Breaking News

Dr Arvinder Singh Udaipur, Dr Arvinder Singh Jaipur, Dr Arvinder Singh Rajasthan, Governor Rajasthan, Arth Diagnostics, Arth Skin and Fitness, Arth Group, World Record Holder, World Record, Cosmetic Dermatologist, Clinical Cosmetology, Gold Medalist

History / न काशी विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग और न उदयपुर का जगदीश मंदिर तोड़ पाया औरंगजेब

clean-udaipur न काशी विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग और न उदयपुर का जगदीश मंदिर तोड़ पाया औरंगजेब
newsagencyindia.com December 14, 2021 09:12 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को बाबा विश्वनाथ के मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद ‘काशी विश्वनाथ कॉरिडोर’ का लोकार्पण किया। पीएम मोदी ने कहा-" आतातायियों ने इस नगरी पर आक्रमण किए, इसे ध्वस्त करने के प्रयास किए हैं। औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का इतिहास साक्षी है,  जिसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की। जिसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की।  लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है, यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं।  

कुछ ऐसे शिवाजी मेवाड़ की धरा में इतिहास में पहले ही अपनी उपस्थिति दर्शा चुके थे वो भी एक नहीं 20 और एक ही काल खंड में। ऐसे शिवाजी रूपी योद्धा जिन्होंने केवल 20 साथियों के दम पर तत्कालीन इतिहास के भारत के सबसे समृद्ध मंदिरो में एक जगदीश मंदिर को औरंगजेब की हज़ारो आतताइयों की फौज से बचाया था। इस मन्दिर को महाराणा जगत सिंह जी प्रथम ने 6 लाख रूपये लगाकर 1652 ईस्वी में बनवाया था।

आखिर औरंगजेब को मंदिरों से क्‍या थी दिक्‍कत ?

औरंगजेब ने अपने शासन में बनारस के विश्वनाथ मंदिर,उदयपुर के जगदीश मंदिर और मथुरा के केशव राय मंदिर को तुड़वाने का प्रयास किया था। साथ ही अपने शासनकाल में कई हिंदू विरोधी फैसले जैसे- लाखों हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनने पर मजबूर किया था। औरंगजेब की सेना 

ने 1669 ने बनारस विश्वनाथ मंदिर को ध्‍वस्त कर दिया था, लेकिन शिवलिंग और नंदी की प्रतिमा को नुकसान नहीं पहुंचा पाया। वैसे ही औरंगजेब की सेना को जगदीश मंदिर ध्वस्त करने में मुँह की खानी पड़ी थी। केवल 20 मुट्ठीभर मेवाड़ी माचातोड़ योद्धाओं ने औरंगजेब की विशाल सेना को पुरे दिन छका दिया और 20 योद्धाओं के पराक्रम के आगे मुग़ल सेना इतनी डर गयी थी कि ये जगदीश मंदिर को भी ज्यादा नुकसान नहीं पंहुचा सकी और केवल मंदिर के बाहर की दीवारों की कुछ मूर्तियों को ही ध्वस्त कर सकी और मुख्य गर्भ ग्रह को कोई नुकसान भी नहीं पहुँचा सकी थी। 

वही दूसरी और बनारस के विश्वनाथ मंदिर में हमले के दौरान ज्योतिर्लिंग को बचाने के लिए मंदिर के महंत शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कुंड में कूद गए थे। साथ ही मुगल सेना मंदिर प्रांगण में स्‍थापित विशाल नंदी की प्रतिमा को तोड़ पाने में भी असफल रही थी। 

प्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड ईटन के अनुसार, मुगल शासन के दौरान जो भी मंदिर तोड़े गए, उसके पीछे का कारण राजनीतिक ही रहा। ईटन के मुताबिक, वही मंदिर तोड़े गए जिनमें विद्रोहियों को शरण मिलती थी या फिर जहां शासन के खिलाफ साजिश रची जाती थी या ऐसे शासक जो औरंगजेब के खिलाफ थे ,उनके शहर और मंदिरों को तोड़ने का फरमान औरंगजेब जारी किया करता था। 

