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History / उदयपुर में तोप को माता मान होती है पूजा,भक्त माँगते है मुराद स्लिप और नारियल से ,आते है गुजरात सहित अन्य जगहों से भक्त

clean-udaipur उदयपुर में तोप को माता मान होती है पूजा,भक्त माँगते है मुराद स्लिप और नारियल से ,आते है गुजरात सहित अन्य जगहों से भक्त
दिनेश भट्ट January 21, 2022 12:14 PM IST

उदयपुर में तोप माता के मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। उदयपुर को महाद जी सिंधिया की सेनाओं से बचाने इस तोप को वर्तमान रेलवे स्टेशन के सामने बुर्ज पर तत्कालीन मेवाड़ के प्रधानमंत्री अमर चंद बड़वा ने लगवाया था। इस तोप का नाम जगत शोभा तोप है और इसका गोला काफ़ी दूर तक जाता था। एकलिंगगढ़ पर एक ओर तोप दुश्मन भंजक तोप लगवायी गयी और जगत शोभा और दुश्मन भंजक तोप ने छह महीने तक महाद जी सिंधिया को देबारी दरवाज़े तक रोके रखा और मेवाड़ में इनकी सेनाये कभी प्रवेश ही नहीं कर पायी।

कालान्तर में इस तोप को माता का स्वरुप मानकर इसका मंदिर बनवाया गया और नगर निगम उदयपुर के द्वारा छोटा मोटा निर्माण भी किया गया लेकिन ज्यादातर उदयपुर वासी इन तोप माता के मंदिर से अनजान है जबकि गुजरात सहित अन्य जगहों से दर्शनार्थी यहाँ मंन्नत लेकर आते है और नारियल के साथ मन्नत की स्लिप भी चढ़ा कर जाते है।

कवि श्यामल दास ने वीर विनोद में लिखा है, “1769 में, उज्जैन युद्ध के बाद सलूम्बर के रावत भीम सिंह ने महाराणा अरि सिंह द्वितीय को सुझाव दिया, कि पूर्व प्रधान अमर चंद बडवा को वापस बुलाया जाए और उन्हें जिम्मेदारी सौंपी जाए। । तदनुसार महाराणा अमर चंद के निवास पर गए और उन्हें प्रधान की जिम्मेदारी स्वीकार करने की पेशकश की। अमर चंद बडवा द्वारा व्यक्त की गयी बातों के बाद महाराणा ने उन्हें किसी भी हद तक मदद करने का वादा किया।

अमर चंद बडवा ने प्रधानमंत्री के रूप में जिम्मेदारी स्वीकार की और महादजी सिंधिया से प्रतिशोध के रूप में उदयपुर की किलेबंदी शुरू की। उदयपुर आकर अमरचंद बड़वा ने सबसे पहले 9 किलोमीटर लंबी शहरकोट शहर के चारों तरफ बनवायी और चार छोटे गढ़ बनवाये जिसमें इंदरगढ़ सारणेश्वरगढ़, सूरजपोल,अंबावगढ़। अमरचंद ने शहर के चारों ओर इन्द्रगढ़, सारणेश्वरगढ़, सूरजपोल तथा अम्बावगढ़ पर तौपें लगाई। बुर्ज पर 'जगतशोभा' तोप लगाई गई। अन्य बुर्जों में पुरोहितजी की हवेली के पास बुर्ज पर 'शिव प्रसन्न' तोप, अमर ओटा के पास बुर्ज पर 'कटक बिजली' तोप, हाथीपोल व सूरजपोल के पास बुर्ज पर 'जयअम्बा' और 'मस्तबाण' तोपें लगाई गई। एक ओर दरवाजा बनवाया गया जिसका नाम पूर्व में कृष्ण पोल था। यही प्राचीन नाम बाद में किशनपोल में बदल गया।

जब सिंधिया का आक्रमण हुआ ,तब जगत शोभा तोप और दुश्मन भंजक तोप दोनों की जोड़ी ने चमत्कारिक रुप से दुश्मनों को छह माह तक ( सिंधिया सेना ) को गोलों की बरसात से नहला दिया ,फलस्वरूप सिंधिया सेना सन्धि को मजबुर हो गयी।

 

नोट: उपरोक्त तथ्य लोगों की जानकारी के लिए है और काल खण्ड ,तथ्य और समय की जानकारी देते यद्धपि सावधानी बरती गयी है , फिर भी किसी वाद -विवाद के लिए अधिकृत जानकारी को महत्ता दी जाए। न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम किसी भी तथ्य और प्रासंगिकता के लिए उत्तरदायी नहीं है।

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