुआ है वो भारतवर्ष में प्राचीन कला का नमूना है। जगमंदिर में शहजादे ख़ुर्रम ने राफूर नाम फ़क़ीर की मज़ार भी बनवाई। उदयपुर में रहने के दौरान ख़ुर्रम ने महाराणा करणसिंह के साथ पगड़ी बदल कर भाई का नाता जोड़ा और बाद में इस पगड़ी को गुलाब बाग के विक्टोरिया हॉल वर्तमान सरस्वती लाइब्रेरी में रखा गया।
इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
Email: erdineshbhatt@gmail.com
नोट : उपरोक्त तथ्य लोगों की जानकारी के लिए है और काल खण्ड ,तथ्य और समय की जानकारी देते यद्धपि सावधानी बरती गयी है , फिर भी किसी वाद -विवाद के लिए अधिकृत जानकारी को महत्ता दी जाए। न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम किसी भी तथ्य और प्रासंगिकता के लिए उत्तरदायी नहीं है।