जगदीश मंदिर का निर्माण और प्रतिष्ठा महाराणा जगतसिंह ने 13 मई 1652 ईस्वी (चैत्रादि वि.स.1703 वैशाखी पूर्णिमा ) गुरुवार के दिन भव्य समारोह के साथ की थी। समारोह भी ऐसा जिसमे उस समय पूरे शहर सहित समूचे मेवाड़ को आमंत्रित किया गया। महाराणा ने हज़ार गायें ,सैकड़ो हाथी,घोड़े,सोना और 05 गाँवो को मन्दिर व्यवस्था हेतू ब्राह्मणों को दान किया था। साथ ही मंदिर बनाने वाले सूत्रधार भाणा उसके पुत्र मुकुंद को सोने और चाँदी के हाथी के साथ चित्तौड़ के पास एक गांव दान किया गया।

सिन्धुर दीधा सातसै ,हय वय पाँच हज़ार।

एकावन सासन दिया,जगपत जगदातार।।

'अर्थात जगत के दाता जगत सिंह 700 हाथी ,5 हज़ार घोड़े और 51 गाँव दान किये।'

जगदीश मंदिर की प्रशस्ति शिला प्रथम श्लोक 110 -111 के अनुसार उस समय महाराणा जगतसिंह ने लाखों रुपयों का कल्पवृक्ष जो स्फटिक की वेदी पर बना था जिसके मूल में नीलम मणि ,सर पर वैडूर्यमणि (लहसनिया) और कंधो पर हीरे ,शाखों पर मरकत (माणिक) ,पत्तो की जगह विद्रुम (मूंगा) और उसके नीचे ब्रह्मा,विष्णु ,शिव और कामदेव की मूर्तियाँ बनी थी। ये दान वि.सम्वत 1705 भाद्रपद सुदि 3 के दिन ब्राह्मणों को दिया गया था।

मन्दिर का वैभव धीरे धीरे दिल्ली के बादशाह के कानों तक भी पहुँचा । उस पर औरंगजेब ने जब 1679 ईस्वी में हिन्दुओं पर जजिया कर (टैक्स) लगाया ,तब इस कर का सशक्त और मुखर विरोध महाराणा राजसिंह ने किया। बादशाह औरंगजेब तिलमिला उठा और उसने मेवाड़ सहित जगदीश मंदिर को लूटने का प्रण लेकर मेवाड़ की ओर कूच कर डाली।

1679 ई. तक औरंगज़ेब समूचे उत्तर भारत के मंदिरों को लूट चूका था। शहर के शहर बरबाद करता चला जाता उसका कारवाँ। उसके सिपाही न सिर्फ लूटपाट करते बल्कि राज्य की खूबसूरत महिलाओं के साथ बलात्कार करते या उन्हें बन्दी बनाकर सिपाहियों के हरम में ले जाते। सिपाहियों का हरम किसी नरक (दोज़ख ) से कम नहीं होता जहाँ बमुश्किल ही कोई सात दिन जी पाता हो ! बच्चों और आदमियों को उनके सामने पहले की मार दिया जाता वो भी वीभत्स मौत के साथ।

1679 ई.से ही औरंगज़ेब के जेहन में राजपुताना के एक ही रियासत 'मेवाड़' को रौंदने का मन था और जनवरी 1680 की तेज़ कड़कड़ाती ठण्ड में उसकी सेनाओं ने मेवाड़ की सीमा पर आकर डेरा डाल लिया। सैनिक इतने जितने मेवाड़ में नागरिक नहीं और हर मेवाड़ी योद्धा के सामने औरंगज़ेब के 10 योद्धा थे।

तत्कालीन शूरवीर महाराणा राजसिंह द्वारा फौजी जमावड़ा महीनों पहले से चल रहा था। उन्हें पता था कि किस तरह जनता को सबसे पहले बचाना है।

बादशाह औरंगज़ेब ने शहज़ादे मुहम्मद आज़म, सादुल्ला खां, इक्का ताज खां और रुहुल्ला खां को उदयपुर पर हमला कर वहां के मन्दिर वगैरह तोड़ने के साथ उदयपुर को लूटने भेजा।

महाराणा राजसिंह ने अपने जिग़र के टुकड़े को गिर्वा की पहाड़ियों पर कुँवर जयसिंह (महाराणा के पुत्र व भावी महाराणा) को तैनात कर दिया। देसूरी की नाल के इलाक़े में बदनोर के सांवलदास राठौड़ को कमान सौंपी गयी थी। बदनोर-देसूरी के पहाड़ी भाग पर विक्रमादित्य सौलंकी व गोपीनाथ घाणेराव युद्ध के लिए तैयार थे। मालवा सीमा पर मंत्री दयालदास को नियुक्त किया गया। देबारी,नाई और उदयपुर के पहाड़ी नाकों पर स्वयं महाराणा राजसिंह तैनात हुए।

