क्या है सूरजपोल दरवाजे का इतिहास, सूरजपोल बुर्ज के नाम और तोप !
उदयपुर के दरवाजे और इमारतें जो कि हेरिटेज की अदभुत बेमिसाल है, मेवाड़ी स्थापत्य कला यहाँ के राजमहल के साथ जगदीश मंदिर, सज्जनगढ़ ,शहर कोट की दीवार और शहर कोट के दरवाजे से ये अनुमान लगाया जा सकता है कि निर्माण और भव्यता में यहाँ के कारीगरों का कोई सानी नहीं था। चाहे पीछोला की पाल जो कि बिना सीमेन्ट और लेन्टर (सरियों का झाल ) के बनायी गयी और आज भी 13.08 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी को रोके है जो आज भी इंजीनियरिंग के लिए शोध का विषय है कि कैसे एक सैकड़ो साल पुरानी मिट्टी और घारें से बनी पाल रूपी दीवार इतने विशाल पानी को रोकें है। मेवाड़ी निर्माण शैली के चमत्कारों और उत्कृष्ट्ता के बारें में लिखते लिखते मेरे शब्द कम पड़ जाएँगे और विस्तृत रूप से इसे आने वाले आलेखों में बताने का प्रयास करेंगे।कोरोना काल में जहाँ आम आदमी अपने घर में बैठे बीमारी की भयावहता के बारें में सोच रहा है और अवसाद में जा रहा है तो इस पर संज्ञान लेते हुए उदयपुर के ख्यातनाम इतिहासकार जोगेंद्र पुरोहित ने आग्रह किया कि ऐसे दौर में लोगों का ध्यान बटाने के लिए क्यों न उदयपुर की ताबिरो/इमारतों के बारे में लोगों को बताया जाय जिससे न केवल इस बीमारी से कुछ पल के लिए पाठकों का ध्यान कोरोना की भयावहता से दूर हो सके और उदयपुर की हेरिटेज के बारे में लोगों को जानकारी मिल सके। इसी क्रम में कई रोचक जानकारियां उन्होंने सूरजपोल के बारे में साझा की है।
दरअसल माछला मगरा से लगती एक दीवार पुराने उदयपुर शहर को अपनी गोद में समेटे हुए है। इसी दीवार के सहारे ऐतिहासिक इमारत सुरजपोल का दरवाजा सीना ताने आपको दिखायी देता होगा। इसी दरवाजे ने न जाने कितने युद्ध देखे,कितने सैनिक यहाँ काम आ गये और कितने दुश्मन यहाँ मौत के घाट उतार दिए गये। ये दरवाजा चुपचाप मेवाड़ की रखवाली करता रहा और चितौड़गढ़ से आने वाले पथिकों के एक चेक पोस्ट बना रहा। इसके साथ ही इस दरवाजे ने आक्रमणकारियों को उदयपुर की भव्यता के बारे में बुलंद आवाज़ उठाई है।
सुरजपोल के निर्माण की कहानी और मराठाओं का आक्रमण
बात महाराणा अरि सिंह के काल 1761 से 1773 के मध्य की है। मेवाड़ का बड़ा ही विकट समय चल रहा था। स्थानीय सामंत विद्रोही होते जा रहे थे। कई सामंत विद्रोही हो गए और अपनी मर्जी से विद्रोह करने लगे। अराजकता का माहौल हो गया और जगह-जगह छोटी-छोटी स्टेट अपने आप एक दूसरे से लड़ने के लिए तैयार हो गए थे। प्रशासनिक व्यवस्था गड़बड़ाने लगी थी ।
कवि श्यामल दास वीर विनोद किताब में लिखते हैं, “जब महाराणा अरि सिंह द्वितीय, महाराणा राज सिंह द्वितीय के 1761 में निधन के बाद सिंहासन पर चढ़े, तो उन्होंने शुभचिंतक और वफादार और महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो प्रधानमंत्री मेवाड़ के अमर चंद बडवा को हटाकर राज्य प्रशासन का पुनर्गठन किया और जसवंतराय पंचोली को प्रभार सौंपा। उन्होंने मेहता आगर चंद बच्छावत को भी अपना सलाहकार नियुक्त किया।
