इन फिल्मों के बाद महाराणा प्रताप पर फिल्में बनाना बॉलीवुड ने क्यों बंद कर दिया?


अकबर पर इस देश में तमाम फिल्में बॉलीवुड ने बनाईं, जिनमें मुगल ए आजम और जोधा अकबर तो कालजयी फिल्मों में भी शामिल हो गई हैं। लेकिन महाराणा प्रताप के बारे में किसी से पूछिए तो एक दो टीवी सीरियल के अलावा शायद ही कोई बता पाए। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था, मूक फिल्मों का दौर हो चाहे उसके बाद रंगीन फिल्मों का दौर, महाराणा प्रताप पर फिल्में बॉलीवुड बनाता ही रहा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में महाराणा प्रताप बॉलीवुड के लिए एक तरह से अछूत हो गए हैं। टीवी में तो उनकी जिंदगी पर सीरियल्स आए, एक में तो विनोद खन्ना तक ने महाराणा प्रताप का रोल किया, लेकिन बड़े परदे पर उनको लेकर ये हिचक अभी भी जारी है।
महाराणा प्रताप पर सबसे पहली फिल्म वाराणसी में पैदा हुए फिल्मकार भगवती प्रसाद मिश्रा ने बनाई थी। भगवती प्रसाद को पहले पेंटिंग का शौक था, सो पेंटर हुसैन बख्श के साथ एप्रेंटिस की, उसके बाद वो मेरठ के ‘व्याकुल भारत नाटक मंडली’ से जुड़ गए थे। 1921 में वो स्टार फिल्म्स से बतौर पोस्टर डिजाइनर जुड़ गए। 1924 में भगवती प्रसाद मिश्रा ने अपनी पहली फिल्म बनाई‘रजिया बेगम’, उन दिनों मूक फिल्मों (साइलेंट मूवीज) का दौर था। इस फिल्म के कुछ दृश्यों को लेकर विवाद हुआ और हैदराबाद में कुछ जगहों पर विरोध हुआ, साम्प्रदायिक सदभाव बिगड़ने की बात सामने आई, मुस्लिमों को इस फिल्म के कुछ दृश्यों पर ऐतराज था। 1924 में ही उन्होंने ‘वीर दुर्गादास’ नाम की फिल्म भी बनाई।
1925 में उन्होंने फिल्म ‘राणा प्रताप’ बनाई, फिल्म के निर्माण में पटेल ब्रदर्स और रॉयल आर्ट स्टूडियो का सहयोग लिया गया। इस फिल्म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती, लेकिन ये तय है कि ये मूक (साइलेंट) फिल्म थी, आईएमडीबी (फिल्मों की मशहूर वेबसाइट) और बॉलीवुड इतिहास सहेजने वाली कई किताबों मसलन एनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडियन सिनेमा (लेखक- आशीष राज्याध्यक्ष और पॉल विलरमेन) में इसका जिक्र मिलता है। डायरेक्ट्री ऑफ इंडियन फिल्म मेकर्स एंड फिल्म्स (लेखक- संजीत नार्वेकर) में भी पृष्ठ 188 पर भगवती प्रसाद मिश्रा और उनकी फिल्मों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। उन्होंने कई फिल्में बनाईं, जिसमें द्रौपदी, सिनेमा गर्ल और जालिम जवानी ज्यादा चर्चा में रहीं। हालांकि ऐतिहासिक विषयों पर उनकी फिल्मों में राणा प्रताप, रजिया बेगम और वीर दुर्गादास के अलावा मेवाड़ नूं माटी, सम्राट अशोक और धार्मिक विषयों पर अहिल्या बाई और सती मदालसा जैसी फिल्में भी थीं। जिसमें ‘द्रौपदी’ में अर्जुन के रोल में थे पृथ्वीराज कपूर तो ‘सिनेमा गर्ल’ में भी वही हीरो थे, तो ‘जालिम जवानी’ फिल्म में उनके हीरो थे ‘आलम आरा’ वाले मास्टर बिट्ठल। मूक फिल्मों के दौर में उनका नाम बड़े फिल्मकार के तौर पर जाना जाता था।