वो दिन आ ही गया जब मुगल फौज लड़ते हुए उदयपुर आ पहुंची, तो वहां इन्होंने पूरा उदयपुर खाली पाया।

महाराणा राजसिंह प्रजा व सेना सहित अरावली के पहाड़ों में जा चुके थे। सादुल्ला खां व इक्का ताज खां फौज समेत उदयपुर के जगदीश मंदिर के सामने पहुंचे, जो कि उदयपुर के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक था व इसको बनाने में भारी धन (उस समय के लगभग 6 लाख रूपये ) खर्च हुआ था।

इस मंदिर की रक्षा के लिए नरू बारहठ सहित कुल 20 योद्धा तैनात थे, जिसका विवरण सुनकर आप की आँखे भीग जाएँगी। जब महाराणा राजसिंह राजपरिवार व सामंतों और जनता सहित पहाड़ों में प्रस्थान कर रहे थे तब किसी सामन्त ने महाराणा के बारहठ नरू को ताना दिया कि " जिस दरवाज़े पर तुमने बहुत से दस्तूर (नेग) लिए हैं, उसको लड़ाई के वक़्त ऐसे ही कैसे छोड़ोगे ?"

नरू बारहठ साहब एक क्षण मौन के बाद हुंकारे - "जब तक नरु बारहठ के धड़ पर शीष रहेगा तब तक ठाकुर जी (जगदीश मन्दिर) की सीढ़िया कोई आतातायी नहीं चढ़ सकेगा। एकलिंग विजयते नमः"

नरू बारहठ के अपने 20  साथी भी कहाँ मानने वाले थे और वे भी उनके साथ यहीं रुक गए।

पूरा उदयपुर ख़ाली था। घण्टाघर से हाथीपोल तक संन्नाटा। एक भी आदमी नहीं। यहाँ तक कि शहर के स्वानो तक को अनहोनी की आशंका हो गयी थी शायद। वो भी गायब थे लेकिन तोते और चिड़ियाओं की आवाज़े सुनसान मरघट जैसे सन्नाटे को यदा कदा चीर रही थी।

सबसे पहले नरु के साथियों ने शहर के सारे मंदिरों की पूजा की।कई शंख एक साथ ऐसे बजाये गए मानों सैकड़ो लोग रणभेरी बजा रहे हो। ठण्ड की इस रात में भी सभी की भुजाएँ फड़क रही थी। मौत का कोई खौंफ नहीं। आँखों में इतना तेज़ मानो सूरज की रश्मियाँ हो।

निर्देशानुसार रात सभी लोग जगदीश मंदिर आ गए।

मेवाड़ (उदयपुर) के सारे दरवाजे जैसे उदियापोल ,किशनपोल,एकलिंगगढ़,ब्रह्मपोल,गड़िया देवरा पोल ,हाथीपोल और दिल्ली दरवाजा बंद किये जा चुके थे। लेकिन उस रात दिवाली मनायी गयी थी मेवाड़ के हर दरवाज़े पर सैकड़ो मशालें और दीप जलायें थे नरु के साथियों ने। मुग़ल फौज इतनी खौफ़जदा थी कि उसने रात में शहर पर हमला करने की हिम्मत न की। उधर नरु और साथियों ने आखिरी आरती की जगदीश मन्दिर में। एक दूसरे को बधाइयाँ दी गयी शहीद हो जाने की ख़ुशी में। शस्त्रों की पूजा के बाद अश्वों की पूजा की गयी।

केसरिया बाना (पगड़ी) पहने हर योद्धा इतरा रहा था। सभी मन्दिर के पीछे अपने घोड़ों के साथ मरने के लिए तैयार खड़े थे। एक ही सुर में तेज़ आवाज़े जगदीश मंदिर से पूरे शहर में गूंझ रही थी " एकलिंगनाथ की जय ! जय माता दी ! हर हर महादेव। हर हर महादेव। हर मेवाड़ी योद्धा की आँखों में ख़ून उतर आया था।

