हाड़ी रानी को न सिर्फ मेवाड़ बल्कि समूचे विश्व की धर्म परायण जनता सदैव मान सम्मान और श्रद्धा से याद करती है। हाड़ी रानी सलुम्बर के सरदार चुंडावत राव रतन सिंह की पत्नी थी। हाड़ी रानी की शादी को महज एक सप्ताह ही हुआ था। न हाथों की मेहंदी छूटी थी और न ही उनके पैरों का आलता हल्का पड़ा था । तभी अल सुबह के समय दरबान आकर वहां खड़ा हो गया।
राजा रतन सिंह का ध्यान न जाने पर रानी ने कहा - "महाराणा का दूत काफी देर से खड़ा है। वह आप से तुरंत मिलना चाहते हैं। आपके लिए कोई आवश्यक पत्र लाया है। " इस पर राव रतन सिंह हाड़ी रानी को अपने कक्ष में जाने को कहा।
औपचारिकता के बाद ठाकुर ने दूत से कहा, अरे शार्दूल तू ! इतनी सुबह कैसे? क्या भाभी ने घर से खदेड़ दिया है ?
सरदार ने फिर दूत से कहा, तेरी नई भाभी अवश्य तुम पर नाराज होकर अंदर गई होगी। नई नई है न। इसलिए बेचारी कुछ नहीं बोली। ऐसी क्या आफत आ पड़ी थी। दो दिन तो चैन की बंसी बजा लेने देते। मियां बीवी के बीच में क्यों कबाब में हड्डी बनकर आ बैठे। अच्छा बोलो राणा ने मुझे क्यों याद किया है? वह ठहाका मारकर हंस पड़ा।
दोनों में गहरी दोस्ती थी। सामान्य दिन अगर होते तो वह भी हंसी में जवाब देता। शार्दूल खुद भी बड़ा हंसोड़ था। वह हंसी मजाक के बिना एक क्षण को भी नहीं रह सकता था, लेकिन इस बार वह बड़ा गंभीर था। दोस्त हंसी छोड़ो। सचमुच बड़ी संकट की घड़ी आ गई है। मुझे भी तुरंत वापस लौटना है। यह कहकर सहसा वह चुप हो गया।
अपने इस मित्र के विवाह में बाराती बनकर गया था। उसके चेहरे पर छाई गंभीरता की रेखाओं को देखकर राव रतन का मन आशंकित हो उठा। सचमुच कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयीं है। दूत संकोच रहा था कि इस समय महाराणा की चिट्ठी वह मित्र को दे या नहीं ?
चुंडावत सरदार को तुरंत युद्ध के लिए प्रस्थान करने का निर्देश लेकर वह लाया था। उसे मित्र के शब्द स्मरण हो रहे थे। राव रतन सिंह के पैरों के नाखूनों में लगे महावर की लाली के निशान अभी भी वैसे के वैसे ही दिख रही थी। नव विवाहित हाड़ी रानी के हाथों की मेंहदी भी तो अभी सूखी न होगी। पति पत्नी ने एक दूसरे को ठीक से देखा पहचाना नहीं होगा। कितना दुखदायी होगा उनका बिछोह? यह स्मरण करते ही वह सिहर उठा।
पता नहीं युद्ध में क्या हो ? वैसे तो राजपूत मृत्यु को खिलौना ही समझता हैं। अंत में जी कड़ा करके उसने सरदार राव रतन सिंह के हाथों में महाराणा राजसिंह का पत्र थमा दिया।
राणा का उसके लिए संदेश था। हे वीर मातृभूमि तुम्हें पुकार रही है। मैंने (महाराणा राजसिंह) औरंगजेब को चारों और से घेर लिया है। औरंगजेब ने अपनी सहायता के लिए दिल्ली से विशाल सैन्य टुकड़ी मंगवाई है। उस टुकड़ी को रोकने के लिए अरावली में मेरे ज्येष्ठ पुत्र कुंवर जयसिंह और अजमेर में छोटे पुत्र कुंवर भीमसिंह तैनात है। मैं चाहता हूं तीसरे मोर्चे पर आप जाओ, उस टुकड़ी को रोकने के लिए। यधपि मुझे मालूम है कि अभी आपकी शादी को कुछ दिन ही हुए हैं ,किंतु मातृभूमि आपको पुकार रही है।
