नई दिल्ली, 18 मई 2022 : वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे के बाद अब कुतुबमीनार को लेकर नया दावा किया जा रहा है। कुतुब मीनार को लेकर कहा गया है कि यह सन टावर है। देश की राजधानी दिल्ली स्थित कुतुबमीनार काे लेकर गर्मा रही चर्चा के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक धर्मवीर शर्मा ने एक नया दावा कर तहलका मचा दिया है। धर्मवीर शर्मा देश के विख्यात पुरातत्वविदों में शामिल हैं जो एएसआइ के दिल्ली मंंडल में तीन बार अधीक्षण पुरातत्वविद रहे। उन्होंने यहां रहते हुए कुतुबमीनार में कई बार संरक्षण कार्य कराया है, अनेक बार इसके अंदर गए हैं।उस देवनागरी लिखावट काे देखा है जो इसके अंदर के भागों में है। यह खगोलविज्ञानियों को लेकर हर साल 21 जून को कुतुबमीनार परिसर में जाते हैं।
धर्मवीर शर्मा ने कहा कि पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि कुतुबमीनार एक बहुत बड़ी वेधशाला थी, जिसका निर्माण सम्राट विक्रमादित्य ने कराया था। कलयुग के महान शासकों में सबसे बड़ा नाम ही उज्जैन को राजधानी बना कर भारत समेत आसपास के कई अन्य देशों पर राज्य करने वाले सम्राट विक्रमादित्य का है, परंतु भारतीय इतिहास में उन्हें उचित स्थान नहीं मिला। भारतीय इतिहास को नष्ट कर दिया गया है।
उनके अनुसार यह कुतुबमीनार नहीं, बल्कि यह एक सूर्य स्तंभ है। अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उनके पास कई तथ्य भी हैं। इतना ही नहीं, इसके निर्माण को लेकर भी दावा किया है कि इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने नहीं, बल्कि राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था।
ASI के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक धर्मवीर शर्मा ने दावा करते हुए कहा कि कुतुब मीनार सन टावर (सौर वेधशाला) है। उन्होंने कहा कि ASI की ओर से कई बार कई बार कुतुब मीनार का सर्वेक्षण किया है। सूर्य की दिशा देखने के साथ ही पुरातत्वविद 27 नक्षत्रों का अध्ययन कर सकें, इसलिए सूर्य वेधशाला का निर्माण कराया गया था।
धर्मवीर शर्मा कहते हैं कि कुतुब मीनार कुतुबुद्दीन ऐबक ने नहीं, बल्कि 5वीं शताब्दी में राजा विक्रमादित्य ने बनवाई थी। कुतुब मीनार में 25 इंच का झुकाव है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह सूर्य का निरीक्षण करने के लिए बनाई गई थी। इस क्षेत्र को विष्णु पद पहाड़ी के रूप में जाना जाता था, जहां उस समय के अवशेष हैं जब चौहान, तोमर, प्रतिहार राज्यों ने शासन किया था।