मेवाड़ पुराकाल से शूरवीरों की धरती रही है और यहाँ के महाराणाओं ने मरना स्वीकारा लेकिन किसी के आगे झुकना नहीं। युद्ध कौशल में निपुण इन योद्धाओं का जो सबसे बड़ा साथी हुआ करता है ऐसे जीव घोड़ों को सदैव यहाँ सम्मान से देखा जाता रहा है।
ऐसी एक कहानी है महाराणा प्रताप के जमाने से जुडी है। एक दिन एक सौदागर आया और उसने महाराणा उदय सिंह जी को 2 घोड़े बताए। एक का नाम ऐटक था और दुसरे का नाम चेटक। जब उदयसिह जी ने सोदागर से खासियत पुछी तब सोदागर ने दो खड्डे खुदवाकर ऐटक घोड़े के खुर उसमें डलवा कर पीघला सीसा भरवा दिया। फिर महाराणा के बहतरिन चाबुक सवार को घोड़े के एड लगाने को कहा। घोड़े ने इतनी ताकत से उछाल मारी कि उसके खुर उस गड्ढे में रह गए। तभी कुंवर प्रताप ने वह चेटक घोड़ा खरीद लिया ऐसी कथा है।
मेवाड़ में आज भी माणकचौक राजमहल उदयपुर में अश्व पुजन धुमधाम से होता है। यहां पर जब घोड़े बुढ़े हो जाते या बीमार हो जाते तब उन्हें सादड़ी भेज दिया जाता और राजमहलों की तरफ से दाना चारा पानी की आजीवन व्यवस्था कर दी जाती अर्थात घोड़ो को पेंशन दे दी जाती।
मेवाड़ में हर जाति में एक से एक अच्छे सवार हुए। इन्ही में तीन का प्रसंग है। एक जैन जाति के थे ,जो नाथ जी के नाम से राजपुताने में मशहूर थे। दुसरे शालु खां जो मुस्लिम समुदाय के थे और एक शम्भु नाथ जी (इतिहासकार के परदादा जी ) जो ब्राह्मण थे उनके बारे में मेवाड़ में मशहूर था कि घोड़ा व घड़ी शम्भु नाथ जी के मुकाबले कोई नहीं रख सकता है।
बात महाराणा सज्जनसिंह जी के समय से जुडी है। महाराणा एक बार पिछोला के रुण में घोड़े पर सवार होकर निकले। साथ में नाथ जी भी थे। एक खच्चर रुण में घास चर रहा था। महाराणा के साथ वालों ने कहा कि नाथ जी अगर इस खच्चर को फिरत अर्थात चाल सिखा देवे तो जाने ! नाथ जी को बात चुभ गई हालांकि महाराणा कुछ नहीं बोले। नाथ जी ने एक चाबुक सवार को चुपचाप खच्चर लाकर अपने मकान पर बांधने को कहा। छः माह बाद घोड़े बेचने वाला सौदागर आया। उस समय अमल के कांटे पर घोड़े की खरीद हुआ करती थी। वहां पर एक चबूतरे पर महाराणा विराजते और घोड़ों का मुआयना करते।
लेकिन इससे पहले कि महाराणा पधार कर चबूतरे पर विराजते ,नाथ जी ने पहले ही अपना तैयार किया खच्चर उस सौदागर के घोड़ों के साथ बांध दिया जब राणा पधारे तब सौदागर ने उस खच्चर की चाल महाराणा को बताई।
महाराणा उस खच्चर कि रेवाल चाल देख कर चकित हो कर उस सौदागर से 2000 रूपयों में उसे खरीद लिया तब उन्हें पता लगा कि यह वही खच्चर है जिसे नाथ जी ने माल मसाला खिला कर उसमें बेहतरीन फिरत डाल दी। महाराणा सज्जनसिंह जी ने उस खच्चर का नाम छोटी गुल जी रखा। महाराणा जब तफरीह अर्थात घुमने जाते तब तामझाम के बजाय उसी पर सवार होकर जाते। इस खच्चर का चित्र महलों के दिलखुशाल महल के गोखडे की दिवार पर आज भी लगा है।
एक बार महाराणा जयपुर गए। एक दिन शाम के समय जयपुर महाराजा महाराणा को अपने घोड़ों के बारें में बता रहे थे, तब उन्होंने नाथ जी को भी फिरत दिखाने को कहा तब वे उन्हीं घोड़ों में से एक को लेकर गए और आ गए जयपुर। तब नाथ जी ने अनुरोध किया कि आप हमारे सवार घोड़े के पैर के निशान को देखिये। जयपुर महाराजा आश्चर्य चकित हुए हो गए जब उनके सवार ने आकर कहा कि घोड़े के आने के तो निशान हैं पर जाने के नहीं अर्थात घोडा जिस चाल पर गया उन्हीं पर लौटा। तब महाराणा ने प्रसन्न होकर नाथ जी को एक बंदुक इनाम में दी ।
