Breaking News

Dr Arvinder Singh Udaipur, Dr Arvinder Singh Jaipur, Dr Arvinder Singh Rajasthan, Governor Rajasthan, Arth Diagnostics, Arth Skin and Fitness, Arth Group, World Record Holder, World Record, Cosmetic Dermatologist, Clinical Cosmetology, Gold Medalist

Current News / समझें नवरात्रि का महत्व

clean-udaipur समझें नवरात्रि का महत्व
पंडित सुनील दीक्षित September 25, 2022 11:24 AM IST

समझें नवरात्रि का महत्व 

नवरात्रि नाम से ही स्पष्ट है, नौ रात के बाद संपन्न होती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह दो मौसम का संधिकाल है। अपने देश में चार बार मौसम बदलते हैं और हमारे शास्त्रों में भी अनादिकाल से चार नवरात्रि हिन्दू धर्म में करते आ रहे हैं। चैत्र शुक्ल से वर्ष प्रारम्भ माना जाता है। चैत्र शुक्ल एकम से ही चैत्री नवरात्रि की शुरुआत होती है। इसमें भगवान राम का जन्म होने से राम नवमी मनाने के साथ यह नवरात्रि श्रीराम के नाम की जाती है। दूसरी आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकम से नवरात्रि की शुरुआत होती है। यह गुप्त नवरात्रि होती है। इसमें बीज के दिन भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है और अबूझ मुहूर्त भड़ल्या नवमी चौमासे से पहले मांगलिक कार्यों के लिए अंतिम मुहूर्त होता है। इसके बाद ग्यारस (एकादशी) पर देवशयन हो जाते हैं। तीसरी आश्विन शुक्ल एकम से मां शारदीय नवरात्रि आरम्भ होती है। नौ रात्रि समापन पर हम इसमें दशहरा मनाते हैं। अज्ञानता के कारण भक्त नवरात्रि का समापन सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर भी करते हैं, जो शास्त्रोक्त नहीं है। वर्ष की अंतिम नवरात्रि माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकम से शुरू होती है। यह तांत्रिक नवरात्रि कहलाती है। इसमें वैदिक मंत्र जाप की जगह तांत्रिक क्रियाओं से सिद्धि प्राप्त की जाती है। उज्जैन महाकाल मंदिर या अन्य स्थानों पर इसके बारे में देखा जा सकता है। 

इस वर्ष आश्विन शरद नवरात्रि एकम सोमवार 26 सितम्बर से प्रारंभ हो रही है। इस दिन घट स्थापना के लिए प्रातः 6.31 से 7.30 तक अमृत वेला, दिन में 9.30 से 11 बजे तक फिर 12.05 से 12.53 तक अभिजीत वेला के बाद धन लग्न 12.41 से 2.45 तक शुभ मुहूर्त है।

कथा के अनुसार भगवान शिव से प्रतिशोध लेने की इच्छा के साथ दक्ष ने यज्ञ किया। दक्ष ने भगवान शिव और अपनी पुत्री माता सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती ने यज्ञ में उपस्थित होने की अपनी इच्छा शिव के सामने व्यक्त की। उन्होंने माता को रोकने के लिए अपनी पूरी कोशिश की, परंतु माता सती यज्ञ में चली गईं। यज्ञ में पहुंचने के पश्चात् माता सती का स्वागत नहीं किया गया। इसके अलावा, दक्ष ने शिव का अपमान किया। माता सती अपने पिता द्वारा अपमान को झेलने में असमर्थ थीं, इसलिए उन्होंने अपने शरीर का बलिदान दे दिया। 

अपमान और चोट से क्रोधित भगवान शिव ने तांडव किया और शिव के वीरभद्र अवतार ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और उसका सिर काट दिया। सभी मौजूद देवताओं के अनुरोध के बाद दक्ष को वापस जीवित किया गया और मनुष्य के सर की जगह एक बकरी का सिर लगाया गया। दुख में डूबे शिव ने माता सती के शरीर को उठाकर, विनाश का दिव्य नृत्य किया। अन्य देवताओं ने विष्णु को इस विनाश को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। जिस पर विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते हुए माता सती के देह के 51 टुकड़े कर दिए। शरीर के विभिन्न हिस्से भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे और वह शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए।

हिंदू धर्म में पुराणों का विशेष महत्व है। इन्हीं पुराणों में वर्णन है माता के शक्तिपीठों का भी। अब शुरुआत नवरात्रों की हो और जयकारे मां के शक्तिपीठों के न लगें, ऐसा कैसे हो सकता है। पुराणों की ही मानें तो जहां-जहां देवी सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र और गहने गिरे, वहां-वहां मां के शक्तिपीठ बन गए। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं। देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं।

आइए, जानें कहां-कहां हैं ये शक्तिपीठ...

