भारतीय जनता पार्टी ने विवादित बयान देने पर प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल पर बड़ी कार्रवाई करते हुए दोनों नेताओं को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया।
आज का ये घटनाक्रम भाजपा के विरोधियों को ही नहीं अपितु समर्थकों के लिए बेहद चौंकाने वाला रहा। इससे पहले बीजेपी मुख्यालय प्रभारी और महासचिव अरुण सिंह का बयान सामने आता है कि बीजेपी सभी धर्मों का सम्मान करती है और किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहती। खास बात ये रही कि इस बयान में नुपुर शर्मा का नाम नहीं था, लेकिन तमाम खबरिया चैनल्स की हैडलाइन थी कि नुपुर शर्मा के बयान से बीजेपी ने किया किनारा। बयान जारी होने के थोड़ी ही देर बाद ये खबर आई कि नुपुर शर्मा के साथ साथ दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता और पूर्व क्राइम जर्नलिस्ट नवीन जिंदल को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया है।
दरसअल इनके निलम्बन की कहानी की असली स्क्रिप्ट तो कतर में लिखी गई है।
बीजेपी नेतृत्व और सरकार फिर से कट्टर भगवा समर्थकों के बीच चर्चा का विषय बन गई । उनको ये फैसला कतई पसंद नहीं आया है। उधर संघ परिवार के प्रमुख के नाते मोहन भागवत के बयानों जैसे एक ही डीएनए है, हम सब हिंदू हैं, सब भारत माता की संतान हैं। उधर कट्टर भगवा समर्थक इस लाइन पर पहले जैसे ही रुख अपनाए हुए कि यानी मान रखना है लेकिन मानना नहीं है।
लेकिन यहां सवाल मोदी से जुड़ा है, अचानक हुए इस फैसले में मोदी का रोल है, ये सबको समझ आ गया है। मोदीजी के बारे में पूरे परिवार और पार्टी में ये साफ संदेश पहले से ही कि जब उनकी सरकार या छवि पर कोई आंच आती है, तो वो किसी की नहीं सुना करते है और उनके फैसले हमेशा अप्रत्याशित ही होते है।इससे पहले उनके कानपुर दौरे के से पहले से ही नाराज बताए गए। कारण भी लाजमी था। डिफेंस कॉरीडोर के लिए जो तमाम बड़े प्रोजेक्ट्स साइन हुए, उनकी खबरें मीडिया में दब गईं और नुपुर शर्मा का बयान हावी हो गया,लेकिन उस बात को बीते हुए भी आज तीन दिन हो गए हैं।
लेकिन आज की निलंबन की घटना के पीछे तात्कालिक वजह जो बताई जा रही है, वो है उपराष्ट्रपति के तीन देशों के दौरे में कतर की राजधानी दोहा पहुंचना और उससे पहले ट्विटर पर पीएम मोदी के खिलाफ एक ट्रेंड का नंबर वन होना और ये ट्रेंड था #الا ـ رسول ـ الله ـ يا ـ مودي (#AnyoneButTheProphetOModi)
ना भारतीय अधिकारियों को इस बारे में कुछ पता था और ना ही उपराष्ट्रपति को। शनिवार को शूरा काउंसिल से मिलने के बाद रविवार को उनकी मीटिंग भारतीय बिजनेस मेन और कतर बिजनेस चैम्बर के लोगों से भी होनी थी। ऐसे में जब ये ट्रेंड वायरल हुआ तो कतर की मीडिया ने ट्रेंड के पीछे की पूरी कहानी सामने ला दी। आप दोहा न्यूज की इस खबर के लिंक में दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता नवीन जिंदल का बड़ा फोटो देखकर समझ सकते हैं कि कितनी नाराजगी का आलम क्या रहा होगा।
https://dohanews.co/offensive-islamophobia-indian-vp-in-qatar-amid-outrage-calls-for-boycott/
इस खबर में नवीन जिंदल को पीएम मोदी का करीबी बताया गया है। खबर के साथ नवीन जिंदल का जो ट्वीट लगा है, वैसा ट्वीट आज तक किसी भी आधिकारिक बीजेपी एकाउंट से नहीं देखा गया। संघ के अधिकारी तो पहले से ही विवादास्पद बयानों से दूर रहते हैं। लेकिन इस बयान में जिस तरह पैगम्बर मोहम्मद को लेकर टिप्पणी की गई है, वो वाकई में बेहद गलत है। ऐसे में कतर में सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ता और मीडिया दिग्गजों ने इसकी बेहद आलोचना की।
المتحدث الرسمي باسم الحزب الحاكم في #الهند نافين كومار جيندال يسيء إلى نبيّنا محمد ﷺ وإلى أمنّا عائشة رضي الله عنها بأسلوب قذر وبذيء ..
