राजस्थान उदयपुर जिले में नागदा में सास बहू नाम से प्राचीन मंदिरों का समूह है। नागदा मेवाड़ के ईष्ट एकलिंग जी के धाम के पास ही है। मध्य में एक विशाल तालाब स्थित है।यहां के स्थानीय गुहिल शासकों के अभिलेखों में नागदा को नागद्रह कहागया है। तालाब के आखिरी छोर पर पहाड़ी की तलहटी में एक विशाल और ऊंची जगती पर सास बहू के मंदिर अवस्थित है। इनमे दो मुख्य मंदिर एवम अन्य छोटी देवकुलिकाएं है। लगभग सभी छोटे मंदिर ध्वस्त हो गए हैं। मुख्य दोनो मंदिर के गर्भगृह अंतराल और मंडप में निर्मित है। इन मंदिरों का शिखरभग्न हो चुका है। जिन्हे जीर्णोद्धार किया गया है।
इन मंदिरों के स्तंभ और अंदर की छत को खुदाई कर प्रतिमाओं से अलंकृत किया गया है। मंदिरों के बाहरी दीवारों पर विष्णु, शिव, पितामह, अष्ठदिकपाल आदि की भव्य प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। मंदिर को वातानुकूलित रखने के लिए विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों वाली जालिकाएं बनाई गई है।
मंदिर के सामने विशाल तोरण द्वार निर्मित है। ये मंदिर मूल रूप से विष्णु को समर्पित रहे हैं। मंदिर में कालांतर के विभिन्न अभिलेखों में इसके जीर्णोद्धार का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि इल्तुतमिश के आक्रमण में इनमंदिरों को नष्ट किया गया था। सहस्रबाहु मंदिर होने का ऐसा कोई अभिलेख इस मंदिर से प्राप्त नहीं हुआ है। लोक में जिन रिश्तों में ये मंदिर निर्मित हुए वे आज भी उसी नाम से जग प्रसिद्ध हैं सास बहू के नाम से भारत में अनेक मन्दिर हैं। इनका सीधा अर्थ है: जुड़वां प्रसाद। जिसअधिष्ठान, जगती पर दो मन्दिर या निर्माण होते हैं उनको सास बहू, गुरु चेला, मामा भांजा, देवरानी जेठानी आदि नाम दिए जाते हैं। कई बार निर्माताओं के संबंध भी इसका कारण होते हैं। सहस्र बाहू जैसी कल्पना मिथ्या है और भ्रम फैलाने से ज्यादा कुछ नहीं। सहस्रबाहु मंदिर जैसी कोई परंपरा कभी नहीं रही। गुहिल रानी महालक्ष्मी और उसकी बहू हरियादेवी जो हूण राजकुमारी थी, को इन मंदिरों के निर्माण का श्रेय है। बात 10वीं सदी की हैं। (मेवाड़ का प्रारम्भिक इतिहास)
मेवाड़ के प्राचीन तीन मुख्य दर्शनीय मंदिरों में से एक यह सास बहू का मंदिर है जो उदयपुर के नजदीक ही है।किसी भी समय में जाकर इन मंदिरों एवम पास के एकलिंग धाम के दर्शन किए जा सकते हैं।
नरसिंह की दो प्रतिमाएं हैं इनमे एक प्रतिमा में भगवान् नर सिंह हिरण्यकश्यपु को जंघा पर रखकर उसके पेट को चीर कर उसका वध कर रहे, सामान्य तौर पर भगवान नरसिंह का यह रूप अन्य प्रतिमाओं और चित्रोंमें मिलता है। वहीं दुसरी प्रतिमा में भगवान् नरसिंह और हिरण्यकश्यपु दोनों लड़ते हुए प्रदर्शित है। यह स्वरूप दुर्लभ है।
दैनिक जीवन के क्रियाक्रलाप यथा प्रार्थना, नृत्य, गान, युद्ध, प्रेम, श्रृंगार, नायिकाओं आदि का खुबसूरत चित्रण।
देवालय के दाईं और बाईं दोनों तरफ प्रस्तर जालियां बनाई गई जिससे मंदिर वातानुकूलित रह सके। ऊपर स्तंभ पर भारवाहक अंकित है। जालियों के नीचे प्रतिमाओं का विग्रह है जिसमे गरुडवाही विष्णु मुख्य देव के रूप में विराजित हैं।
मंदिरों में भव्य एवम कलात्मक प्रतिमाएं स्थापित है। इन मूर्तियों में उमा महेश्वर, बैकुंठ विष्णुइंद्र, अग्नि, यम और भैरव की मूर्तियां आकर्षण का केंद्र है।
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