1 . हिंगलाज शक्तिपीठ

कराची से 125 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है हिंगलाज शक्तिपीठ। पुराणों की मानें तो यहां माता का सिर गिरा था। इसकी शक्ति-कोटरी (भैरवी कोट्टवीशा) 

2 . शर्कररे (करवीर)

पाकिस्तान के ही कराची में सुक्कर स्टेशन के पास शर्कररे शक्तिपीठ स्थित है। यहां माता की आंख गिरी थी।

3 . सु्गंधा-सुनंदा

बांग्लादेश के शिकारपुर में बरिसल से करीब 20 किमी दूर सोंध नदी है। इसी नदी के पास स्थित है मां सुगंधा शक्तिपीठ। कहते हैं कि यहां मां की नासिका गिरी थी।

4 . कश्मीर-महामाया

भारत के कश्मीर में पहलगांव के पास मां का कंठ गिरा था। यहीं महामाया शक्तिपीठ बना।

5 . ज्वालामुखी-सिद्धिदा

भारत में हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी। इसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं।

6 . जालंधर-त्रिपुरमालिनी

पंजाब के जालंधर में छावनी स्टेशन के पास देवी तालाब है। यहां माता का बायां वक्ष गिरा था।

7 . वैद्यनाथ- जयदुर्गा

झारखंड के देवघर में बना है वैद्यनाथ धाम। यहां माता का हृदय गिरा था।

8 . नेपाल- महामाया

नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के पास बसा है गुजरेश्वरी मंदिर। यहां माता के दोनों घुटने गिरे थे।

9 . मानस- दाक्षायणी

तिब्बत में कैलाश मानसरोवर के मानसा के पास एक पाषाण शिला पर माता का दायां हाथ गिरा था।

10 . विरजा- विरजाक्षेतर

भारत के उड़ीसा में विराज में उत्कल स्थित जगह पर माता की नाभि गिरी थी।

11 . गंडकी- गंडकी

नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर है। यहां माता का मस्तक या गंडस्थल यानी कनपटी गिरी थी।

12 . बहुला-बहुला (चंडिका)

भारत के पश्चिम बंगाल में वर्धमान जिले से 8 किलोमीटर दूर कटुआ केतुग्राम के पास अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायां हाथ गिरा था। 

13 . उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका

भारत में पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले से 16 किलोमीटर गुस्कुर स्टेशन से उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दाईं कलाई गिरी थी। 

14 . त्रिपुरा-त्रिपुर सुंदरी

भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के पास राधाकिशोरपुर गांव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायां पैर गिरा था।

15 . चट्टल - भवानी

बांग्लादेश में चिट्टगौंग (चटगांव) जिले के सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी।

16 . त्रिस्रोता - भ्रामरी

भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था।

17 . कामगिरि - कामाख्या

भारतीय राज्य असम के गुवाहाटी जिले के कामगिरि क्षेत्र में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था।  

18 . प्रयाग - ललिता

भारतीय राज्य उत्तरप्रदेश के इलाहबाद शहर (प्रयाग) के संगम तट पर माता की हाथ की अंगुली गिरी थी।  

19 . युगाद्या- भूतधात्री

पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम स्थित जुगाड्या (युगाद्या) स्थान पर माता के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था।

20 . जयंती- जयंती

बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के जयंतीया परगना के भोरभोग गांव कालाजोर के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर है। यहां माता की बायीं जंघा गिरी थी।   

21 . कालीपीठ - कालिका

कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था।

22 . किरीट - विमला (भुवनेशी)

पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिले के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था।

23 . वाराणसी - विशालाक्षी

उत्तरप्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर माता के कान के मणि जड़ित कुंडल गिरे थे।  

24 . कन्याश्रम - सर्वाणी

कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था।

25 . कुरुक्षेत्र - सावित्री

हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी।  

26 . मणिदेविक - गायत्री  

अजमेर के पास पुष्कर के मणिबन्ध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे।

27 . श्रीशैल - महालक्ष्मी

बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जैनपुर गांव के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था।    

28 . कांची- देवगर्भा  

पश्चिम बंगाल के बीरभुम जिले के बोलारपुर स्टेशन के उत्तर पूर्व स्थित कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी।

29 . कालमाधव - देवी काली

मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी तट के पास माता का बायां नितंब गिरा था, जहां एक गुफा है।   

