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clean-udaipur उदयपुर के महाराणा है श्रीराम के वंशज,अयोध्या केस में देनी चाहिए जानकारी !
News Agency India August 02, 2019 06:58 AM IST

उदयपुर के महाराणा है श्रीराम के वंशज,अयोध्या केस में देनी चाहिए जानकारी !

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अदालत ने रामलला के वकील से जिज्ञासावश पूछा था कि भगवान राम का कोई वंशज अयोध्या या दुनिया में कही हैं? इस पर वकील का कहना था कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है।

इसके बाद जयपुर की राजकुमारी और राजसमंद से बीजेपी सांसद दीया कुमारी ने शनिवार (अगस्त 10, 2019) को कहा कि भगवान राम के वंशज पूरी दुनिया में मौजूद हैं। उन्होंने दावा किया कि उनका परिवार भगवान राम के पुत्र कुश से संबद्ध है। उनका कहना है कि जयपुर के पूर्व राजा और उनके पिता महाराजा भवानी सिंह कुश की 307वीं पीढ़ी के थे।

बीजेपी संसद ने इस बात का सबूत भी पेश किया। उन्होंने एक पत्रावली दिखाई, जिसमें भगवान राम के वंश के सभी पूर्वजों का नाम क्रम से लिखा हुआ है। इसी पत्रावली में 209वें वंशज के रूप में सवाई जयसिंह और 307वें वंशज के रूप में दीया के पिता महाराजा भवानी सिंह का नाम लिखा हुआ है।

इसी बात का जवाब देने के लिए दीया कुमारी आगे आईं और उन्होंने खुद को और अपने परिवार को भगवान राम का वंशज बताया। उन्होंने कहा कि ये इतिहास की खुली किताब की तरह है। साथ ही दीया ने कहा कि राम मंदिर मामले की सुनवाई तेजी से हो और इस पर कोर्ट जल्द अपना फैसला सुनाए।

वहीं, सिटी पैलेस संग्रहालय के अनुसार, कच्छवाहा वंश काे भगवान राम के बेटे कुश के नाम पर कुशवाहा वंश भी कहा जाता है। इसकी वंशावली के मुताबिक 62वें वंशज राजा दशरथ, 63वें वंशज भगवान राम और 64वें वंशज कुश थे।

वही मेवाड़ राजवंश की एक पत्रावली न्यूज़एजेंसीइंडियाडॉटकॉम के पास है जिसमे 64 वी पीढ़ी में राजा दशरथ जी का उल्लेख है और फिर इनके चार पुत्र बताये गए है (1) राजा श्री राम चंद्र जी (2) भरत जी (3) शत्रुघन जी (4) लक्ष्मण जी।
इसके बाद 65 वी पीढ़ी में रामचंद्र जी के दो पुत्र बताये गए। लव और कुश। यहाँ ये बात ध्यान देने योग्य है कि रामचंद्र जी के ज्येष्ठ पुत्र लव की गद्दी मेवाड़ रही और कुश की गद्दी जयपुर हो गयी और बाद में जयपुर राजपरिवार कुश के नाम से कुशवाह कहलाए।


