महाराणा भीमसिह जी ने अपने राज्य काल में इन्दौर के प्रसिद्ध व्यापारी जोरावर मल बापना को बुलवाया और एक सरकारी दुकान कायम करवाई जिसे रावली दुकान कहा जाता था और इसकी तुलना आधुनिक बैंक से की जा सकती है। महाराणा भीमसिह जी ने जोरावर मल बापना को कहा कि
राज्य के काम में जो रूपये खर्च हो वह तुम इस दुकान से दो और राज्य की सारी आय तुम्हारे यहां जमा रहेगी। आम आदमी भी इस रावली दुकान से रकम साहुकारी ब्याज दर पर ले सकता था।
यह व्यवस्था चलती रही लेकिन बाद में महाराणा स्वरुप सिंह जी के काल में अकाल की वजह से मेवाड़ राज्य पर कर्ज हो गया और यह रकम बीस लाख रुपए थी।महाराणा स्वरुप सिंह जी इस कर्ज का निपटारा करना चाहते थे। यह बात जोरावर मल बापना को महाराणा के मध्यस्तो के द्वारा पता लगी।
महाराणा के मन में भी संकोच था कि कहीं बात खाली नहीं चली जाए ! यह एक स्वाभाविक बात थी।
तब जोरावर मल बापना की हवेली जो कि जड़ियों की औल ,बदनौर कि हवेली के पास स्थित है, में महाराणा को पामणा अर्थात मेहमान बना कर पधरावणि करी और यह एक बहुत ही बडी इज्जत मानी जाती थी जिसमे एक विशाल कार्यक्रम होता था। कार्यक्रमानुसार महाराणा जोरावर मल बापना की हवेली में पधारे।
महाराणा के मन में उस समय भी संशय था कि क्या बापना उनकी बात बिना किसी शर्त मानेंगे ?अतः महाराणा ने परीक्षा ली कि जिसके सामने वो वैठे है उसका इतना वकार भी है या नहीं?
तब खाना खाते हुए महाराणा ने कहा तुमने खाने मे घी इतना डाला कि मेरे हाथ कि अंगुठी फिसलकर खो गई है।
जोरावर मल बापना तुरन्त महाराणा का इशारा समझ गया उसने तुरन्त नौकरों को कहा कि अंगुठी ढूंढकर लाओ। सेठ का इशारा पाकर नौकर थाली भर भर कर जवाहरात ओर जेवर लाकर सेठ के सामने रखते। तब सेठ ने महाराणा से विनय कि अभी अंगुठी ढूंढवाता हूँ। जोरावर मल के इस वैभव को देखकर महाराणा अभिभुत हुए और विश्वास के साथ कर्ज सम्बंधित अपनी बात रखी।
28 मार्च 1846 को जोरावर मल बापना की हवेली से मेवाड़ के कर्ज का निपटारा हो गया।
तब जोरावर मल बापना को नगर सेठ की उपाधि से नवाज़ा गया और जिकारा, ताजिम और पालकी की इज्जत उन्हें बख्शी गयी।
यह हवेली आज भी अपने वैभव कि दास्तां कि गवाह हैं। कुछ हिस्से में होटल बन गई और कुछ में किरायेदार है। कुछ हिस्सा जर्जर है। नगर निगम को इसे हेरिटेज वॉक में डालकर इसका इतिहास बाहर लगाना चाहिए ताकि पर्यटक बाहर से गोखडे दरवाजे देख कर वैभव की शान इस जोरावर मल बापना हवेली को निहार कर मेवाड़ के इतिहास को जान सके।
इतिहासकार : जोगेन्द्र राजपुरोहित
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
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