30 . शोणदेश - नर्मदा (शोणाक्षी)

मध्यप्रदेश के अमरकंटक में नर्मदा के उद्गम पर शोणदेश स्थान पर माता का दायां नितंब गिरा था।  

31 . रामगिरि - शिवानी

उत्तरप्रदेश के झांसी-मणिकपुर रेलवे स्टेशन चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायां वक्ष गिरा था।  

32 . वृंदावन - उमा

उत्तरप्रदेश में मथुरा के पास वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे।  

33 . शुचि- नारायणी  

तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है। यहां पर माता के ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे।  

34 . पंचसागर - वाराही

पंचसागर (एक अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत गिरे थे।   

35 . करतोयातट - अपर्णा

बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गांव के पार करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी।   

36 . श्रीपर्वत - श्रीसुंदरी

कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी। दूसरी मान्यता अनुसार आंध्रप्रदेश के कुर्नूल जिले के श्रीशैलम स्थान पर दक्षिण गुल्फ अर्थात दाएं पैर की एड़ी गिरी थी।

37 . विभाष - कपालिनी

पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बाईं एड़ी गिरी थी।  

38 . प्रभास - चंद्रभागा

गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के पास वेरावल स्टेशन से 4 किलोमीटर प्रभास क्षेत्र में माता का उदर (पेट) गिरा था।  

39 . भैरवपर्वत - अवंती

मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के होंठ का ऊपरी हिस्सा गिरा। 

40 . जनस्थान - भ्रामरी

महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी।  

41 . सर्वशैल स्थान

आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास सर्वशैल स्थान पर माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे।  

42 . गोदावरीतीर

इस जगह पर माता के दक्षिण गंड गिरे थे।    

43 . रत्नावली - कुमारी

बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर रत्नावली स्थित रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायां स्कंध गिरा था।  

44 . मिथिला- उमा (महादेवी)

भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के पास मिथिला में माता का बायां स्कंध गिरा था।  

45 . नलहाटी - कालिका तारापीठ

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी।   

46 . कर्णाट- जयदुर्गा

यहां कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे।   

47 . वक्रेश्वर - महिषमर्दिनी

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से सात किमी दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रूमध्य गिरा था।  

48 . यशोर- यशोरेश्वरी

बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के हाथ और पैर गिरे थे। 

49 . अट्टाहास - फुल्लरा

पश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के होंठ का निचला हिस्सा गिरा। 

50 . नंदीपूर - नंदिनी

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के पास माता का गले का हार गिरा था।   

51 . लंका - इंद्राक्षी

ऐसा माना गया है कि संभवतः श्रीलंका के त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी।

सिर्फ यही नहीं इसके अलावा पटना-गया इलाके में भी कहीं मगध शक्तिपीठ माना गया है।

समय परिवर्तन के साथ कुछ कुरीतियां भी धर्म उत्सव में दिखाई देने लगी हैं जिसे हम सभी को मिलकर दूर करने का प्रयास करना आवश्यक है। शारदीय नवरात्रि में भक्त और विभिन्न समाज सायंकाल गरबा नृत्य का आयोजन करते हैं। इसमें भक्तिगीत कम और अश्लील फिल्मी गीत ज्यादा बजने लगे हैं। पहले माताजी का कलश बीच में अखंड ज्योत के साथ रखा जाता था। अब विशाल प्रतिमाएं लाई जाने लगी है, जो गलत परम्परा है। बहुत से व्यावसायिक घराने टिकट लगाकर भी इस तरह के आयोजन करते हैं। भक्ति में व्यावसायिकता का प्रवेश हो गया है। कोई दो दिन तो कोई तीन दिन गरबा कर रहे हैं। माताजी को सामने बिराजमान कर अपना फूहड़पन बताते हुए जूते तक नहीं खोलते। बहुत सी जगह शराब पार्टी भी चलती है। यह विकृतियां हमारे धर्म को बदनाम भी करती हैं। सभ्य समाज के मूक बने रहने से फिल्मकार भी फायदा उठाने लगे हैं। नवरात्रि को श्रद्धा का पर्व बनाए रखने का संकल्प जन-जन में अब आवश्यक हो गया है। 

 

  • fb-share
  • twitter-share
  • whatsapp-share
clean-udaipur

Disclaimer : All the information on this website is published in good faith and for general information purpose only. www.newsagencyindia.com does not make any warranties about the completeness, reliability and accuracy of this information. Any action you take upon the information you find on this website www.newsagencyindia.com , is strictly at your own risk
#

RELATED NEWS