अरावली पर्वत श्रंखला हमेशा उदयपुर के लिए महत्वपूर्ण रही है इसमें से खनिज पदार्थ पत्थर निकलते हैं। वर्षा जल में सहायक है। सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।इसी श्रृंखला में आधुनिक उदयपुर के बीचो-बीच एक पहाड़ी है जिसका बड़ा भारी एतिहासिक महत्व रहा है और यह उदयपुर के साथ इतिहास की भी धरोहर है। इस पहाड़ी का प्राचीन नाम मत्स्य शैल रहा है बाद में अपभरञ्श होते-होते यह माछला अर्थात् मेवाड़ी मछली का पुर्लिंग शब्द माछला रह गया। इसीलिए इसको माछला मंगरा भी कहते हैं मंगरा पहाड़ी का पुलिंग शब्द है।
इस पहाड़ी पर एक किला एकलिंग गढ़ के नाम से मशहूर है। इस गढ़ का भी अपना इतिहास रहा है। इस गढ़ को बनवाने वाले उदयपुर के प्रधान अमरचंद वडवा नामक ब्राह्मण थे। महाराणा भीम सिंह जी के काल में यहां एक बहुत विशालकाय तोप इस गढ़ पर चढ़वायी गयी। इस तोप का गोला देबारी दरवाजे तक मार करता था। मराठा आक्रमण के समय इस तोप के प्रहार से मराठा सेना को सन्धि पर मजबुर कर दिया था। उस समय आक्रमण को विफल कर दिया।बाद के समय आजादी के काल तक प्रतिदिन में रात बारह बजे तोप से गोला दागा जाता था और फिर उदयपुरी(मेवाड़) के सभी द्वार बंद कर दिए जाते।
उस समय तक आम आदमी तक घड़ी का प्रचलन नहीं था फिर यह तोप लोगों को सचेत करने में काम आती थी जैसे कि अति वृष्टि की परिस्थिति में जब शहर में पानी बेकाबु हो जाता तो तोप का धमाका होते ही शहर मे ऊंची जगहों पर चले जाने की सुचना मानी जाती थी। इस तोप को समय पर चलाने के लिए मेवाड़ का पहला सन डायल अर्थात धुप धडी इतिहासकार जोगेंद्र सिंह के परदादा शम्भु नाथ जी ने लगाई थी। यह तोप महाराणा भूपालसिंह जी के काल तक लगातार काम करती रही।
इस तोप का नाम दुश्मनभंजक था। यह बड़ी भारी तोप थी और आजादी के बाद यह ऐतिहासिक महत्व की तोप मानी जा सकती है इसमें कोई सन्देह नहीं है। कोई कहता है कि इसे गलवा कर काट कर बेच दिया गया। उस समय के पी डब्ल्यू डी मैनटेनेन्स सुपरवाइजर के अनुसार गढ़ की बाकी की सामग्री पी. डब्ल्यू. डी. डिपार्टमेंट में जमा कराई थी। इसके बाद यह सब प्राचीन इतिहास की सामग्री कहां गयी ? एतिहासिक विरासत की दृष्टि से महत्वपूर्ण सामान गायब हो जाना सन्देह प्रकट करता है।
संकलनकर्ता और इतिहासकार :
जोगेन्द्र पुरोहित
घाणेराव घाटी ,उदयपुर (राजस्थान)
शोध : दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
Email:erdineshbhatt@gmail.com
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