उदयपुर की झीलें न केवल उदयपुर की शान हैं, बल्कि प्राण है, आत्मा है, खुशी है, जीवन है उदयपुरवासियों के लिए। झीलों का पानी न केवल पीने के लिए प्रयोग किया जा रहा अपितु इस पानी का प्रयोग नाव चलाने को लेकर पर्यटन की दुहाई से जुड़ता चला आया है। उदयपुर की झीलों के मालिक भी अलग अलग हैं। पीछोला झील का मालिकाना हक उदयपुर नगर निगम के पास है तो फतहसागर झील उदयपुर विकास प्रन्यास के पास है। नियमों की मानें तो ये दोनों निकाय ही झील में नाव संचालन और अन्य गतिविधियों की अनुमति देने के लिए अधिकृत नहीं हैं।
झील में किसी भी तरह की मानवीय गतिविधियों के लिए जैसे पानी का दोहन, नाव संचालन, मछली पकड़ने का ठेका, झीलों में वाटर स्पोर्ट्स और अन्य निर्माण आदि के लिए अनुमति देने के लिए अधिकृत तौर पर राजस्थान झील विकास प्राधिकरण अधिकृत है। इस प्रकार की गतिविधियों को अनुमति राजस्थान झील (संरक्षण और विकास) प्राधिकरण अधिनियम - 2015 (2015 का अधिनियम संख्यांक 5) और राजस्थान झील (संरक्षण और विकास) प्राधिकरण अधिनियम - 2016 के तहत ही दी जा सकती है। इसके बिन्दु संख्या 5 के पहले वर्णन में स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक नगर नियोजन प्राधिकारी किसी भी झील के अन्तर्गत आने वाले किसी क्षेत्र या स्थान से संबंधित विकास योजना तैयार करने से पहले झील विकास प्राधिकरण से परामर्श करेगा और प्राधिकरण के पूर्व अनुमोदन के बिना विकास योजना अनुमोदित नहीं की जा सकेगी।
जहां तक जिला स्तरीय समिति की बात है, राज्य सरकार के आदेश दिनांक 23.02.2015 द्वारा गठित जिला स्तरीय समिति को सरकार ने तीन दायित्व सौंपे हैं।
1. झीलों का सर्वे कर सीमांकन के प्रस्ताव भेजना तथा विकास की योजना बनाकर प्रेषित करना।
2. झीलों के अंदर व पास के संरक्षित क्षेत्र में अनधिकृत गतिविधियां रोकना।
3. संरक्षित क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण को रोकने के लिए सभी कदम उठाना
उपरोक्त तीन दायित्व सरकार ने जिला स्तरीय समिति को प्रदत्त किए हैं। बहरहाल, उनकी प्रगति लगभग शून्य है, जबकि ये झीलों के संरक्षण की प्राथमिक आवश्यकताएं हैं। झीलों के आसपास अवैध निर्माण बेरोकटोक आज भी जारी है और होटल संचालकों की ‘छांव’ में नाव माफिया झीलों को बर्बाद किये जा रहे हैं। इससे ये साफ हो जाता है कि इस प्रकार होटलों की निजी नावों के संचालन संबंधी कोई आदेश प्रसारित करने या अनुशंसा करने के लिये जिला स्तरीय झील समिति अधिकृत ही नहीं है।
झील विकास प्राधिकरण अधिनियम की धारा 3 के अन्तर्गत झील में कोई भी मानवीय गतिविधि करने के लिये प्राधिकरण की अनुमति आवश्यक है,जिसके लिये राजस्थान झील (संवर्धन व विकास) प्राधिकरण नियम 2016 के नियम 4 के अंतर्गत संबंधित को निर्धारित फॉर्म बी में प्रार्थना पत्र सीधा प्राधिकरण को भेजना होता है और प्राधिकरण इसे फ़ॉर्म सी में एक रजिस्टर में दर्ज करता है। फिर स्थानीय निकाय से टिप्पणी माँगी जायगी और यह संतुष्टि की जायगी कि इस स्वीकृति से झील विकास व संवर्धन पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा और उसके बाद फॉर्म डी में अनुमति दी जायगी । इस प्रकार न तो प्रशासन का, न ही नगर निगम का कोई प्रत्यक्ष दखल इस पूरी प्रक्रिया में कानूनन नहीं है ।
