सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय संविधान के तहत राजस्थानी को आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल करने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि ऐसा निर्णय न्यायपालिका के बजाय सरकार के दायरे में आता है।
कोर्ट ने कहा , "सुप्रीम कोर्ट यहां निर्देश जारी नहीं कर सकता। सरकार को इस संबंध में फैसला लेना होगा।"
याचिका में राजस्थानी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई है।
केंद्र सरकार के वकील ने कन्हैया लाल सेठिया और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि किसी भाषा को अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं, यह एक नीतिगत निर्णय था। राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए राहत की मांग की जा रही है। प्रतिवादी के वकील ने कन्हैया लाल सेठिया 1997 मामले में हमारे फैसले को रिकॉर्ड पर रखा है। हम इस दृष्टिकोण से सहमत हैं। किसी भाषा को शामिल किया जाना चाहिए या नहीं यह एक नीतिगत निर्णय है। हम याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील रिपुदमन सिंह ने तर्क दिया कि यह फैसला इस मामले पर लागू नहीं होता। उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार की नीति भी उनके पक्ष में है और यह मुद्दा 70 साल से अधिक समय से लंबित है।
कोर्ट ने कहा कि चूंकि संघ की नीति याचिकाकर्ता के पक्ष में है, इसलिए वह निर्देश पारित नहीं कर सकता। इसके अलावा, इसने इस बात पर जोर दिया कि समान दावों वाली अन्य भाषाएं भी हो सकती हैं और यह सुनिश्चित किया कि कुछ निर्णय, विशेष रूप से लोकतांत्रिक राजनीति से संबंधित, कार्यकारी शाखा द्वारा किए जाने चाहिए।