महाराणा फतहसिह जी के काल में शालु खां नाम का चाबुक सवार था। महाराणा ने नाराज होकर उसके फिरत के घोड़े छीन लिए और उसकी ढ्योडी माफ कर दी। वह यहां से वाठेडा चला गया। वहां वाठेडा राव जी के घोड़ों की देखभाल करने लगा। लेकिन वो कभी घोड़े की सवारी नहीं करता। उसने बाठेडा रावजी से एक भैंसा मांगा। उसको तैयार कर उसमे ऐसी रेवाल चाल डाल दी जैसे किसी घोड़े की होती है। एक बार जब महाराणा नाहरमगरा शिकार को जा रहे थे। वह देबारी दरवाजे के बाहर खडा हो गया और जैसे ही महाराणा की बग्घी आयी, तभी खम्मा अन्न दाता कह कर अपने जीन कसे भैंसें को बग्घी के साथ दौड़ा दिया। महाराणा यह देख कर प्रसन्न हुए कि शालु खां ने भैंसे जैसे जानवर को भी घोड़े सरीखा बना दिया और शालु खां की ड्योडी का खुलासा कर उसके हिस्से के घोड़े उसे दुबारा दे दिए।
एक बार जब महाराणा फतहसिह जी मेरठ घोड़े खरीदने गए। कुछ घोड़े खरीदने के बाद एक विशेष घोड़ी को खरीदने की मनाही की गयी। तब शम्भु नाथ जी ने वह घोड़ी खरीद ली। महाराणा समेत सभी ने खरीदने से मना किया लेकिन शम्भु नाथ जी ने उसे खरीद कर अपनी पुश्तैनी हवेली में बंधवा दिया। उसको दवाई के साथ खास माल मसाले खिलाये गए। नौकरों से प्रतिदिन मालिश करवायी गयी। पांच छः महीने बाद महाराणा फतहसिह जी घोड़े सवार होकर नाहरमगरा शिकार को गए तब एक खेत पर थुर की बाड देखकर उन्हें खेल सूझा। उन्होंने सभी को थुर पार घोड़ा कुदाने को कहा।
घुड़सवार कोशिश करते और सभी उस मेड पर जा गिरते। इसे देख फिर सभी हंसते। तब सभी ने महाराणा को कहा कि शम्भु नाथ जी को भी कहो। तब शम्भु नाथ जी ने कहा यह मेरठ वाली घोड़ी है। महाराणा ने कहा कि ठीक है तुम भी कूदा कर बताओ और शम्भु नाथ जी ने तुरन्त मेड पार घोडी कुदा दी। ये देख सभी ने तारीफ़ की।
महाराणा ने नाराज होकर अन्य घोड़ो वालो की जागीर जब्ती के आदेश दे दिए और कहां हम अच्छे से अच्छे नस्ल के घोड़े तुमको तैयार करने को देते है और शम्भु नाथ जी को देखो कि खारिज घोड़ी को कैसे तैयार कर बेहतरीन बना दिया। तब राजपरिवार की तरफ से इस घोड़ी के लिए चारा दाना पानी का आजीवन इंतेज़ाम किया गया। उस घोड़ी की जीन आज भी इतिहासकार के संग्रहालय में मौजूद हैं।
तब यह कहावत मशहूर हुई कि घोड़ा और घड़ी शम्भु नाथ जी के मुकाबले कोई नहीं रखना जानता। शम्भु नाथ जी ने ही मेवाड़ की पहली धुप घड़ी माछला मंगरा, शम्भु निवास चित्तौड़गढ़ , लेकपैलैस और इतिहासकार की हवेली में बना कर लगायी।
अब घोड़े की जाति के बारे में मेवाड़ी जानकारी
- सफेद घोड़े को नीला कहते हैं।
- सफेद घोड़े के अगर काले लाल छापे हो तो उसे कांगड़ा कहते हैं।
- सफेद घोड़ा अगर आधा काला आधा सफेद हो तो उसे स्याह अबलग कहते हैं।
- लाल घोड़े को लाल अबलक कहते हैं।
- काले घोड़े के चारों पैर घुटनों के नीचे नीचे सफेद हो और दोनों आंखों के बीच ललाट पर सफेद टीका हो तो उसको पंच कल्याणक कहते हैं।
- काले घोड़े गर्दन के पास और पूँछ सफेद हो तो उसे अष्टमगल कहते हैं यह दुर्लभ होता है।
- लाल घोड़े को कुमैद कहते हैं।
- चमकीला लाल रंग हो तो सुरंग कहते हैं।
- घोड़ा लाल रंग का हो और उपर छोटे छोटे कत्थई रंग के बिन्दु हो तो उसे गडा कहते हैं।
- सभी घोड़ों में मालिक की खैरख्वाह रखने वाला अरबी घोड़ा होता है काठीयावाडी घोड़े और मारवाड़ी नस्ल के घोड़े भी बेहतरीन होते हैं। ये जन्म से ही आपचाल अर्थात तीव्र चाल वाले होते हैं। मारवाड़ी घोड़ो की एक जमाने में सभी जगह धुम थी।
इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित
शोध : दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
Email:erdineshbhatt@gmail.com
नोट : उपरोक्त तथ्य लोगों की जानकारी के लिए है और काल खण्ड ,तथ्य और समय की जानकारी देते यद्धपि सावधानी बरती गयी है , फिर भी किसी वाद -विवाद के लिए अधिकृत जानकारी को महत्ता दी जाए। न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम किसी भी तथ्य और प्रासंगिकता के लिए उत्तरदायी नहीं है।