डीपीएस स्कूल घोटाला: गरीबों की जमीन और शिक्षा पर डाका, यूडीए ने रिपोर्ट में डाले पर्दे
उदयपुर। आदिवासी और गरीब बच्चों की शिक्षा के नाम पर सरकारी जमीन हासिल करने और फिर उसका दुरुपयोग करने का बड़ा मामला सामने आया है। आरोप है कि डीपीएस स्कूल उदयपुर (दिल्ली पब्लिक स्कूल) को कौड़ियों के भाव करोड़ों की सरकारी जमीन आवंटित की गई, लेकिन तय शर्तों का कभी पालन नहीं हुआ। इस पूरे खेल के सूत्रधार बताए जा रहे हैं मंगलम सोसायटी के चेयरमैन व डीपीएस स्कूल के संचालक गोविंद अग्रवाल। वहीं, उदयपुर विकास प्राधिकरण (यूडीए) पर गंभीर आरोप है कि उसने जांच रिपोर्ट में तथ्य तोड़-मरोड़कर सरकार को गुमराह किया और पूरे घोटाले पर पर्दा डाल दिया।
कैसे मिली स्कूल को जमीन
2005 में गोविंद अग्रवाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जमीन मांगी, दावा किया कि डीपीएस की फ्रेंचाइजी खोलकर गरीब व आदिवासी बच्चों को उच्चस्तरीय शिक्षा, छात्रावास और खेल सुविधाएँ दी जाएंगी।
सरकार ने इन वादों के आधार पर भुवाणा इलाके में 7 एकड़ जमीन (करीब 3 लाख वर्गफीट) सोसायटी को रियायती दरों पर आवंटित कर दी।
लीज डीड की शर्तों में तय किया गया था कि:
- जमीन का उपयोग सिर्फ शिक्षा कार्य के लिए होगा।
- स्कूल में 25% सीटें गरीब, एससी-एसटी, ओबीसी, विकलांग और शहीद सैनिकों के परिवारों के बच्चों के लिए सुरक्षित होंगी और उन पर 50% फीस ही ली जाएगी।
वादे ही रहे, बच्चों को न मिला हक
हकीकत यह है कि डीपीएस उदयपुर ने अब तक आवंटन की इन शर्तों का न पालन किया और न ही गरीब बच्चों को एडमिशन दिया।
स्कूल ने केवल आरटीई (2009) के तहत 25% सीटें आरक्षित दिखाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान ली, जबकि जमीन आवंटन की अलग शर्तें थीं।
इसका मतलब था कि स्कूल को अतिरिक्त 25% सीटें आधी फीस पर गरीब व कमजोर वर्ग के लिए देनी थी, यानी कुल 50% प्रवेश। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ।
कांग्रेस सरकार ने भी दी कथित मदद
कांग्रेस सरकार के अंतिम दिनों में भी डीपीएस को फायदा कराया गया।
विवादित 1 लाख वर्गफीट जमीन, जिस पर वर्षों से स्कूल का कब्जा था, 60 सोसायटियों की सूची में शामिल कर उसे नियमित कर दिया गया।
कुल मिलाकर अब तक डीपीएस को करीब 4 लाख वर्गफीट जमीन दे दी गई, जो भूमि आवंटन नीति 2015 के विपरीत माना जा रहा है।
पत्रकार की शिकायत और जांच का खेल
वरिष्ठ पत्रकार जयवंत भेरविया ने इस घोटाले की शिकायत मुख्य सचिव से की और जमीन निरस्त करने की मांग रखी।
सरकार ने अप्रैल 2025 में यूडीए से जांच रिपोर्ट मांगी।
यूडीए ने रिपोर्ट में लिखा कि 2012-13 से 2024-25 तक आरटीई के तहत प्रवेश दिए गए, और इसे शर्तों का पालन मानकर मामला दबाने की कोशिश की।
बड़ा सवाल
- जब जमीन गरीब और आदिवासी बच्चों की शिक्षा के नाम पर दी गई, तो उन बच्चों को अब तक उनका हक क्यों नहीं मिला?
- क्यों डीपीएस स्कूल और सोसायटी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई?
- और यूडीए ने क्यों आधे सच पर आधारित रिपोर्ट देकर सरकार को गुमराह किया?
सरकार की अग्निपरीक्षा
अब गेंद राज्य सरकार के पाले में है। यदि सरकार ने इस प्रकरण में सख्त कार्रवाई कर जमीन का आवंटन निरस्त नहीं किया, तो यह सवाल उठना तय है कि क्या सरकारी नीतियां वास्तव में गरीब और वंचित वर्गों के लिए हैं, या फिर मुनाफाखोर शिक्षा माफियाओं को फायदा पहुँचाने का जरिया भर?
यह मामला केवल डीपीएस स्कूल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बताता है कि किस तरह नीतियां और रियायतें गरीबों के नाम पर ली जाती हैं और उनके हक पर अमीरों का कब्जा हो जाता है।