महाराणा प्रताप पर दूसरी फिल्म हिंदी फिल्म इंडस्ट्री मैं बनाई थी जयंत देसाई ने, वो सूरत के रहने वाले थे और मुंबई से उन्होंने ग्रेजुएशन किया। 1929 में उन्होंने रंजीत स्टूडियो में काम करना शुरू किया और कई बड़ी फिल्में निर्देशित की, जिनमें तूफानी टोली (1937), तानसेन (1943) और हर हर महादेव (1950) के साथ साथ 1946 में आई फिल्म ‘महाराणा प्रताप’ भी शामिल है। इस फिल्म में जिन कलाकारों के नाम मिलते हैं, वो थे ईश्वर लाल, मुबारक, खुर्शीद, सीता देवी, रेवाशंकर, नूरजहां और भगवान दास। फिल्म के गीत लिखे थे स्वामी रामानंद ने और संगीत राम गांगुली ने दिया था। फिल्म इतिहास से जुड़ी सभी किताबों में इस फिल्म का जिक्र है, लेकिन इस बात का नहीं कि इस फिल्म में महाराणा प्रताप का लीड रोल किसने किया था, हालांकि अशोक राज की किताब ‘हीरो’ के वोल्यूम वन में इस बात का इशारा मिलता है कि ईश्वर लाल महाराणा की भूमिका में रहे होंगे क्योंकि जयंत देसाई उनके मेंटर थे, जो इड्डी विल्मोरिया के साथ ‘रंगीला राजा’ में और पृथ्वीराज कपूर के साथ 1940 में बनी ‘आज का हिंदुस्तान’ में उन्हें दूसरे हीरो के रोल में ले चुके थे। वैसे भी उस वक्त ‘महाराणा प्रताप’ के दूसरे अभिनेता मुबारक उनसे बड़ा चेहरा नहीं थे। ईश्वर लाल का असली नाम हरिप्रसाद जोशी था और वो भी गुजरात के ही रहने वाले थे, बाद में जयंत देसाई ने फिल्में प्रोडयूस करके उन्हें डायरेक्टर बनने का भी मौका दिया था।
1961 में आई फिल्म ‘जय चित्तौड़’। इस फिल्म के डायरेक्टर थे जसवंत झवेरी, फिल्म में हीरो यानी महाराणा प्रताप के रोल में थे पी जयराज। पी जयराज का नाम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सबसे लम्बे कैरियर के चलते गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था। 1930 में उनकी पहली फिल्म थी ‘जगमगती जवानी’ और उनकी आखिरी फिल्म आई 1995 में, जिसका नाम था ‘गॉड एंड गन’। अगर आपने ‘शोले’ देखी तो याद कीजिए, वो पुलिस कमिश्नर के रोल में थे। वो ‘मुकद्दर का सिकंदर’ और ‘डॉन’ जैसी फिल्मों में भी थे। लेकिन एक दौर था, जब बड़े अभिनेताओं में उनकी गिनती होती थी। ‘जय चित्तौड़’ में उनके साथ निरूपा ऱॉय रानी के रोल में थीं। फिल्म के गीत लिखे थे भरत व्यास ने और संगीत दिया था एसएन त्रिपाठी ने। शायद महाराणा प्रताप से जुड़ी ये सबसे पुरानी फिल्म है, जिसके गाने आप आसानी से यूट्यूब पर ढूंढ सकते हैं। लता मंगेशकर की आवाज में गाया गीत ‘ऐ पवनवेग से उड़ने वाले घोड़े..’ हल्दी घाटी युद्ध से ठीक पहले का गाना है, जिसमें निरूपा ऱॉय पहले चेतक को तिलक लगाती हैं और फिर महाराणा राणा प्रताप यानी पी जयराज को। इसी तरह आशा भोंसले की आवाज में महाराणा की शान में भी एक गीत इस फिल्म में है, जिसके बोल हैं, ‘हो जियो जियो महाराज, धन्य धन्य मेवाड़पति’। एक गीत मन्ना डे की आवाज में भी है, जिसके बोल हैं- ‘चिंगारी आज बनी ज्वाला, ज्वाला अम्बर तक’। ये सारे गीत आप यूट्यूब में देख सकते हैं।
राणा प्रताप का किरदार तो थोड़ी बहुत देर के लिए अकबर से जुड़ी कुछ फिल्मों में हो सकता है। ये अलग बात है कि हृतिक रोशन और ऐश्वर्या राय की फिल्म ‘जोधा अकबर’ मॆं महाराणा का किरदार नहीं था। लोग कह सकते हैं, कि अकबर का महाराणा से टकराव बाद के दिनों में हुआ था, ऐसे में दिलीप कुमार और मधुबाला की ‘मुगल ए आजम’ में होना चाहिए था, लेकिन उस फिल्म में भी निर्देशक ने महाराणा प्रताप का किरदार लेने का जोखिम मोल नहीं लिया। जोखिम ये था कि अगर आप अकबर को महानायक के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं, तो महाराणा को कमतर दिखाना पड़ेगा, जिसको देश की जनता बर्दाश्त नहीं करती। ऐसे में उनके किरदार को ना छूना ही बेहतर था। लेकिन बाद के फिल्मकारों ने तो महाराणा प्रताप के किरदार को महानायक बनाने में भी जोखिम समझा, और कोई भी फिल्म उनको लेकर नहीं बनाई गई। 