राजस्थान के योजना भवन में चल रहे डीओआईटी के दफ्तर के लॉकर में मिले करीब 80 लाख के गोल्ड और दो करोड़ कैश का मामला फिर सुर्खियों में आ गया है।
राजस्थान में बीजेपी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़े एक्शन की तैयारी में है। गहलोत सरकार में सबसे ख़ास अधिकारी अखिल अरोड़ा एंटी करप्शन की रडार पर हैं। योजना भवन में मिले कैश और गोल्ड मामले में सीनियर आईएएस से पूछताछ हो सकती है। मामले में एक्शन लेने के लिए एसीबी ने सरकार से अनुमति मांगी है।
मामले को लेकर दर्ज की गई एफआईआर संख्या 125/2023 को आधार मानकर एसीबी ने अखिल अरोड़ा के खिलाफ केस दर्ज करने की अनुमति सरकार से मांगी है। इसे लेकर 6 अक्टूबर को एसीबी के डीजी हेमंत प्रियदर्शी के हस्ताक्षर के साथ एक पत्र डीओपी (कार्मिक विभाग) को भेजा गया था। लेकिन, डीओपी इस पत्र को दबाकर बैठ गया।
बताते चले कि तत्कालीन सरकार में डीओआईटी के ऑफिस के लॉकर में गोल्ड और करोड़ों रुपये का कैश बरामद हुआ था। मामले में डीओआईटी के तत्कालीन ज्वाइंट डायरेक्टर वेदप्रकाश यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। हालांकि, वेदप्रकाश यादव की स्वीकारोक्ति के बाद बिना जांच किए चालान पेश कर दिया था। ऐसे में अब जांच इस आधार आगे बढ़ सकती है कि ये गोल्ड और कैश कहां से आया?
सरकार बदलने के साथ अरोड़ा की मुश्किलें भी बढ़ती दिख रहीं हैं। मामले में एसीबी ने सरकार को जो पत्र लिखा है उसमें अखिल अरोड़ा के खिलाफ एक परिवाद के आधार पर एफआईआर दर्ज करने की अनुमति मांगी गई है। इसमें परिवादी की पहचान गोपनीय रखी गई है। मामले में रिश्वत देने वाले के संबंध में सूचना को लेकर जांच करने की बात भी कही गई है।
दअरसल, योजना भवन में डीओआईटी का दफ्तर चलता है। जहां रखी अलमारी से एक किलो सोने के बिस्किट और 2 करोड़ 31 लाख 49 हजार 500 रुपये का कैश बरामद हुआ था। मुख्य सचिव ऊषा शर्मा और तमाम बड़े अधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस कर इसकी जानकारी भी दी थी। इसके बाद डीओआईटी के ज्वाइंट डायरेक्टर वेदप्रकाश यादव सामने आए और उन्होंने स्वीकार किया कि ये सोना और कैश उसका था, जिसे उसने अलग-अलग समय पर रिश्वत में लिया था।
बड़े अफसरों को बचाने सरकार ने छोटे पअफसरों को आगे किया
ज्वाइंट डायरेक्टर वेदप्रकाश यादव के सामने आने के बाद भाजपा के तत्कालीन राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाया था कि बड़े अफसर को बचाने के लिए सरकार ने छोटे प्यादे को आगे कर दिया है। घोटाले की सुई डीओआईटी की कंपनी राजकॉम्प इंफो सर्विस लिमिटेड (आरआईएसएल) पर घूम रही थी। जिसमें शीर्ष से लेकर नीचे तक तैनात अफसर कई साल से यहां जमे हुए थे। वित्त विभाग (जिसके एसीएस भी अखिर अरोड़ा ही हैं) ने एक के बाद एक दर्जनों प्रोजेक्ट डीओआई की कंपनी राजकॉम्प इंफो सर्विस लिमिटेड(आरआईएसएल) के मार्फत करवाए।
खास बात यह है कि ज्यादातर प्रोजेक्ट की लागत उनके बजट से कई गुना बढ़ाई गई। आरआईएसएल की लेखा शाखा और एजी की रिपोर्ट में भी इस पर आपत्तियां दर्ज करवाईं गईं। ये सब मामले इस बात की ओर इशारा करते हैं कि मिलीभगत का खेल यहां लंबे समय से चल रहा था। आईएफएमएस 3.0 प्रोजेक्ट का घोटाला भी इसमें शामिल है। प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 289 करोड़ रुपए आंकी गई थी, इसे अप्रैल 2023 में शुरू होना था। लेकिन, प्रोजेक्ट शुरू नहीं हुआ और इसके लिए करीब 800 करोड़ रुपए की पांच अलग-अलग निविदाएं जारी कर दी गईं। सीएजी ने भी इस प्रोजेक्ट को लेकर बार-बार आपत्ति जताई थी। इनके अलावा 640 करोड़ रुपए के ई मित्र प्लस मशीन प्रोजेक्ट, 150 करोड़ का मैन पावर हायरिंग प्रोजेक्ट, ई मित्र एटीएम, भामाशाह डिजिटल पेमेंट किट में भी राजकॉम्प पर गड़बड़ियों के आरोप लगे हैं। जिसकी जांच के लिए एसीबी ने गृह विभाग को पत्र लिखा था।