उधर दूसरी और महादजी सिंधिया की सेनाओं ने विद्रोही रतन सिंह और उनके गुट की सहायता की, उज्जैन के पास शिप्रा नदी पर डेरा डाला। 1768 में मराठों के साथ लड़ाई में सलूम्बर, शाहपुरा और बनेड़ा के प्रमुख मारे गए थे। महाराणा अरि सिंह के साथ लड़ने के दौरान प्रधान मेहता अगर चंद गंभीर रूप से घायल हो गए थे। मेहता अगर चंद और अन्य को मराठों द्वारा गिरफ्तार किया गया था। महाराणा रूपाहेली ठाकुर के आदेश पर, शिव सिंह ने कुछ आदिवासियों को भेजा, जो प्रधान अगर चंद को बचाने में कामयाब रहे। बाकी को बाद में छोड़ दिया गया।
कवि श्यामल दास ने वीर विनोद में लिखा है, “1769 में, उज्जैन युद्ध के बाद सलूम्बर के रावत भीम सिंह ने महाराणा अरि सिंह द्वितीय को सुझाव दिया, कि पूर्व प्रधानमंत्री अमर चंद बडवा को वापस बुलाया जाए और उन्हें जिम्मेदारी सौंपी जाए। तदनुसार महाराणा अमर चंद के निवास पर गए और उन्हें प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी स्वीकार करने की पेशकश की। अमर चंद बडवा द्वारा व्यक्त की गयी बातों के बाद महाराणा ने उन्हें किसी भी हद तक मदद करने का वादा किया।
अमर चंद बडवा ने प्रधानमंत्री के रूप में जिम्मेदारी स्वीकार की और महादजी सिंधिया से प्रतिशोध के रूप में उदयपुर की किलेबंदी शुरू की। उदयपुर आकर अमरचंद बड़वा ने सबसे पहले 8 किलोमीटर लंबी शहरकोट शहर के चारों तरफ बनवायी और चार छोटे गढ़/दरवाजे बनवाये जिसमें इंदरगढ़ सारणेश्वरगढ़, सूरजपोल,अंबावगढ़। अमरचंद ने शहर के चारों ओर इन्द्रगढ़, सारणेश्वरगढ़, सूरजपोल तथा अम्बावगढ़ पर तौपें लगाई। बुर्ज पर 'जगतशोभा' तोप लगाई गई। अन्य बुर्जों में पुरोहितजी की हवेली के पास बुर्ज पर 'शिव प्रसन्न' तोप, अमर ओटा के पास बुर्ज पर 'कटक बिजली' तोप, हाथीपोल व सूरजपोल के पास बुर्ज पर 'जयअम्बा' और 'मस्तबाण' तोपें लगाई गई।
आक्रमण के समय सूरजपोल के दरवाजे पर कुराबड़ के रावत चुण्डावत कृष्णावत,अर्जुन सिंह ,केसरी सिंहोत ,हमीरगढ़ के राणावत धीरज सिंह,उम्मेद सिंहोत और कायस्थ सुंदरनाथ जमीयत के साथ तैनात किया गया था। सूरजपोल के सामने महलो में रुद का ठाकुर शक्तावत जवान सिंह,गोकुल दासोत पाँच सौ सिंधी सैनिको के साथ तैनात हुए थे। सूरजपोल के उत्तरी ध्रुव बुर्ज पर मूणावास के राणावत बाबा शिवसिंह को तैनात किया गया था।
