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वीडियो:अग्नि स्नान वाली ईडाणा माता जी जो लकवा रोगी स्वस्थ और निःसंतान की झोली भरती है !
उदयपुर शहर से 60 कि.मी. दूर कुराबड- बम्बोरा सलूम्बर मार्ग पर अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थित है मेवाड़ का प्रमुख आराध्य शक्ति-पीठ ईडाणा माता जी जो कि राजपूत समुदाय,भील आदिवासी समुदाय सहित संपूर्ण मेवाड़ की आराध्य माँ भी है।| स्थानीय सहित अन्य राज्य के लोगों में ऐसा विश्वास है कि लकवा से ग्रसित रोगी यहाँ माँ के दरबार में आकर ठीक होकर जाते हैं |आप किसी भी समय 20 -30 लकवा रोगियों को आराम फरमाते देख सकते है जहाँ उनके रुकने के लिए मंदिर परिसर में ही अच्छे इंतज़ाम है।
निसंतान माता पिता की झोली भरने वाली माँ ईडाणा कभी किसी को निराश नहीं करती है| शनिवार और रविवार आप कभी कभी 10 हज़ार से ज़्यादा दर्शनार्थियों को दर्शन लाभ लेते जाते देख सकते है। यहाँ देवी की प्रतिमा माह में अथवा माह अंतराल में स्वतः स्फूर्त जागृत अग्नि प्रकट होती है और माँ ईडाणा अग्नि से स्नान करती है | इस अग्नि स्नान से माँ की सम्पूर्ण चढ़ाई गयी चुनरियाँ, धागे आदि भस्म हो जाते हैं |मान्यता के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक चुनरियों का भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं और इस दौरान स्थानक (शक्तिपीठ) पर अचानक आग धधकने लगती है। (देखे वीडियो) देखते ही देखते अग्नि विकराल रूप धारण कर 10 से 20 फिट तक की लपटो के रूप में पहुंच जाती है मगर श्रृंगार के अतिरिक्त अन्य किसी सामग्री को कोई आंच तक नहीं आती है।
अग्नि स्नान के बाद एक माता की एक चुनरी अवश्य बच जाती है जो अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है | मेवाड़ आँचल और अन्य राज्यों के भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं। (देखे फ़ोटो और वीडियो )इसी अग्नि स्नान के कारण यहाँ माँ का मंदिर आज तक नहीं बन पाया|माँ की प्रतिमा के पीछे बड़े बड़े त्रिशूल लगे हुए है ।यहाँ भक्त अपनी मन्नत पूर्ण होने पर त्रिशूल चढाने आते है | अग्नि स्नान के बाद एक चुनरी का बच जाना किसी चमत्कार से कम नहीं है और विज्ञानं के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है | जबकि मंदिर में दिया और अगरबत्ती दोनों कांच और स्टील के बंद बक्से में जलायी जाती है और कई CCTV कैमरे मन्दिर मे लगे रहते है और अचानक माता किसी भी दिन अग्नि रूप में प्रज्वलित होकर भक्तों को दर्शन देती है|
किवदंती है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था। कई रोचक और अविश्वसनीय चमत्कारों को अपने अंदर समेटे हुए इस मंदिर में बारह महीने भक्तों की भीड़ रहती है।ईडाणा माता का अग्नि स्नान देखने के लिए हर साल भारी संख्या में भक्त यहां आते रहते है। ऐसा माना जाता है कि अग्नि स्नान के समय देवी का साक्षात आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होता है। पुराने समय में ईडाणा माता को स्थानीय राजा अपनी कुलदेवी के रुप में पूजते थे।
इस मंदिर की सबसे खास और रोचक बात यह है कि यहां कोई पुजारी नियुक्त नहीं है।पुजारी नियुक्त होने पर ज्यादा दिन तक पूजा नहीं कर पाता है और बीमार पद जाता है | यही कारण है कि गांव के लोग खुद मां की पूजा करते हैं। उनकी सेवा पूजा करते हैं और देवी भक्ति कर पूण्य लाभ कमाते हैं। एक किवदंती के अनुसार यह स्थान 4500 हजार साल से ज्यादा पुराना है। एक स्थानीय व्यक्ति के अनुसार यहां महाराणा भी पूजा के आया करते थे।निकट ही विश्व की सबसे बड़ी मीठे पानी (लगभग 15 किमी ) झील जयसमंद है जिसका निर्माण महाराणा जयसिंह जी ने करवाया था |
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