— جابر الحرمي (@jaberalharmi) June 4, 2022
سكوتنا دفع هذه الحثالة للإساءة لنبيّنا وديننا ومقدساتنا ..
إن لم ندافع عن نبيّنا وأمنّا فلا خير فينا ..#إلا_رسول_الله_يا_مودي pic.twitter.com/rYbtJ9Lbkz
भारत में नुपुर शर्मा के बयान को लेकर बवाल हो रहा था, जो एक हीटिंग डिबेट मे बोला गया था, यहां नवीन की इतनी चर्चा नहीं थी। लेकिन खाड़ी देशों में नवीन चर्चा का विषय बन गए। तेजी से उठने की कोशिश में नवीन पहले भी ऐसे ट्वीट करते रहे हैं। लेकिन ऐसे में जबकि उपराष्ट्रपति को वहां के बिजनेस प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात करनी है, सरकार के दिग्गजों से मिलना है। इस तरह के व्यर्थ के विवादों से पार्टी से ज्यादा देश का नुकसान हो सकता है। शायद इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने खुद पहल लेकर बिना किसी कारण बताओ नोटिस जैसी ओपचारिकता के दोनों को पार्टी से 6 साल के लिए निलम्बित कर दिया है।
हालांकि विरोधियों को लगेगा कि ये पार्टी का अपनी मूल विचारधारा से थोड़ा सा हटना है। लेकिन जो लोग संघ और बीजेपी को सालों से करीब से देख रहे हैं, वो ये नहीं मानते। पार्टी के झंडे में हरे रंग का होना ही इसका उदाहरण है। सिकंदर बख्त, नकवी, शाहनवाज हुसैन और अब जफर इस्लाम, शहजाद पूनावाला और शाजिया इल्मी जैसे लोगों को लगातार पार्टी से जोड़ते रहना, कलाम को राष्ट्रपति बनाना, आरिफ मोहम्मद खान जैसे राष्ट्रवादी मुस्लिमों को जोड़ना ये बताते हैं कि पार्टी मुस्लिमों को अपनी शर्तों पर जोड़े रखना चाहती है।
पार्टी और संघ दोनों को अच्छे से मालूम है कि 25 करोड़ मुस्लिमों को दरकिनार नहीं किया जा सकता और संविधान से ही देश चलाना है, और ना ही सरकारी योजनाओं में उनके साथ भेदभाव करके चला जा सकता है और यही वजह है कि पढे लिखे तबके में मुस्लिम विरोधी लगने के बावजूद पार्टी हर चुनाव में 8 से 10 फीसदी मुस्लिमों के वोट भी ले ही लेती है।
संघ के बड़े पदाधिकारी भी एकदम से मुस्लिमों के खिलाफ ऐसा कोई बयान नहीं देते, जो उनको किसी कानूनी केस में फंसा दे। इस मामले में वो सनातन व्यवस्था को अपनाते हैं, यानी विरोधी भी इसी व्यवस्था का अंग बने। इसमें उनकी उम्मीद ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों को राष्ट्रवादी बनाना या घर वापसी करवाना या फिर देश के कानून के हिसाब से चलाने पर रहती है। सो उनके मुद्दे चाहे वो प्रमुख मंदिरों को वापस लेना हो, या फिर समान नागरिक संहिता, उसके लिए उनके अभियान चलते रहते हैं।
लेकिन फ्रिंज ग्रुप्स संघ परिवार और बीजेपी दोनों की दिक्कत हैं। जाहिर है हिंदू मामलों में वो ‘अपर हैंड’ चाहते हैं, लेकिन हिंदू महासभा जैसे तमाम ऐसे भी समूह, संगठन, मठ, पंथ या लोग हैं, जो बिना संघ के भी तमाम हिंदूवादी मसलों को अतिवादी ढंग से उछाल देते हैं। जिसे विरोधी अक्सर बीजेपी की नीति समझने की भूल कर देते है।
संघ प्रमुख भी इस बात से नाराज थे कि हर मस्जिद में ये लोग हिंदुओं के नाम पर घुस रहे हैं और संदेश ये जाता है कि संघ या बीजेपी ये करवा रही है, तो उन्हें भी बयान देना पड़ा। ताजा मामले की फौरी जड़ें भले ही विदेश में हों, लेकिन असली जड़ उसी सोच के लोग हैं, जो एकदम से बिना सोचे समझे ऐसा कुछ लिख या बोल जाते हैं, जो देश और बीजेपी दोनों के संविधान के खिलाफ चली जाती है। उम्मीद है कि इस घटना के बाद बाकी के भगवा नेता सबक लेंगे।