उदयपुर की झीलें न केवल यहाँ की खूबसूरती में चार चाँद लगाती है बल्कि लाखों लोगों की प्यास भी बुझाती है। झीलों में जलीय जीवों पर संकट कम करने और प्रदूषण को रोकने के लिए जनता सहित कई बुद्धिजीवी प्रयास कर रहे है।उदयपुर की झीलों में पेट्रोल और डीजल से चलने वाली नावें बंद होने और सिर्फ सोलर की नावें ही चलने के सगुफे आये और चले गए।इसके साथ ही झील किनारे स्थित होटल की भी नावें बंद की करने की बात भी महज कागजी दिखावा ही साबित हुई है। ये निर्णय झीलों की नगरी उदयपुर में झील संरक्षण समिति की हुई बैठक में लिया गया था।
लेकिन हकीकत कुछ और ही है।जानकारी के अनुसार निगम बोर्ड बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि जिन होटलों के सड़क मार्ग उपलब्ध है, उनका उदयपुर नगर निगम अनुबंध का नवीनीकरण नहीं करेगा । इस पर आयुक्त नगर निगम ने उस बोर्ड बैठक के कार्यवाही विवरण में अपना डिसेंट नोट लगाया और बताया कि उक्त कार्य राजस्थान झील विकास प्राधिकरण की स्वीकृति से ही किया जा सकता है। उसके बाद आयुक्त नगर निगम ने जिला झील समिति में निगम बोर्ड के प्रस्ताव को रखा था तथा जिला झील समिति ने उन होटल (सड़क मार्ग वाले) पर कोई रोक नहीं लगा कर केवल नावों की संख्या को कम किया था तथा इस प्रस्ताव को अनुमोदन के लिए राजस्थान झील विकास प्राधिकरण को भिजवाया था।
राजस्थान झील विकास प्रधिकरण ने जिला झील समिति के इस प्रस्ताव पर रोक लगाते हुए जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन किया । इस कमिटी को झीलों के सम्बन्ध में एक स्पस्ट नीति तैयार कर राजस्थान झील विकास प्रधिकरण को भिजवानी थी तथा इस संबंध में ही हाई कोर्ट द्वारा जिला कलेक्टर की लाइव पेशी भी ली गयी थी, जिसमे कलेक्टर ने हाई कोर्ट से पालिसी तैयार कर राजस्थान झील विकास प्राधिकरण को भिजवाने के लिए 7 दिन का समय मांगा था।
आज भी यही स्थिति है और कोर्ट भी इसी पालिसी का इंतज़ार कर रहा है और झील विकास प्राधिकरण भी उसी अनुसार निर्णय करेगा। महत्वपूर्ण बात ये है कि राजस्थान झील विकास प्राधिकरण ने जिला स्तरीय समिति को उक्त पॉलिसी निर्माण हेतु जो निर्देश दिए है, उसमें स्पस्ट रूप से पर्यावरण और पर्यटन दोनों को सस्टेन करने वाली नीति बनाने के निर्देश दिए है।
वहीं आज भी नावें जल संसाधन विभाग के राज्य स्तर पर प्राप्त स्वीकृतियों के आधार पर चल रही है। निगम केवल उन स्वीकृतियो के आधार पर नाव संचालन के अनुबंध का नवीनीकरण कर रहा है।झील का मालिक आज भी नगर निगम नहीं है, उसका काम केवल संधारण और विकास करना है। झील के मूल खसरे आज भी जल संसाधन विभाग के नाम राजस्व विभाग में दर्ज है।