1961 की ‘जय चित्तौड’ के 51 साल बाद यानी 2012 में एक फिल्म की जानकारी मिलती है, उसका नाम है ‘महाराणा प्रताप, द फर्स्ट फ्रीडम फाइटर’। लेकिन फिल्मी दुनियां के किसी बड़े फिल्मकार ने इसे नहीं बनाया बल्कि महाराणा के चाहने वालों ने बनाया। डा. प्रदीप कुमावत ने ही कहानी लिखी, निर्देशक भी वही थे, कुलदीप चर्तुवेदी मुख्य भूमिका में थे। फिल्म का संगीत एलबम टी-सीरीज से आया, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने रिलीज किया। फिल्म के लिए रूप कुमार राठोड़, साधना सरगम, भूपिंदर सिंह आदि ने गाया, जगजीत सिंह का एक गीत ‘याद आएगा’ भी इस फिल्म में है। लेकिन कोई बड़ा चेहरा ना होने के चलते ये फिल्म राजपूताना के कुछ इलाकों में ही रिलीज हो सकी।
ऐसे में सवाल उठता भी है कि क्यों महाराणा प्रताप जैसे किरदार पर हर कोई फिल्म बनाने से डरता है, जबकि उनकी जिंदगी में सौतेली मां, सौतेले भाई, पत्नियां, बेटे, चेतक, जीवन का संघर्ष, घास की रोटी, मेवाड़ की आन बान शान, उनके कवच, भाले और गोरिल्ला पद्धति की रोमांचक युद्ध कला और उदयपुर जैसा खूबसूरत शहर और खतरनाक ढंग के दर्रे और किले भी हैं, जो एक बॉलीवुड फिल्म के लिए अच्छा मसाला साबित होंगे। उससे भी ज्यादा है एक ऐसा नायक, जो तब भी नहीं झुका, जबकि पूरा देश झुक गया। यहां अच्छे डायलॉग्स की सम्भावना बनती है। चेतक की मौत के बाद गद्दार भाई का उनको अपना घोड़ा देना इमोशंस के पारावार पर ले जा सकता है। लेकिन बॉलीवुड के निर्देशकों को डर है कि अगर महाराणा प्रताप हीरो होंगे, महानायक होंगे तो खलनायक कौन होगा? वो होगा, जिसे देश के नेताओं ने सबसे बड़ा नायक बना दिया है। लेकिन ‘पदमावत’ जैसी फिल्म के बाद उनको समझना होगा कि अब ये जोखिम नहीं रह गय़ा है, जनता सच जानने के लिए पर्याप्त वयस्क हो चुकी है।
टीवी पर शायद महाराणा प्रताप का किरदार सबसे पहले पुनीत इस्सर ने निभाया होगा। जब श्याम बेनेगल ने 1988 में ‘भारत एक खोज’ सीरीज को निर्देशित किया गया था, तो 53 एपिसोड्स की योजना बनाई गई थी। जिसके 32 वें एपिसोड में राणा प्रताप का किरदार रखा गया था। अकबर सीरीज का ये पहला एपिसोड था, अकबर का किरदार कुलभूषण खरबंदा ने निभाया था तो महाराणा प्रताप का किरदार पुनीत इस्सर को दिया गया था, शायद ये पुनीत का पहला पॉजीटिव रोल रहा होगा। आप यूट्यूब पर आसानी से इस एपिसोड को ढूंढ सकते हैं। वैसे महाराणा प्रताप को लेकर जो टीवी सीरियल बने उनमें प्रमुख हैं ‘जोधा अकबर’ सीरियल, जिसे एकता कपूर के बालाजी फिल्म्स ने बनाया और ये जीटीवी पर 18 जून 2013 से प्रसारित होना शुरू हुआ, 2015 तक पांच सौ से भी अधिक इसके एपिसोड प्रसारित होते रहे। इस सीरियल में महाराणा प्रताप का किरदार अनुराग शर्मा नाम के टीवी कलाकार ने किया था।
27 मई 2013 से सोनी टीवी पर मशहूर टीवी प्रोडक्शन हाउस कोंटिलो को अभिमन्यु राज सिंह ने महाराणा प्रताप की जिंदगी पर ‘भारत का वीर पुत्र, महाराणा प्रताप’ नाम से एक सीरियल शुरू किया। पहले एपिसोड में महाराणा प्रताप के किरदार के बारे में बताने के लिए बतौर सूत्रथार अमिताभ बच्चन की आवाज का इस्तेमाल किया गया। 10 दिसम्बर 2015 तक ये सीरियल चलता रहा, करीब 539 एपिसोड दिखाए गए। हाल ही में ‘आरम्भ’ नाम से एक सीरियल स्टार प्लस पर शुरू हुआ था, जिसमें कि तनूजा, रजनीश दुग्गल, तेज सप्रू, शाहबाज खान जैसे बॉलीवुड कलाकार भी काम कर रहे थे, लेकिन 24 एपिसोड्स में ही बंद करना पड़ा क्योंकि लोगों को पसंद नहीं आया, टीआरपी नहीं आई। ऐसे में ‘भारत का वीर पुत्र, महाराणा प्रताप’ अगर 539 एपिसोड तक चलाया जाता है, इसका मतलब है कि वो लोगों को पसंद आ रहा था, चैनल को फायदा हो रहा था और ये भी कि लोगों के दिलों में महाराणा प्रताप का गहरा सम्मान है। इस सीरियल में महाराणा प्रताप के बचपन और जवानी के किरदार को अलग अलग अभिनेताओं शरद मल्होत्रा और फैजल खान ने निभाया।
