गुलाब बाग का नाम सुनते ही अगर आपको बचपन की याद नहीं आती है तो निश्चय ही आपका बचपन गुलाब बाग़ की बेहतरीन खुशबूदार हवाओं और चिड़ियाओं की आवाज़ों से महरूम रहा है।उदयपुर शहर का सबसे बड़ा आक्सीजन सिलेंडर गुलाब बाग दरअसल सज्जन निवास बाग है पर गुलाब की बड़ी क्यारिआं होने पर स्थानीय लोग इसे गुलाब बाग कहने लगे।
यह बाग जयपुर के रामनिवास बाग की तर्ज पर बनवाया गया था। इस बाग में कई तरह की किस्मों के पुराने दरख़्त है जो किसी ओर बाग में देख़ने को नहीं मिलेंगे। महाराणा सज्जनसिंह जी ने यहां पर युरोपीयन माली को रखकर गुलाब, लीली ओर कई खुबसूरत फुल और दुर्लभ पेड़ लगवाएं। फव्वारों के अन्दर पुतलियां लगवाई जो फव्वारे के साथ मनोरम छटा बिखेरती है। सबसे खास बात ये कि इन सबके रखरखाव के लिए एक नहर (सारण) निकाली गई जो दुधतलाई से चलती हुई समोर बाग से होकर इस गुलाब बाग में पहुंचती है और बाग के अन्दर 11 बावड़ियां है जो कि इस नहर सारण की सहयोगी थी जिसमें पानी सदैव भरा रहता था और कमोबेश आज भी भरा रहता है। कुछ बावडिया आज भी अच्छी स्थिति में है और वास्तु की दृष्टि से सुन्दरतम है जिसमें शिल्पकला और इंजीनियरिंग की कलाकारी देखने लायक है। बाग के लिए ये जल प्रबंधन देखने लायक है।
सज्जन निवास बाग में एक प्राचीन इमारत नवलखा महल है जिसे महाराणा जवानसिंह जी ने 1828 से 1838 के मध्य बनवाया था। होली के अवसर पर महाराणा हाथी पर फाग खेलते हुए मुख्य बाजार से होते हुए यहां आकर शाम तक बिराजते थे और एक दरिखाना (सभा होता था। फिर महाराणा सज्जनसिंह जी ने अपने काल में इस बाग को ओर अधिक मनोरम बनाने के लिए कई निर्माण करवाए।
महाराणा सज्जनसिंह जी इतिहास प्रेमी थे। "वीर विनोद" किताब इन्ही के शासन काल में लिखी गयी थी। यहां एक विशाल इमारत का निर्माण करवाकर उसमें अजायबघर खुलवाया जिसमें पुस्तकों के विशाल भण्डार के साथ शिलालेख पाषाण मुर्तियां ,ताम्र पत्र ,ताड़ पत्र, भोजपत्र आदि पुरा सम्पत्ति का संग्रहालय बनवाया गया। शहजादा खुर्रम की पगड़ी भी पहले यही पडी थी। किताबों का ऐसा जबरदस्त संग्रह पुरे राजस्थान में कहीं ओर नहीं है। वर्तमान में भी कई ज्ञान पिपासु और विध्यार्थी यहाँ रोजाना लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
महाराणा फतह सिंह जी के काल में सफेद संगमरमर की रानी विक्टोरिया की मूर्ति इंग्लैंड से बनवाकर मँगवाई गई और गुलाब बाग में जहां आज गांधी जी की मुर्ति लगी है,वहाँ पर इसे लगाया गया था। आजादी के बाद इस विक्टोरिया की मुर्ति को हटा कर सरस्वती पुस्तकालय के पीछे एक कमरे में रखवा दिया गया था। यह भी इतिहास का हिस्सा होने के साथ अदभूत कारीगरी का प्रमाण है। यह बिना जोइंट के बिना मशीन के हाथों द्वारा बनाई गई है।
इससे आगे वर्तमान लोटन मंगरी है ,जहां पर एक छतरी बनी है। यह खड्ग जी का सिद्ध स्थान है। जहां नवरात्रि में एक साधु महाराणा हम्मीर की खड्ग लेकर नौ दिन तक तपस्या करते थे।महाराणा स्वयं नित्य दर्शन को पधारते थे। फिर आगे वन्य पशुओं और चिड़ियों का चिड़ियाघर था जिसमें पुराने पिंजरे बनें थे जिसमें सावन-भादो का पिंजरा बिशेष था। यह बिन मौसम मोर का नृत्य देखने के लिए सैलानियों के लिए बनवाया गया।
इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
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