राजस्थान झील विकास प्राधिकरण की नियमावली जब स्पष्ट कहती है कि होटलों की निजी नावों के संचालन संबंधी कोई आदेश प्रसारित करने या अनुशंसा करने के लिये स्थानीय जिला स्तरीय समिति अधिकृत ही नहीं है, ऐसे में स्थानीय स्तर पर किए गए निर्णय विधिनुसार कितने मान्य होंगे, या झीलों की सेहत को कितना प्रभावित करेंगे, इस पर विचार जरूरी है। झीलों के संरक्षण की चिंता को लेकर ही प्राधिकरण ने इन नियमों का प्रावधान किया होगा, इन नियमों को बनाने वाले भी वरिष्ठ ही रहे होंगे, लेकिन इनकी अनुपालना को लेकर अब सवाल खड़े हो रहे हैं।
उदयपुर की झीलों से संबंधित नाव अनुज्ञा नवीनीकरण नहीं करने का फैसला उदयपुर के नागरिकों द्वारा चुने गए 70 प्रतिनिधियों की सभा ने बहुमत के आधार पर किया है। इसमें किसी प्रकार का फेरबदल प्रशासनिक स्तर पर किया जाना केवल मेयर का या पार्षदों का नहीं, उदयपुर की जनता द्वारा दिए गए जनादेश का भी खुला अपमान क्यों नहीं कहा जा सकता।
स्थानीय अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर झील के पारिस्थिकी तंत्र की परवाह किये बिना फैसले किये जा रहे हैं। नगर निगम और नगर विकास प्रन्यास नाव संचालन के ठेके बिना झील विकास प्राधिकरण के अनुमोदन से जारी कर रहे हैं, और तो और नगर विकास प्रन्यास एक कदम आगे बढ़ते हुए झीलों में वाटर स्पोर्ट्स के टेंडर जारी कर रहा है।
मत्स्य विभाग भी पीछे नहीं है, झील विकास प्राधिकरण के बिना अनुमोदन से झीलों में मछली पकड़ने के ठेके दिए जा रहे हैं, जबकि मछलियां झील के पारिस्थिकी तंत्र का मुख्य घटक होती हैं और झील की सफाई में अपना योगदान देती हैं।
पहले से ही उदयपुर की झीलों में नावों के बेतहाशा लाइसेंस जारी किए थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि केवल पीछोला झील में अनुमानित तौर 78 नावों को लाइसेंस दिए गए थे। जब स्थानीय नागरिकों ने इस बाबत विरोध किया तो उदयपुर नगर निगम महापौर ने संजीदगी दिखाते हुए उन होटल वालों के लाइसेंस रिन्यू करने से मना कर दिया जिनके पास आवागमन के लिए पहले से सड़क मार्ग उपलब्ध है। साथ ही निगम की राजस्व समिति की बैठक में इस पर सहमति भी प्रदान की गई थी।
लेकिन, होटल वाले अपनी गुहार लेकर जिला कलेक्टर के पास पहुंच गए और पर्यटन का हवाला देकर नाव संचालन जारी रखने की मांग की। इस पर जिला स्तरीय समिति की बैठक में तकरीबन 18 नावों को झील से बाहर करने की बात की गई और सड़क मार्ग वाली होटलों को भी नाव संचालन के लिए अधिकृत किया गया जो कि जनभावनाओं के सर्वथा विपरीत ही कहा जाएगा।
कुल मिलाकर अफसोस की बात यह है कि झीलों का हर कोई अपने-अपने लाभ के लिए दोहन करना चाहता है, मेवाड़ क्षेत्र में आजादी के बाद एनीकट बने, लेकिन पीछोला-फतहसागर जैसी नई झीलें नहीं बनी, और अब जो थाती उपलब्ध है उसकी आयु को सुरक्षित रखने के प्रयास कम ही नजर आते हैं। जनता का क्या है, उसे तो पांतरे पानी आ रहा है, वह उसी में खुश है, ज्यादा हुआ तो स्मार्ट सिटी में आरओ वाटर की सप्लाई का ‘नेग’ दे दिया जाएगा... बाकी झीलों का क्षेत्रफल घटे या बढ़े.... जनता की कौन सुनेगा और जनता किसे सुनाए...!