माननीय उच्च न्यायालय ने गुलाब कोठारी की पत्र याचिका पर आदेश दे रखे हैं कि किसी भी क्षेत्र के जोनल प्लान (मास्टर प्लान व ग्राम या कस्बा प्लान के बीच की कड़ी) स्वीकृत किये बिना अनियमित बस्तियों में पट्टा वितरण नहीं किया जाय। इस बाधा से निपटने के लिये सरकार फटाफट जोनल प्लान बना रही है।
उदयपुर के उत्तरी भाग के प्रस्तावित जोनल प्लान में सुखाड़िया सर्कल से साइफन तक की सड़क 150 फुट (45 मीटर) व साइफन से चिकलवास तक 100 फुट (30 मीटर) , सेवा मंदिर से चुंगीनाका तक 80 फुट (24 मीटर) चौड़ी प्रस्तावित की गई है और इनके दोनों तरफ़ मिश्रित उपयोग (यानि व्यावसायिक एवं आवासीय) प्रस्तावित है ।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि जितनी सड़क ज्यादा चौड़ी होती है उतनी ही अधिक मंज़िलों की स्वीकृति मिलती है ।
इन सब प्रस्तावों से स्वतंत्रता पूर्व का हरा भरा, शांत व कम आबादी घनत्व का फतहपुरा क्षेत्र बहुमंज़िले व्यावसायिक कॉम्प्लेक्सों में और अधिक तेज़ी से परिवर्तित हो जायगा जिसे महा बापू बाज़ार कहा जा सकता है। सड़कें इतनी अधिक चौड़ी करने में कई भवन ध्वस्त होंगे । साथ ही सैंकड़ों विकसित पेड़ भी काटे जायेंगे और करोड़ों का मुआवज़ा भी चुकाना पड़ेगा। लेकिन इससे आज के मापदंडों के अनुसार सही मायनों में फतहपुरा आधुनिक रूप से विकसित हो जायगा, कंक्रीट के जंगल होंगे, शोर होगा, प्रदूषण बढ़ेगा, भूजल दोहन बढ़ेगा ।
सबसे आश्चर्यजनक प्रस्ताव चिकलवास फीडर नहर पर दोनों तरफ 40 - 40 फुट यानि कुल 80 फुट चौड़ी सड़क बना कर दोनों तरफ़ मिश्रित उपयोग (यानि व्यावसायिक एवं आवासीय) की स्वीकृति देने का है, जो इस नहर के पश्चिम की ओर की पहाड़ियों का बरसाती पानी फीडर नहर में आने से रोकेगा और फतहसागर के केचमेंट (जल ग्रहण क्षेत्र) पर विपरीत प्रभाव डालेगा। नहर में गंदा पानी और कूड़ा कचरा भी बढ़ना निश्चित है ।
दो छोटे-छोटे गाँवों को जोड़ने वाली सड़कें भी कहीं कहीं 150 फुट चौड़ी प्रस्तावित हैं जबकि अधिकांश लंबाई में एक तरफ़ पहाड़ व दूसरी तरफ हरित क्षेत्र है । ऐसे प्रावधान किसको लाभान्वित करेंगे यह जानकारी जुटाना सामान्य नागरिक के बस का नहीं है । सड़कें प्रस्तावित करते समय यह भी ध्यान नहीं रखा गया है कि मौके पर घनी आबादी है या कि भूमि अभी अविकसित है और कम तोड़फोड़ व कम मुआवज़े में सड़क बन सकती है।
इस प्लान पर आपत्तियाँ पेश करने के लिये 20 दिन का समय दिया गया था जो 18.11.2021 को बीत गया है। निर्धारित समय में उक्त सभी आपत्तियाँ दर्ज कराई हैं। पर परम्परा यह रही है कि कानून की पालना के लिये न्यूनतम समय दे कर खानापूर्ति कर दी जाय और आपत्तियों को दरकिनार कर दिया जाय ।