7 मई को धौलपुर की सभा में गहलोत के बयानों ने पायलट के साथ समझौते की सभी संभावनाएं और प्रायिकताओ पर विराम चिन्ह लगा दिया । गहलोत बोले -"पिछले साल जब पार्टी के विधायकों की बगावत की वजह से मेरी सरकार गिरने के कगार पर थी, तो मुझे उस समय बीजेपी नेता और राज्य की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे समेत उनकी पार्टी के तीन नेताओं का साथ मिला था। गहलोत ने आगे कहा कि जब भैरो सिंह शेखावत की सरकार थी और मैं कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष था तब शेखावत की सरकार गिराने के लिए बीजेपी वाले मेरे पास आए थे, लेकिन मैंने मना कर दिया था।
कांग्रेस हाईकमान और विशेष रूप से गांधी परिवार चाहता था कि विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच समझौता हो जाए। इसके लिए सीएम गहलोत को मनाने के प्रयास किए जा रहे थे, लेकिन गहलोत ने कहा कि 2019 में सचिन पायलट के साथ कांग्रेस के जो 18 विधायक दिल्ली गए, उन्होंने मेरी सरकार गिराने के लिए केंद्रीय मंत्री अमित शाह, धर्मेन्द्र प्रधान और गजेंद्र सिंह शेखावत से 10-20 करोड़ रुपए लिए। चूंकि करोड़ों रुपया लिया है, इसलिए ऐसे विधायक दबाव में है। गहलोत ने दिल्ली जाने वाले कांग्रेसी विधायकों को सलाह दी कि भाजपा के पैसे लौटा दो। यदि कुछ पैसे खर्च हो गए हों तो मुझे बताएं, मैं कांग्रेस हाईकमान से दिलवा दूंगा।
गहलोत का ये बयान सतही तौर पर कोई राजनीतिक बयानबाजी दिखाई नहीं दे रहा है, बल्कि पायलट के साथ दिल्ली जाने वाले विधायकों पर भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा आरोप है और ऐसा लग रहा है कि गहलोत कांग्रेस हाईकमान को भी सीधे चुनौती दे रहे है कि अब सचिन पायलट से कोई समझौता नहीं हो सकता है। सूत्रों के अनुसार 13 मई के कर्नाटक के चुनाव परिणाम के बाद आलाकमान का राजस्थान के मुद्दे पर आने वाला था, लेकिन गहलोत ने 10 मई के कर्नाटक मतदान से पहले ही राजस्थान की सियासत में हलचल मचा दी है। कांग्रेस आलाकमान के लिए अब चुनौती ये है कि विधानसभा चुनाव से 06 महीने पहले सरकार गिराने की जोखिम कैसे ली ज़ाय?
जिस हिसाब से गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर बयानबाजी की है,उसे देख अनुमान है कि अपनी ही पार्टी के विधायकों पर 10-20 करोड़ रुपए लेने के जो आरोप लगाए हैं, उनके सबूत भी गहलोत के पास हो सकते है। गहलोत एक मझे हुए खिलाड़ी हैं और उन्हें ये भी अनुमान होगा कि मामला पुलिस और कोर्ट में जा सकता है, क्योंकि इसमें पायलट सहित 19 विधायकों की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। यहाँ ये बात भी विचारनीय है कि गहलोत गृह मंत्री भी है, इसलिए पुलिस और जांच एजेंसियां गहलोत के अधीन ही काम कर रही है और चुनाव तक जांच एजेंसियां गहलोत के नक्शे कदम पर ही सुरताल करेंगी। ऐसे में कब किस विधायक के खिलाफ कौन सा मुकदमा शुरू हो जाए , इस प्रश्न का उत्तर अशोक गहलोत के ही पास हैं।
अब प्रश्न ये कि राजस्थान काँग्रेस की लड़ाई में कौन बन गया है फुटबाल ?
कहीं आलाकमान को तो नहीं बनाया जा रहा फुटबॉल?
