नेटबन्दी या दैनिक जीवन की छुट्टी ?
सरकार के निर्देशानुसार , आपके क्षेत्र में इंटरनेट सेवा अगली सूचना आने तक बंद कर दी गई है , ये मैसेज आज के डिजिटल हो चुके दैनिक जीवन को भयभीत कर देने वाला बन चुका है, जब भी किसी सरकारी भर्ती परीक्षा के एग्जाम होते है तो नकल की आशंका और अफवाह न फैले इस नाम पर प्रशासन तुरंत ही आनन फानन में इंटरनेट बंद कर देता है, जिसके बाद बिजली पानी की तरह आवश्यक बन चुके इंटरनेट के अभाव में व्यापारी, व्यवसायी, विद्यार्थी , नोकरी पेशा व्यक्ति और हर आम व्यक्ति जो इंटरनेट आधारित क्रिया कलापो से जुड़ा होता है, उसका जीवन एक तरह से शट डाउन हो जाता है।
जिन क्षेत्रों में बिजली का अभाव है वहाँ भी इंटरनेट की पकड़ है, लोग जेब मे पर्स की जगह विभिन्न पेमेंट गेटवे एप्पलीकेशन में पैसा रखते है, आज के समय मे इंटरनेट का ईमेल ही डाकिया है और मोबाइल ही tv, छोटे से लेकर बड़े व्यापारियों का गल्ला भी इंटरनेट के माध्यम से ही चलता है, यू ट्यूब के शैक्षणिक वीडियो विद्यार्थियों के लिये स्वयं पाठशाला है, देश से लेकर विदेश मे रहने वाले लोगो के लिये अपने परिजनों से बात इंटरनेट वीडियो कॉलिंग के जरिये ही हो पाती है। बैंक से लेकर विभिन्न सरकारी विभागों के तमाम कार्यो के लिए आजकल घर से बाहर निकलने की आवश्यकता नही होती उसके लिये उन विभागों की वेबसाइट पर ही सेवाओं को प्राप्त किया जा सकता है। रेलवे और बस यात्रा करने वालो के लिये भी इंटरनेट बहुत बड़ी सुविधा है।
लेकिन जिस दिन प्रशासन नेट बंद कर देता है उस दिन दैनिक जीवन को ही लोक डाउन लग जाता है। प्रशासन को इससे चाहे फर्क न पड़े लेकिन नेटबन्दी से जो नुकसान होता है उसका असर आम जनता ही संमझ सकती है, नकल और पेपर लीक जैसी समस्याओं के लिये जिम्मेदार तंत्र के अंदर ही ढूंढे जाने चाहिए न कि नेटबन्दी कर आम जनता को नुकसान पहुँचाने का अतार्किक कठोर निर्णय लेना चाहिए