सूर्यवंश की वंशावली
१ आदि नारायण
२ ब्रह्मा
३ मरीचि - दक्ष प्रजापति
४ कश्यप
५ विवस्वान ( सूर्य )
६ मनु ( वैवस्तु ) - मनु ने अयोध्या नगर बसाया और उसको अपनी राजधानी बनाया
७ इक्ष्वाकु ( मनु के 10 बेटो में इक्ष्वाकु सबसे बड़े थे तथा इनके नाम से इस वंश को इक्ष्वाकु वंश भी कहते हैं )
८ विकुक्षि
९ ककुत्स्थ
१० अनेना
११ पृथु
१२ विश्वरम्पपी
१३ चंद्र
१४ युवनाश्व -१
१५ शाबस्त
१६ वृह्दशव
१७ कुवलयाशव
१८ दृढास्व
१९ हर्य्यशव -१
२० निकुम्भ ( राजा निकुम्भ से क्षत्रियो की अन्य शाखा निकुम्भ वंशी , क्षत्रिय कहलाये )
२१ वरहनाशव
२२ कुशाश्व
२३ सेनजित
२४ युवनाश्व -२
२५ मान्धाता
२६ पुककुत्स
२७ त्रसध्दस्यु
२८ अनरणय
२९ हर्य्यशव -२
३० अरूण
३१ त्रिबन्धन
३२ सत्यवृत ( त्रिशंकु )
३३ हरिश्चन्द्र
३४ रोहित ( रोहिताश्व )
३५ हरित
३६ चंचु ( चम्प )
३७ सुदेव
३८ विजय
३९ भरुक
४० वृक्क
४१ बाहुक
४२ सगर
४२ असमंजस
४३ अंशुमान
४४ दिलीप
४५ भगीरथ
४६ श्रुत
४७ नाभाग
४८ अम्बरीष
४९ सिन्धुद्विप
५० आयुतायु
५१ हरित
५२ ऋतुपर्ण
५३ सर्वकाम
५४ सुदास ( सौदास )
५५ कल्मषपद
५६ अश्मक
५७ मूलक
५८ दशरथ-१
५९ एडविक
६० विश्वसह
६१ खटंगड
६२ दीर्घबाहु ( दिलीप )
६३ रघु ( राजा रघु के कारण इस वंश को रघुवंशी / रघुकुल भी कहते हैं ! इस कुल में जन्म लेने वाले क्षत्रियों के लिए प्राचीन दोहा प्रसिद्ध है कि ,, रघुकुल रीत सदा चली आई , प्राण जाये पर वचन ना जाये )
६४ अज
६५ दशरथ -२ ( राजा दशरथ आयोध्या के राजा थे इनके ४ बेटे हुए राम , भरत , लक्ष्मण , शत्रुघ्न )
६६ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र ( रामचन्द्र के २ बेटे हुए लव , कुश )
६७ कुश
६८ अतिथि
६९ निषध
७० नभ
७१ पुण्डरीक
७२ क्षेमधंध
७३ देवानीक
७४ अनीह
७५ परित्रात ( परियाग )
७६ बल
७७ स्थल
७८ वृजनाभ
७९ खगन
८० विधृति
८१ हिरण्याभ
८२ पुष्प
८३ ध्रुवसन्धि
८४ सुदर्शन
८५ अग्निवर्ण ( राजा रघु से लेकर अग्निवर्ण तक कि वंशावली प्रसिद्ध कवि कालिदास द्वारा निर्मित रचना " रघुवंशम " से ली गई हैं )
८६ शीघ्र
८७ मरु
८८ प्रसुश्रुत
८९ संधि ( सुसन्धि )
९० अमर्ष
९१ सहस्वान
९२ विश्वभन ( विश्वशाहु )
९३ वहृदबल
९४ वृहदृथ
९५ उरुक्षय
९६ वत्सव्यूह
९७ प्रतिव्योम
९८ भानु ( दिवाकर )
९९ सहदेव
१०० वृद्शव
१०१ भानुमान ( भानुमन )
१०२ प्रतीतिश्व
१०३ सुप्रतीक
१०४ मरूदेव
१०५ सुनाक्षत्र
१०६ पुष्कर
१०८ अंतरिक्ष
१०९ सुतया ( सुपर्ण )
११० अमित्रजित
१११ बहद्राज
११२ धर्मी ( बरहि )
११३ कुतजंय
११४ रणंजय
११५ संजय
११६ शाक्य ( राजा शाक्य से शाक्यवंशी क्षत्रिय की एक अन्य शाखा का विस्तार हुआ )
११७ शुद्धोधन
११८ सिद्धार्थ
११९ राहुल
१२० प्रसेनजित
१२१ क्षुद्रक
१२२ कुण्डक
१२३ सुरथ
१२४ सुमित्र ( यह अयोध्या के अंतिम राजा हुए ! नंदवंश के शासक महापद्मनंद द्वारा राजा सुमित्र को ३४२ ई. पूर्व , मे अयोध्या से निष्कासित कर दिया गया और अयोध्या को मगध राज्य मे मिला लिया गया ! तत्पश्चात राजा सुमित्र बिहार चले गए ) ( कुछ इतिहासकारों द्वारा गोहिल , राठौड़ , कछवाहा की निकासी यही से मानी है )
१२५ वीर्यनाभ ( गोहिल राजवँश ) १२५ कुर्म ( कछवाह
वंश ) ( कुछ इतिहासकार यही से गोहिल ओर कछवाह वंश की निकासी मानते हैं ! कर्नल टेम्स टॉड द्वारा लिखित मेवाड़ इतिहास , महाउपाध्यय गोरी शंकर ओझा द्वारा लिखित मेवाड़ इतिहास , कविराज श्यामलदास द्वारा लिखित वीर वीनोद मैं भी उपरोक्त वंशावली का समर्थन किया है )
१२६ महारथी
१२७ अतिरथी
१२८ अचलसेन ( माधवसेन 99 ईस्वी इनकी राजधानी वल्लभीपुर गुजरात मानी जाती है )
१२९ कनकसेन ( इनका शासन काल विभिन्न इतिहासकार द्वारा अलग अलग बताया गया है उनके द्वारा निम्न समय बताया गया है 155 ईस्वी माना गया , कुछ इतिहास कार द्वारा 202 विक्रम सम्वत बताया है ! राजा कनक सेन के ४ बेटे हुए १ चंद्र सेन , २ राघव सेन , ३ धीर सेन , ४ वीर सेन )