सोशल मीडिया पर जहाँ एक और कहा जा रहा है कि जिस तरह राजस्थान काँग्रेस में अदावतों का दौर है,उसे देख कर प्रथम दृष्टया कहा जा सकता है कि फिलहाल तो काँग्रेस आलाकमान ही फुटबॉल बना हुआ है। पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरुद्ध जिस तरह मोर्चा खोल दिया है, वह कांग्रेस नेतृत्व के लिए एक बड़ी मुसीबत है। लेकिन इसके लिए वह स्वयं ही अधिक जिम्मेदार हैं। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खटपट नई नहीं और न ही कांग्रेस नेतृत्व समेत अन्य कोई उससे अपरिचित है। दोनों नेताओं के बीच कलह से भली तरह परिचित होते हुए भी कांग्रेस नेतृत्व ने उसे दूर करने की कोशिश नहीं की। उसने समय-समय पर सचिन पायलट को कुछ आश्वासन अवश्य दिए, लेकिन उन्हें पूरा करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ा। यदि उसे अपने आश्वासन पूरे ही नहीं करने थे तो फिर दिए ही क्यों थे? कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत के दबाव का सामना नहीं कर सका और उसने उनके आगे हथियार डाल दिए। यह तभी स्पष्ट हो गया था, जब अशोक गहलोत ने खुद को पार्टी अध्यक्ष बनाने की कांग्रेस नेतृत्व की पहल नाकाम कर दी थी। वह अपनी शर्तों पर कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाह रहे थे। जब नेतृत्व ने उनकी शर्तें मानने से इन्कार किया तो उनकी शह पर उनके समर्थक विधायकों ने बगावत कर दी। यह सीधे तौर पर कांग्रेस नेतृत्व ही नहीं, गांधी परिवार के खिलाफ खुला विद्रोह था, लेकिन कोई कुछ नहीं कर सका। अशोक गहलोत इस विद्रोह को हवा देने के बाद भी अपने पद पर बने रहे।
कहीं राजस्थान काँग्रेस की लड़ाई में वसुंधरा का नाम उछालना राजनीति का नया अध्याय तो नहीं ?
दूसरी और ये भी कहा जा रहा है पिछले दिनों के घटनाक्रम में गहलोत ने जिस तरह भाजपा नेता वसुंधरा राजे का नाम लिया है और पायलट ने कहा कि लगता है अशोक गहलोत की नेता वसुंधरा राजे है,उसे देख कर ये अनुमान लगाना कठीन नहीं है कि काँग्रेस की अंदरूनी लड़ाई में वसुंधरा के नाम की गेंद भी इस पाले से उस पाले फेंकी जा रही है।
राजस्थान काँग्रेस भी खुद बन गयी है फुटबॉल !
वहीं ये भी कहा जा सकता है कि राजस्थान काँग्रेस के दो दिग्गजों की लड़ाई में खुद काँग्रेस ही फुटबाल बनती दिखाई दे रही है क्योंकि बीते दिन जब राहुल गाँधी राजस्थान आए, तब राहुल के साथ मुख्यमंत्री आबू रोड़ नहीं गए और उससे उलट उदयपुर शहर और मावली में महँगाई राहत कैंप में शिरकत कर रहे थे। अमूमन राहुल गाँधी के कार्यक्रमों में अशोक गहलोत सक्रिय रूप से भागीदारी दिखाते है। उधर पूर्व डिप्टी CM सचिन पायलट जयपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जन संघर्ष यात्रा की घोषणा कर पूरे राजस्थान की मीडिया का ध्यान अपनी और खींच रहे थे। ऐसे में लग रहा था कि मीडिया का अटेंशन इन दोनों धुरंधरों के बीच उलझ गया और काँग्रेस खुद फुटबॉल बनती दिखाई दी।
काँग्रेस MLA है पशोपेश में क्या करें और क्या न करें ?
