कर्नाटक चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद भाजपा को नसीहत/राय देने वाले संघठन ने स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओं के चेहरे आगे लाने के लिए तैयारियां करने की बात कह कर चौका दिया है। आरएसएस भाजपा का वैचारिक स्रोत है; पार्टी के साथ-साथ सरकार के बहुत से सदस्यों ने या तो आरएसएस के साथ मिलकर काम किया है या भगवा संगठन के।
विगत दिनों में हिमाचल और पंजाब जैसे राज्यों के विधानसभा परिणामों में भाजपा की ढीली पकड़ के चलते कथित रूप से कमजोर कही जाने वाली काँग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियों का सत्ता पर काबिज होना, नए समीकरण बनाने के लिए संदेश देता नजर आता हैं और संघ अंदरखाने इसे महसूस भी कर रहा है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने अपने संपादीय में लिखा है कि यदि भाजपा को आगे आने वाले चुनाव जीतते रहना है तो सिर्फ मोदी मैजिक और हिंदुत्व का चेहरा काफी नहीं होगा। संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में लिखे लेख में इस साल हुए कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार का विश्लेषण करते हुए कहा गया है कि मजबूत नेतृत्व और क्षेत्रिय स्तर पर प्रभावी संवाद के बिना केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व की वैचारिकता पर्याप्त नहीं होगी। यदि 2024 के लोकसभा चुनावों को लक्ष्य रखना है तो कर्नाटक चुनाव परिणाम का सही से विश्लेषण करने की जरूरत है क्योंकि इस जीत से विपक्षी दलों का मनोबल बढ़ा है।
ऑर्गनाइजर के 23 मई के अंक के संपादकीय में खुल कर कहा गया है कि कर्नाटक सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप और पीएम मोदी की लोकप्रियता का मतदाताओं के बीच सत्ता विरोधी लहर से कोई मुकाबला नहीं था और कारण रहे कि बोम्मई सरकार के 14 मंत्री यथा वी सोमन्ना, डॉ के सुधाकर, बी श्रीरामुलु, गोविंद करजोल, मुरुगेश निरानी, जेसी मधुस्वामी, बीसी पाटिल, एमटीबी नागराज, केसी नारायण गौड़ा और बीसी नागेश जैसे बड़े नेता चुनाव हार गए। वर्तमान मंत्रियों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भाजपा के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
आर्गनाइजर ने अपने संपादकीय में यह भी लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी के केंद्र में सत्ता संभालने के बाद पहली बार भाजपा को विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार के आरोपों का बचाव करना पड़ा है। साथ ही संपादकीय में कहा गया है कि “जब राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व की भूमिका न्यूनतम होती है और चुनाव अभियान स्थानीय स्तर पर रखा जाता है तो कांग्रेस को फायदा होता है। परिवार द्वारा संचालित पार्टी ने राज्य स्तर पर एक एकीकृत चेहरा पेश करने की कोशिश की और 2018 के चुनावों की तुलना में पांच प्रतिशत अतिरिक्त वोट हासिल किए।"
ऐसा नहीं है सम्पादकीय में मोदी मैजिक कम होने की बात की गई हो। अलबत्ता ऑर्गनाइज़र ने सत्ता में नौ वर्षों में पीएम मोदी और भाजपा सरकार की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए कहा गया कि 2014 में, भारत में अधिकांश लोगों ने लोकतंत्र में विश्वास खो दिया था लेकिन प्रधान मंत्री मोदी और उनकी सरकार ने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ उन आकांक्षाओं के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और कई मोर्चों पर काम किया है।
संपादकीय में लिखे गए लेख में नई संसद की सराहना करते हुए इसे "लोकतंत्र का नया मंदिर" कहा गया और कहा गया कि संरचना हमें "प्राचीन विचारों और धार्मिक मूल्यों के आधार पर शासन के सिद्धांतों" से जोड़ेगी।
संघ ने अपने मुखपत्र ऑर्गेनाइजर के विश्लेषण का लब्बो लुआब है कि बीजेपी के मिशन 2024 में जीत के लिए हर जगह सिर्फ पीएम नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व ही काफी नहीं है। आसएसएस ने इस दौरान पार्टी को स्पष्ट किया है कि बिना मजबूत जनाधार और क्षेत्रीय लीडरशिप के चुनाव जीतना आसान नहीं है। ऐसा संभवतया इसलिए कहा गया है कि बीजेपी ने कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान स्टार प्रचारकों की लिस्ट में खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व पर ही जोर दिया था। कर्नाटक चुनाव में इस तरह के कई मुद्दे उठाए गए जो कि सीधे तौर पर हिंदुत्व से जुड़े हुए थे। बीजेपी इन मुद्दों की दम पर एकतरफा जीत दर्ज करने का दम भर रही थी। लेकिन जनता ने भाजपा को उल्टे मुंह पटखनी देते हुए कांग्रेस को जीत का ताज पहना दिया । इस तरीके के परिणाम कांग्रेस के लिए संजीवनी बन कर आये है और बीजेपी के लिए निश्चित तौर पर एक बड़े आत्म मंथन के साथ लोकल नेताओं को आगे लाने के लिए कह रहे है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने आर्टिकल में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा और हिंदुत्सव के विचार सभी जगहों पर चुनाव जीतने के लिए काफी नहीं हैं।आर्टिकल में लिखा गया है कि आइडियोलॉजी और केंद्रीय नेतृत्व बीजेपी के लिए हमेशा सकारात्मक पहलू हो सकते हैं लेकिन जनता के मन को भी पार्टी को समझना होगा। संघ ने लिखा कि बीजेपी ने कर्नाटक चुनाव में केंद्र के मुद्दों को लाने का प्रयास किया. लेकिन, कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों को नहीं छोड़ा और यही उनके जीत की वजह रही है। संघ ने बीजेपी की उस स्ट्रेटेजी पर भी सवाल उठाए हैं जिसमें पार्टी ने जातीय मुद्दों के जरिए वोट को मोबिलाइज करने का प्रयास किया। संघ ने कहा है कि पार्टी ने यह कोशिश उस राज्य में की है जो कि टेक्नोलॉजी का हब है। आपकों बताते चले कि ऐसा पहली बार हुआ है कि जब से केंद्र में पीएम मोदी सरकार आई है यानी 2014 के बाद से पहली बार किसी राज्य के चुनाव में बीजेपी करप्शन के मुद्दे पर बचाव करते हुए दिखाई दी है। इतना ही नहीं यह भी पहली बार हुआ है जब संघ ने बीजेपी को चुनावों को लेकर नसीहत दी है।