उदयपुर, 23 नवम्बर 2022 : उदयपुर शहर में आने वाले पर्यटकों और स्थानीय जनता की पसंदीदा जगहों में से एक मांझी का घाट पर देवस्थान विभाग के ठेकेदार द्वारा प्रवेश शुल्क लगने के बाद से घाट ठेकेदार की निजी संपत्ति सा हो गया है। पहले तो ठेकेदार ने प्रवेश शुल्क के साथ ही जमकर मोबाइल शुल्क भी वसूला। किसी से 110 तो किसी पर्यटक से 210 रुपये लेने की शिकायतें भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई। बाद में भारी जनविरोध और स्थानीय प्रशासन के दखल के बाद मोबाइल शुल्क को टेंडर की शर्तों के अनुरूप न होना स्वीकार कर मोबाइल शुल्क न लेने के आदेश जारी हुए। लेकिन हालात अब भी न बदले, वर्तमान स्थिति यह है कि अब आगंतुक मोबाइल तो ले जा पा रहे है, लेकिन ठेकेदार के गार्ड मोबाइल से फ़ोटो खींचने पर प्रवेशार्थियों को दौड़ दौड़ कर रोक रहे है। वहीं सोशल मीडिया में कुछ घटनाओं में मोबाइल छीने जाने की भी बात कही जा रही है।
पत्रकार ,RTI एक्टिविस्ट और सिविल इंजीनियर जयवंत भैरविया ने जब सूचना के अधिकार कानून में देवस्थान द्वारा माँझी के घाट को सार्वजनिक संपत्ति न मान ठेके किये जाने पर टेंडर की कॉपी , मांझी के घाट के स्वामित्व दस्तावेज और देवस्थान के अधिकारों सहित अन्य बिंदुओं पर सूचना मांगी तो 2 महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी सूचना नहीं दी गई और प्रथम अपील करने पर मुख्य बिंदुओं की सूचना न देकर आंशिक सूचना दी गयी जिसे देख ऐसा लगता है कि देवस्थान के अधिकारियों का स्नेह और झुकाव गुलाबी रंग की तरफ ज्यादा है और जनता की तरफ बिल्कुल नहीं।
ये माँगी गई थी सूचना
(1) देवस्थान विभाग उदयपुर के पास अमराई घाट के स्वामित्व अधिकार मय दस्तावेजों की सूचना प्रदान की जाए।
(2) देवस्थान विभाग द्वारा अमराई घाट पर दिये गए समस्त ठेकों , निविदाओं, शर्तो , समस्त दस्तावेजों की सत्यापित सूचना प्रदान की जाए।
(3) देवस्थान विभाग द्वारा अमराई घाट से होने वाली आय व्यय की समस्त सूचना प्रदान की जाए।
(4) देवस्थान विभाग अमराई घाट को सार्वजनिक संपत्ति नही मानता, इस हेतु देवस्थान विभाग के पास उपलब्ध दस्तावेजों की सूचना प्रदान की जाए
देवस्थान विभाग का जवाब
देवस्थान ने बिंदु संख्या 2 व 3 की आंशिक सुचना दी और महत्वपूर्ण बिंदुओं की सूचना देने की जगह शब्दो का खेल कर सूचना को दिए जाना संभव नही होना बताया। अब महत्वपूर्ण बात यह निकल कर आती है कि इस प्रकार का जवाब तो आवेदन के समय ही दिया जा सकता था। इतना समय गुजरने और प्रथम अपील के बाद भी सूचना न देना, किसी बड़ी गड़बड़ी और अनियमताओ की और ही इशारा करता है।
प्रश्न तो उठते है कि यदि स्वामित्व दस्तावेज है या फिर छुपा रहे है ? और यदि स्वामित्व दस्तावेज नही है तो टिकट किस आधार पर लिया जा रहा ?
यदि स्वामित्व दस्तावेज होने के बाद भी छुपा रहे है तो किसके फायदे के लिये ऐसा किया जा रहा?
देवस्थान विभाग ने निविदा केवल प्रवेश शुल्क और प्रिवेडिंग फ़ोटो शुल्क हेतु आमंत्रित की थीं, तो फिर स्थानीय नागरिकों और पर्यटकों के मोबाइल से फ़ोटो लेने पर किस बात का शुल्क ?
सिटी पैलेस, लेक पैलेस, गणगौर घाट, पिछोला और अन्य प्राकृतिक दृश्यों पर देवस्थान और ठेकेदार का कोई अधिकार नहीं तो फिर उनके फ़ोटो का किस बात का शुल्क ?
ठेकेदार ने कैमरा मेन हेतु जो रसीदें छपवाई उसका अनुमोदन सहायक देवस्थान आयुक्त द्वारा कराया गया या नही ? यह भी सूचना नहीं दी गई।
साथ ही आंशिक सूचना से भी जो अनियमिताएं उजागर हो रही है, वह भी गंभीर विषय है।