दूसरी ओर ये भी कहा जा रहा है राजस्थान काँग्रेस के दिग्गजों की लड़ाई में दरअसल यहाँ के MLA ही फुटबॉल बने हुए है। कभी गहलोत कहते है कि 2019 में सचिन पायलट के साथ कांग्रेस के जो 18 विधायक दिल्ली गए थे, उन्होंने मेरी सरकार गिराने के लिए केंद्रीय मंत्री अमित शाह,धर्मेंद्र प्रधान और गजेंद्र सिंह शेखावत से 10 -20 करोड़ रुपये लिये है। इसलिए ऐसे विधायक दबाव में है। गहलोत ने दिल्ली जाने वाले कांग्रेसी विधायकों को सलाह भी दी कि भाजपा के पैसे लौटा दो, यदि कुछ पैसे खर्च हो गया तो उन्हें बताएं, वे कांग्रेस आलाकमान से दिलवा देंगें। ऐसे बयानों के बीच दरअसल ये विधायक ही फुटबॉल बनते नजर आ रहे है।
राजस्थान काँग्रेस की लड़ाई ,जनता को अब तक समझ न आई !
वहीं ये कहना भी गलत नहीं होगा कि राजस्थान काँग्रेस की लड़ाई में कहीं जनता तो फुटबॉल नहीं बन गई है क्योंकि जनता को कभी गहलोत बयानबाजी कर कहते है कि खुद इनके ही विधायकों ने भाजपा से पैसा लेकर उनकी सरकार गिराने की कोशिश की और उसके बाद भी जानते बुझते हुए भी इन 18 विधायकों के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही भी नहीं की और अब अब चुनावों के ठीक कुछ महीनों पहले ऐसे बयान दे रहे है । उधर पायलट वसुंधरा को गहलोत की नेता बताने की बातें कह सुर्खियां बटोर रहे है। जनता समझ नहीं पा रही कि आखिर राजस्थान कांग्रेस का भविष्य किस खेमें में जा रहा है?
काँग्रेस कार्यकर्ता भी है पशोपेश में,आखिर ऊँट बैठेगा किस करवट ?
दूसरी ओर ये भी कहा जा रहा कि कहीं काँग्रेस के कार्यकर्ता ही तो इस झगड़े में फुटबॉल तो नहीं बन रहे है क्योंकि काफी बड़ी संख्या में काँग्रेस कैडर का युवा वर्ग सचिन पायलट का फैन बेस है और कई दिग्गज नेता और कार्यकर्ता जो सचिन पायलट ग्रुप के कहे जाते है,वे इस पशोपेश में है कि क्या इस बार उन्हें काँग्रेस के साथ रहकर चुनावों में मेहनत करनी है या पायलट किसी नई पार्टी और अलायंस की घोषणा कर देंगे। ऐसे में अनिश्चितता के भँवर में काँग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता भी राजस्थान काँग्रेस के दिग्गजों की लड़ाई में फुटबॉल बनते नजर आते है।
मीडिया भी पीछे नहीं, अटकलों और सूत्रों के दौर होते जा रहे फैल !
अंत में राजस्थान मीडिया और कुछ दिग्गज पत्रकार भी राजस्थान काँग्रेस की आपसी लड़ाई के बीच फुटबॉल बनते दिखाई दे रहे है। दरअसल दोनों दिग्गजों की अपनी अपनी लॉबी के पत्रकार है और ये पत्रकार भी अंदरखाने से अपुष्ट खबरें चलाकर एक दूसरे की टांग खिंचाई के लिए शगूफा छोड़ देते है। इससे पहले के घटनाक्रम में कई बार पायलट के कांग्रेस छोड़ना तय होने की बात चलाकर कई पत्रकारों ने सनसनी फैलाने की कोशिश भी की, लेकिन फिलहाल आज तक तो पायलट ने काँग्रेस का दामन ही पकड़ा हुआ है। खैर ये तय है कि गहलोत -पायलट की अदावत अब ज्यादा दिन रहने वाली नहीं है और कड़वाहट इतनी बढ़ चुकी है कि अब इन दोनों के बीच सुलह की बात सोचना ही बेमानी है।