आखिर वो घडी आ गयी जब सारे दरवाजे तोड़ते हुए सुबह 9 बजे के के करीब मुगल फौज जगदीश मंदिर के पास ढलान पर भटियाणी चौहटा और घण्टाघर तक आ गयी। औरंगज़ेब के शहज़ादे मुहम्मद आज़म, सादुल्ला खां, इक्का ताज खां और रुहुल्ला खां की सेना अब भी आगे बढ़ने से कतरा रही थी क्योंकि पूरा उदयपुर खाली था और रात तक शंख नाद की आवाज़े आ रही थी। हुंकारे आ रही थी। सेना के साथ शहज़ादे मुहम्मद आज़म भी किसी अनहोनी की आशंका में थे। सादुल्ला खां ने अपने खास 50 सिपाहियों की टोली को आगे टोह लेने भेजा। जगदीश चौक तक आते आते सब के सब 50 हलाक कर दिए गए। खून से सड़क लाल हो चुकी थी। रक्त बहता हुआ ढलान में मुग़ल सेना की ओर आता दिखा। मुग़ल सेना में हड़कम्प मच गया।

स्थिति को इक्का ताज खां और रुहुल्ला खां ने सम्भाला और सेना से आगे बढ़ने को कहा। तभी हर हर महादेव के नारे बुलंद हो उठे। सुनसान शहर थर्रा उठा। मंदिर की उत्तर वाले दरवाज़े (जहाँ आज स्कूल है )से एक योद्धा लड़ने के लिए बाहर आया और ऐसी गति मानों बिजली चलीं आ रही हो। केसरिया बाना पहने पहला माचातोड़ यौद्धा अपना अंतिम कर्तव्य निभाने निकल चूका था। हर हर महादेव के हुंकार और घोड़े की टाप की आवाज़ों के साथ पत्थर सड़को पर खुर ज्यादा ही आवाज़ कर रहे थे।हर माचातोड़ यौद्धा कम से कम 50 दुश्मनों को मारकर ही अपना जीवन धन्य समझता। जैसे ही एक माचातोड़ यौद्धा शहीद होता उसी समय दूसरा माचातोड़ यौद्धा ढलान मे हूंकार भरता हुआ नीचे मुग़ल ख़ेमे में घुस कर कई मुग़लो को फ़ना कर देता।ऐसे ही मंदिर से एक-एक कर माचातोड़ यौद्धा बाहर आते गए। शाम होने चली आयी थी।

मुग़ल सेना सदमे में डरी हुई थी और हैरान भी थी माचातोड़ यौद्धा की वीरता पर। मुग़ल सेना में माचातोड़ यौद्धा को लेकर फुस फुसाहट हो रही थी और हर कोई नए माचातोड़ यौद्धा का इंतज़ार कर रहा था। किसी को पता नहीं था ऐसे कितने ओर माचातोड़ यौद्धा अभी भी छिपे है ऊपर मन्दिर की ओर ?

लेकिन समय और नियति पहले ही नरु बारहठ की वीरता का किस्सा लिख चुकी थी। आखिर में नरू बारहठ बाहर आए और बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। केसरिया बाना पहने जिन्दा रहते हुए उनकी तलवार ने कई मुग़ल सिप्पसालारो को हलाक कर दिया। शीश कटने के बाद भी उनका धड़ तलवार चलाता रहा। मुग़ल सैनिक इधर उधर भागते फ़िरे। नरू बारहठ के शहीद होते ही मुग़ल सेना ने डर कर एक घण्टे ओर इंतज़ार किया। उसके बाद बादशाही फौज ने जगदीश मंदिर में मूर्तियों को तोड़कर मंदिर को तहस-नहस कर दिया।

महाराणा राज सिंह मारवाड़ के अजीत सिंह के मामा थे। एक बार मुगलों से एक राजकुमारी को बचाने के लिए और एक बार औरंगजेब द्वारा लगाए गए जजिया कर की निंदा करके राज सिंह ने औरंगजेब का कई बार विरोध किया। राणा राज सिंह को मथुरा के श्रीनाथजी की मूर्ति को संरक्षण देने के लिए भी जाना जाता है, उन्होंने इसे नाथद्वारा में रखा था। कोई अन्य हिंदू शासक अपने राज्य में श्रीनाथजी की मूर्ति लेने के लिए तैयार नहीं था क्योंकि इसका मतलब मुगल सम्राट औरंगजेब का विरोध करना होगा, जो उस समय पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली व्यक्ति था। 

  • fb-share
  • twitter-share
  • whatsapp-share
clean-udaipur

Disclaimer : All the information on this website is published in good faith and for general information purpose only. www.newsagencyindia.com does not make any warranties about the completeness, reliability and accuracy of this information. Any action you take upon the information you find on this website www.newsagencyindia.com , is strictly at your own risk
#

RELATED NEWS