आयड नदी का इतिहास बहुत पुराना है और इसके किनारे किनारे 4500 से ज्यादा वर्ष पूर्व से सभ्यताएँ रहती आयी है। विभिन्न उत्खनन के स्तरों से पता चलता है कि प्रारम्भिक बसावट से लेकर 18 वीं सदी तक यहाँ कई बार बस्तियां बसी और उजड़ी। ऐसा लगता है कि आहड़ के आस-पास तांबे की उपलब्धता होने से सतत रूप से इस स्थान के निवासी इस धातु के उपकरण बनाते रहे और उन्हें एक ताम्रयुगीन कौशल केंद्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज भी उदयपुर बसने से पुर्व कई ग्राम बसे हुए थे जिनके अपने अवशेष आज भी मिलते है।
पिछोली गांव भी उदयपुर के बसने से पहले का है यह काल महाराणा लाखा का काल था ( 1382 to 1421)। कुछ बंजारे जिसमे छीतर नाम का बनजारा भी था और वे जब वर्तमान के पिछोला से गुजर रहे थे तब उनकी बैलगाड़ी नमी वाली जगह में धस गई उस समुह ने पानी का स्त्रोत जानकर खुदाई की और फलस्वरूप पिछोला झील का निर्माण हुआ यहां चारों तरफ पहाड़ी इलाके थे।
उसी समय महाराणा उदय सिंह जी का चित्तौड़गढ़ निरन्तर आक्रमण झेल रहा था ।उन्ही दिनों महाराणा उदय सिंह जी अपने पोत्र कुंवर अमरसिंह के जन्म के उपलक्ष्य में एकलिंग जी मन्दिर दर्शन को आए फिर शिकार के लिए आयड गांव में डेरे डलवाए। लेकिन दिमाग में निरन्तर चित्तोड पर मुग़ल आताताइयों के आक्रमण से दिमाग में एक योजना चल रहीं थी कि एक सुरक्षित राजधानी बनाई जाए ताकि स्थिरता आ सकें।
उन्ही दिनों की एक शाम में सभी सामंत और मुख्य व्यक्तियों के सामने महाराणा ने उदयपुर नगर बसाने का विचार रखा। सामंतों मंत्रीयो ने सुझाव का समर्थन किया और जगह की तलाश करवाई गई फलस्वरूप मोतीमहल जिसके खण्डर वर्तमान में मोतीमगरी पर है, महल तैयार किया गया। इसका मतलब ये हुआ कि मोतीमहल उदयपुर का पहला महल था और एक तरह से यह नए उदयपुर नगर की शुरूआत थी।
स्थापना का दिन 15 अप्रैल 1553 इतिहास कारों द्वारा मान्य है और उस दिन आखातीज थी। (यहाँ पर उदयपुर की स्थापना को लेकर संशय और विवाद भी है। कुछ इतिहासकार उदयपुर की स्थापना का वर्ष 1558 और कुछ 1559 भी मानते है। )यही दिन उदयपुर स्थापना दिवस माना गया यह सभी वर्तमान इतिहास कारों ने सहमति से माना है क्योंकि कही भी उदयपुर स्थापना दिवस का शिलालेख या अन्य कोई प्रमाण नहीं मिलता है।
एक बार महाराणा उदय सिंह जी मोतीमहल मे निवास कर रहे थे तब शिकार कि भावना से खरगोश का पीछा करते हुए वर्तमान फतहसागर जो की उस समय वजूद मे नही था और केवल एक सहायक नदी रूप था। नदी किनारे घोड़ा दोडाते हुए वर्तमान चांदपोल के रास्ते उदयपुर की सबसे ऊंची पहाड़ी जहां वर्तमान में राजमहल है वहां पहुंच कर विश्राम लिया। तभी वहां पहाड़ी पर एक साधु की धुणी से धुआं उठते देख महाराणा वहां पहुंचे। वहां पर योगी धुणी पर विराजमान सन्त का नाम जगतगिरी जी जो कि बहुत पहुँचे हुए संत थे,उन्होंने महाराणा के दिल का हाल जानकर जहां धुणी थी वहीं राज्य बसाने का आदेश दिया।
यह धुणी वर्तमान मे भी राजमहल में स्थित है और कोई भी महाराणा उदयपुर की सत्ता संभालने पर इस धुणी पर आशिर्वाद लेने निश्चित रूप से जाते है। यह एक उदयपुर स्थापना से लगाकर वर्तमान महाराणा महेंद्र सिंह जी तक यह दस्तुर चला आ रहा है।
आज भी राजमहल उदयपुर शहर की सबसे बड़ी चोटी पर है जो शहर मे हर तरफ से दिखता है और यह भव्य राजमहल कई चरणों में अलग-अलग महाराणा के काल में बना। बाद मे कालान्तर में सरदार राव उमराव पासवान सभी को राजमहल के नजदीक बसाया। जितने भी जागिरदार उमराव सरदारों की हवेली हे वे राजमहल के निकट घाटीयो पर ही बसी है।
उपरोक्त जानकारी शहर के जाने माने इतिहासकार जोगेन्द्र राजपुरोहित संकलित की है और आप मेवाड़ सहित राजस्थान के इतिहास पर अच्छी पकड़ रखते है। साथ ही आपके पास पुरातत्व और ऐतिहासिक ढेरों चीज़ो का संग्रह भी है जिसे आप उनके निवास अक्षय सदन में जाकर देख सकते है।
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