सूरजपोल दरवाजा उत्तरी अक्षांश 24 डिग्री 3446. 15 एवं पूर्वी देशान्तर 73 डिग्री 4145.87 पर स्थित एक बुर्ज है। लेकिन अब लोग इसे उदयपुर के प्रवेश द्वार /दरवाज़े के रूप में जानते है। वर्तमान में स्मार्ट सिटी प्रशासन द्वारा इसे सरंक्षित करने का काम किया गया है लेकिन बुर्ज का प्लास्टर इसकी शोभा के अनुसार नहीं है और न ही कोई जानकारी और सुचना पट्ट लगाया गया है जिससे उदयपुर निवासियों सहित पर्यटकों को इसकी जानकारी मिल सके। (वैसे इसकी जानकारी स्मार्ट सिटी के अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन को भी नहीं है।)
सबसे महत्वपूर्ण बात सूरजपोल बुर्ज/दरवाजे की ये है कि प्राचीन काल से ही इसे बहुत शुभ माना गया है और लोग पुराने समय से ही इस दरवाजे से ही अपने कार्य प्रयोजन के लिए निकला करते थे और दिल्ली दरवाज़े को खास तौर पर उपेक्षित ही रखा करते थे। इसलिए ही मेवाड़ राजपरिवार में महाराणा की मृत्यु होने पर अग्नि संस्कार के लिए सूरजपोल होकर ही महासतिया ले जाया जाता था। सूरजपोल के दरवाजे के सामने की तरफ एवं कोनों में पेड़ की पत्ती जैसी आकृति की संरचना बनायी गयी थी। इस सूरजपोल के दोनों तरफ समान दूरी पर दो षटकोण आकृति के बुर्ज बनाये गए थे। दरवाजे के ठीक सामने तोप भी रखवायी गयी थी।
इस तरह सूरजपोल पर जो दो बुर्ज बने है उसके नाम है - उत्तरी ध्रुव बुर्ज और दूसरे बुर्ज का नाम है ईशान कोण का ज्वालामुखी बुर्ज। इसी ज्वालामुखी बुर्ज पर शम्भूबाण तोप भी हुआ करती थी। इसके साथ ही सूरजपोल से लगती शहर कोट से सटी हुई खाइयों (वर्तमान बापू बाजार,टाउन हाल रोड,सिटी स्टेशन रोड आदि ) को खोद कर मिट्टी निकाल इसे व्यवस्थित किया गया था ताकि संकटकाल में इनमे पानी भरा जा सके और शत्रु पानी से भरी खाई को लाँघ कर शहर कोट के पास न आ सके।
सूरजपोल को मेवाड़ का पूर्व दिशा का दरवाजा भी कहा जाता था और अंग्रेजों के समय इसे फिरंगी दरवाज़े का नाम भी दिया गया था क्योंकि यहाँ पर कर्जन वायली का स्मारक भी बनाया गया था। महाराणा भूपाल सिंह जी के समय में महाराणा ने यहाँ एक बड़ा बगीचा बनवा कर फव्वारे भी लगवाये (वर्तमान में स्मार्ट सिटी उदयपुर द्वारा एक बड़े अस्पताल समूह द्वारा लगवाए फव्वारें निराश ही करते है ) और एक बड़ा हौज़ बनवाया ताकि पशु पक्षी ,जंगली सूअर ,वन्य जीव यहाँ आकर पानी पीकर तृष्णा शांत कर सके।
कुल मिलाकर सूरजपोल दरवाजा अपने आप में उदयपुर के इतिहास की भव्यता को लेकर हमेशा से मुझे रोमांचित करता चला आया है और इस आलेख को पढ़ने के बाद आप को भी इस दरवाजे के पास से गुजरते समय गर्व का अनुभव होगा।
इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित
शोध :दिनेश भट्ट (न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम)
Email:erdineshbhatt@gmail.com
नोट : उपरोक्त तथ्य लोगों की जानकारी के लिए है और काल खण्ड ,तथ्य और समय की जानकारी देते यद्धपि सावधानी बरती गयी है , फिर भी किसी वाद -विवाद के लिए अधिकृत जानकारी को महत्ता दी जाए। न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम किसी भी तथ्य और प्रासंगिकता के लिए उत्तरदायी नहीं है।