राव रतन सिंह की उस वक़्त ना सिर्फ मेवाड़ बल्कि दुनियां के सर्वश्रेष्ठ वीर योद्धाओं में गिनती होती थी। शादी के वक़्त वो युद्ध से लौटे ही थे और राणा राजसिंह ने उनसे कहा था 4-6 महीने मौज करो, आपको युद्ध पर नहीं भेजूंगा। किंतु स्तिथि आपात थी। राव रतन सिंह की आँखों के सामने अपनी नव ब्याहता हाड़ी रानी का चेहरा आ जाता है और अनेक ख्याल मन में आते हैं।
किंतु कर्तव्य की बलि वेदी और मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध वो वीर तुरन्त केसरिया बाना (साफा) पहन कर युद्ध के लिए तैयार होते है। हाड़ी रानी अपने पति को देख के अपने आंसू रोक लेती है। वीरांगना को मालूम था उसके आंसू उनके पति को कमजोर कर देंगे । वो अपने पति को कहती है क्षत्राणी तो पैदा ही इसी दिन के लिए होती है जब वो अपने हाथों से विजय तिलक कर के अपने पति को युद्ध के लिए रवाना करे।
स्वर्ण थाल में हाड़ी रानी अपने पति राव रतन सिंह की आरती और पूजा तिलक करती है। राव रतन सिंह युद्ध के लिए प्रस्थान करते हैं और बार बार पत्नी मोह में व्याकुल होकर पलट के महलों की और देखते हैं। नियत समय पर सलूम्बर की अल्प सेना और मुगलों की विशाल सेना आमने सामने होती है। भीषण युद्ध आरम्भ होता है। राव रतन सिंह एक दूत को पत्नी की कुशलक्षेम पूछने सलूम्बर भेजते है और दूत को कहते है कि रानी की कोई निशानी अपने साथ ले कर आना।
दूत जब रानी की निशानी मांगता है, तो हाड़ी रानी समझ जाती है कि पति मेरे मोहपाश में बंधे हुए हैं। वो दूत को आवश्यक निर्देश देती है और अपनी कमर से कटार निकालकर एक झटके में अपने सर को धड़ से अलग कर देती है।
सैनिक स्वर्ण थाल में रानी का कटा हुआ सर रखता है और उस सर को सुहाग की चुनर से ढक के युद्ध भूमि की और प्रस्थान करता है। आँखों के सामने पत्नी का धड़ से अलग सर देख के हाड़ा राजा राव रतन सिंह के पांवों के नीचे से धरती खिसक जाती है। किंतु अगले ही पल खुद को सम्हालते हुए वो वीर पत्नी के कटे सर को रस्सी में बांध के गले में माला के जैसे धारण करते है और घोड़े पर सवार होकर शत्रु मुगल सेना पर टूट पड़ते है।
अल्प सलूम्बर सेना ने विशाल मुगलिया सेना को देखते ही देखते गाजर मूली की तरह काट देती है । भीषण वेग से राव रतन सिंह शत्रु सेना पर प्रचण्डता से कहर बरसाते हैं। वैसा युद्ध इतिहास में देखने और सुनने को नहीं मिलता है। राव रतन सिंह उस युद्ध में पत्नी का सर गले में लटकाए वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं। मातृभूमि को अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। वही एक अन्य मोर्चे पर औरंगजेब महाराणा राजसिंह से अपनी जान बचा कर दिल्ली भाग जाता है। मेवाड़ पूरा मुगलों की दासता से मुक्त हो चूका होता है।सलूम्बर का सपूत वीर राव रतन सिंह और हाड़ी रानी मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का बलिदान देकर इतिहास में अमर हो गए हैं।
किवंदती है कि मेवाड़ी और मारवाड़ी सहित समस्त राजपूताने के योद्धाओं का खून इतना गर्म होता था कि.अगर युद्धभूमि में शत्रु के ऊपर खून गिर जाए तो शत्रु के शरीर पर फफोले निकल आते थे !"
"चुंडावत मांगी सैनाणी (निशानी) , शीश काट दे दियो क्षत्राणी"
धन्य है वो मातृभूमि जहां ऐसे वीर ,वीरांगना को जन्म होते है।
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