राजा राघव सेन को बड़गूजर राजवंश का आदि पुरुष माना जाता है ! राघव सेन के वंशज होने के कारण अधिकांश बड़गूजर गोत्र के रुप मे राघव लगते हैं ( सीकरवार राजवंश ,जो बड़गूजर कि शाखा है , खांप मैं भी इस बात का समर्थन किया गया है )

 

अयोध्या विवाद मामले में राजस्थान में जयपुर के बाद अब मेवाड़ के पूर्व राज परिवार ने भी कहा है कि वे श्रीराम के वंश के हैं। वे राम के बेटे लव के वंशज हैं। लव ने लव-काेटे (लाहौर) बसाया था। लव के वंशज कालांतर में आहाड़ मतलब मेवाड़ में आए और वहां सिसौदिया साम्राज्य की स्थापना की। इतिहासकारों ने भी कहा है कि मेवाड़ राजपरिवार के रीति-रिवाज, शिव उपासक और सूर्यवंशी हाेना भी श्रीराम के वंशज होने के प्रमाण हैं।


लव ने लवकाेटे (लाहौर) और बप्पा रावल ने रावलपिंडी बसाया था
विजेता प्रताप के लेखक इतिहासकार प्रो. चंद्रशेखर शर्मा, पूर्व राजपरिवार से जुड़े डॉ. अजातशत्रु सिंह शिवरती बताते हैं कि मेवाड़ राजपरिवार का राज प्रतीक सूर्य है और शिव उपासक हैं। ये दाेनाें समानताएं श्रीराम के वंश में भी रही हैं। मेवाड़ राजपरिवार के सूर्य वंशी होने की वंशावली भी मौजूद है। श्रीराम के बड़े बेटे लव (पाटवी) ने लवकाेटे (लाहौर) और कालांतर में बप्पा रावल ने रावलपिंडी बसाया था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। मेवाड़ का साम्राज्य पाकिस्तान तक था। चतुर सिंह बावजी ने चतुर चिंतामणि में भी महाराणा प्रताप को श्रीराम का पोता (वंशज) और रघुवंशी लिखा है।

असली वंशज तो लव वंश के राघव राजपूत :

भगवान राम के वंशज को लेकर एक और दावेदारी सामने आई है। कांग्रेस के प्रवक्ता सत्येंद्र सिंह राघव ने कहा कि राम के असली वंशज तो राघव राजपूत हैं। दो दिन पहले ही जयपुर के पूर्व राजघराने और राजसमंद से भाजपा सांसद दीया कुमारी ने खुद को राम का वंशज बताया था। राघव ने रविवार को अपने फेसबुक वाल पर वाल्मिकी रामायण का उल्लेख करते हुए यह दावेदारी पेश की है। राघव ने कहा कि लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। कुश को दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और लव को उत्तर कोसल में अभिषेक किया गया। वाल्मीकि रामायण के पेज नंबर 1671 में उल्लेख किया गया है। कालिदास के रघुवंश के अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को आज श्रावस्ती से जाना जाता है, जो राज्य उत्तर भारत में है। जबकि कुश का राज्य दक्षिण कोसल में है। कुश की राजधानी कुशावती आज के छत्तीसगढ़ में थी। यह भी उल्लेख है कि कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था। इससे साबित होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था। राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ, जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। जबकि कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।

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