राजस्थान में इस वर्ष के अंत में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हर राजनीतिक पार्टी के गलियारें रोशन हो चुके है। जहाँ कई विधानसभा सीटों पर दावेदारों के राजनीतिक करतब शुरू हो चुके है और अलग अलग करतब बाजी के सहारे लाइम लाइट में आने की कोशिशें जारी है। वही राज्य के सभी प्रमुख समुदायों ने अपना वर्चस्व दिखाने और अपना राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए जाति आधारित जनसभाएं बुलानी शुरू कर दी हैं। ये कदम प्रदेश में जाति आधारित प्रतिनिधित्व को लेकर देखा जा रहा है और कमोबेश हर दल इन्हें साधने की कोशिशें कर रहा है।
आपको ध्यान होगा कि जयपुर में पांच मार्च को आयोजित हुए जाट महाकुंभ में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के जाट नेताओं ने शीर्ष राजनीतिक पदों पर अपने प्रतिनिधित्व की मांग की थी। उसके बाद अब ब्राह्मण समुदाय ने भी 19 मार्च को जयपुर में अपनी महापंचायत बुलाई है। सूत्र बता रहे कि ब्राह्मण समुदाय की बैठक में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के शामिल हो सकते है।
उधर असदुद्दीन औवैसी गहलोत के गढ़ में किला फतेह करने की तैयारी करते नजर आ रहे हैं। राजस्थान में पॉलिटिकल एंट्री को लेकर ओवैसी बोले, "हम राजस्थान को एक राजनीतिक विकल्प देना चाहते हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती रही हैं।" लेकिन ओवैसी पर हमेशा ही भाजपा की बी टीम होने के आरोप लगते रहे है और इनकी पार्टी के उम्मीदवार काँग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में केवल सेंध मार सकते है,जिसका फायदा प्रतिद्वंद्वी भाजपा को मिलना तय बताया जा रहा हैं।
वही सूत्र ये बता रहे है कि भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षणों के अनुसार वे 109 सीटें जीत रहे हैं। वे इससे अधिक सीटें भी जीत सकते हैं और यह पूरी तरह से उम्मीदवारों की पसंद और मतों के विभाजन पर निर्भर करेगा। व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि हनुमान बेनीवाल की आरएलपी दोनों पार्टियों के महत्वाकांक्षी नेताओं को मैदान में उतारकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों की संभावनाएं खराब कर सकती है। लेकिन ये तो वक्त ही बताएगा कि वह किसे सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते है। अगर बीजेपी एकजुट नहीं होती है और कांग्रेस पायलट को सीएम बनाती है तो राज्य में इतिहास रचा जाएगा। राज्य में आम आदमी पार्टी भी दम ठोकने वाली है। इसके अलावा जो भी जीत सकता है और अपनी पार्टी से टिकट नहीं मिलने की स्थिति में निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे क्योंकि ऐसे विधायक त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में पाला बदलना आसान बनाते हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जनता को काफी तोहफे दिए हैं लेकिन स्थानीय विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर चरम पर दिखाई दे रही है। राजनीतिक पार्टियों की एकता ही जीत का अंतर तय करेगी। भाजपा केवल और केवल तभी हारेगी जब सभी खेमों के बागी आधिकारिक उम्मीदवारों की संभावनाओं को खराब करेंगे। ऐसा हमेशा कहा जाता है कि राजस्थान में बीजेपी को सिर्फ बीजेपी ही हरा सकती है।