हालांकि एक हालिया न्यूज चैनल की टीवी सीरीज में दो एपिसोड्स में हल्दी घाटी का युद्ध दिखाया गया, जहां मशहूर इतिहासकारों के हवाले से पूरे युद्ध के बारे में बताया गया, ये भी बताया गया कि कैसे हल्दी घाटी के युद्ध के बाद मान सिंह के मुगल दरबार में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया, इससे साफ होता है कि मान सिंह अकबर की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा, यानी खुद अकबर ने हल्दी घाटी के युद्ध में अपनी जीत नहीं बल्कि हार मानी थी। दिल्ली दूरदर्शन (डीडी) के लिए अकबर खान ने 1988-89 में ‘अकबर दी ग्रेट’ के नाम से एक टीवी सीरीज भी बनाई थी, जिसमें महाराणा प्रताप का किरदार भी हो सकता है, लेकिन ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई।
ऐसे में एक सीरियल महाराणा प्रताप पर और बना, जिसकी चर्चा नहीं होती। जो बीआर चोपड़ा के ‘महाभारत’ में शकुनि का रोल करने वाले गूफी पेंटल ने बनाया था। ‘शूरवीर महाराणा प्रताप’ के नाम से शुरू हुए इस सीरियल का नाम बाद में कर दिया गया था ‘महाराणा प्रताप, प्राइड ऑफ इंडिया’। इस सीरियल की योजना गूफी पेंटल ने मशहूर अभिनेता विनोद खन्ना के साथ बनाई थी। विनोद खन्ना ने कई एपिसोड्स भी शूट किए, डीडी के लिए बन रहे इस सीरियल को लेकर विनोद खन्ना काफी उत्साहित थे। उनके साथ पूनम ढिल्लन को इस सीरियल के लिए लिया गया था। फिर किसी वजह से ये सीरियल अटक गया, कई बार विनोद खन्ना का इंटरव्यू भी अखबारों में आया कि जल्द ही सीरियल पूरा होकर प्रसारित होगा। लेकिन पता नहीं चल पाया कि वो सीरियल प्रसारित हुआ भी कि नहीं क्योंकि गूफी पेंटल ने 2017 में दैनिक जागरण के दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि सीरियल प्रसारित हो गया था। लेकिन 2008 में विनोद खन्ना का द हिंदू में एक इंटरव्यू छपा था कि मैं जल्द सीरियल पूरा करूंगा। कुल 156 एपिसोड की योजना इस सीरियल के लिए बनाई गई थी।
ऐसे में चूंकि बाजीराव मस्तानी, पदमावत जैसी फिल्में बनी हैं, जिनमें हिंदू नायकों की कहानियों को तमाम जोखिम लेते हुए भी बनाया गया और उनके जरिए कमाई भी गई। ‘मोहनजोदाड़ो’ को बिना आर्य आक्रमण सिद्धांत के दिखाया गया, साउथ में भी गोतमी पुत्र शातकर्णि पर हाल ही में फिल्में बनी हैं। उम्मीद है कि बॉलीवुड का शुरूआती दौर वापस आएगा और बिना किसी डर या झिझक के वो महाराणा प्रताप जैसे महानायकों की महागाथाओं को भी बड़े परदे पर लाएंगे। हालांकि सोशल मीडिया खासकर यूट्यूब इसका ब़ड़ा जरिया बना है, महाराणा प्रताप और मेवाड़ की वीर गाथाओं पर कई एलबम और शॉर्ट फिल्में यूट्यूब पर उपलब्ध हैं।
लेखक : विष्णु शर्मा
लेखक विष्णु शर्मा इतिहास के ब्लॉगर हैं, पत्रकार हैं, इतिहास से नेट क्वालीफाइड हैं, एमफिल कर चुके हैं। इंडियन हिस्ट्री पर उनका काम यूट्यूब से लेकर तमाम बेवसाइट्स पर बिखरा पड़ा है।
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