राज्य सरकारें सहित केंद्र शाषित प्रदेशों में इंटरनेट शट डाउन किये जाते रहे है। किसी समय कश्मीर में सबसे ज्यादा और दीर्घ अवधि तक इंटरनेट शट डाउन किये गए है ।लेकिन अब इंटरनेट शट डाउन के मामलों में राजस्थान बाजी मारते हुए सबसे आगे चल रहा है। बीते तीन सालों में सबसे अधिक संख्या में राजस्थान में शट डाउन किये गए, जहां 85 आदेशों में से 44 इंटरनेट शट डाउन के आदेश विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए किये गए थे।
इंटरनेट शट डाउन की श्रंखला में जनवरी 2020 से दिसंबर 2022 के बीच तीन वर्षों में अठारह भारतीय राज्यों में इंटरनेट बंद किया गया। इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन (IFF) और ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) ने उल्लेख करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि स्थानीय अधिकारियों ने शटडाउन का उपयोग 57 मामलों में विरोध प्रदर्शन, 37 मामलों में स्कूल परीक्षाओं या सरकारी नौकरियों की परीक्षा में नकल रोकने के लिए, 18 मामलों में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए और 18 मामलों में कानून और व्यवस्था की अन्य चिंताओं को दूर करने के लिए के लिए किया गया था।
इंटरनेट शट डाउन की इस संख्या में जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश में इंटरनेट शटडाउन शामिल नहीं है, जहां अधिकारियों ने देश में किसी भी अन्य जगह की तुलना में सबसे ज्यादा समय तक इंटरनेट बंद किया गया था। इंटरनेट बंद करने वाले 18 राज्यों में से 11 राज्यों- राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, झारखंड, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना ने इंटरनेट शट डाउन के आदेश सुप्रीम कोर्ट ने निर्देशों के अनुरूप प्रकाशित नहीं किए।
इंटरनेट बंदी के लिए भले ही आदेश प्रकाशित किए गए थे, लेकिन आदेशों में अधिकारी अक्सर सार्वजनिक सुरक्षा के लिए जोखिम की आशंका को सही ठहराने में विफल रहे। राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम सरकारों ने परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए इंटरनेट बंद किया जो कि स्पष्ट रूप से एक अनावश्यक और असंगत प्रतिक्रिया थी।
राजस्थान में सबसे अधिक शटडाउन देखे गए, जिनमें 85 आदेशों में 44 विरोध-प्रदर्शन को रोकने के लिए थे । 28 आदेश परीक्षाओं में नकल को रोकने के लिए , 9 आदेश सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए और चार अन्य कानून और व्यवस्था संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए जारी किए गए थे।
“इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन" ने 10 जनवरी, 2020 से 25 सितंबर, 2021 के बीच उदयपुर संभागीय आयुक्त द्वारा जारी किए गए 26 इंटरनेट निलंबन आदेशों और जयपुर संभागीय आयुक्त द्वारा जारी किए गए 30 निलंबन आदेशों का विश्लेषण किया और पाया कि अधिकारियों ने बार-बार शटडाउन जारी किए और आदेशो में कॉपी-पेस्ट टेम्पलेट पद्धति का पालन किया था और ये आदेश यह सुनिश्चित करने में विफल रहे कि आदेश वैध, आवश्यक और समानुपातिक थे। अधिकांश शटडाउन के आदेश विरोध करने के अधिकार को कुचलने के लिए दिए गए थे और अन्य प्रतिबंधात्मक उपाय उपलब्ध होने पर भी लगाए गए थे।
आपकों बताते चले कि भारत सरकार इंटरनेट शटडाउन पर कोई डेटा एकत्र नहीं करती है, जो राज्य के गृह सचिव द्वारा लगाया जाता है और बाद में एक अंतर-मंत्रालयी समिति द्वारा समीक्षा की जाती है। अधिकांश शटडाउन में एक निश्चित क्षेत्र के भीतर मोबाइल फोन पर इंटरनेट का उपयोग बंद करना शामिल है। 2021 की संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि "शटडाउन हटाने के लिए आनुपातिकता और प्रक्रिया का सिद्धांत अस्पष्ट है और इसमें स्पष्टता की कमी है।"
दोनों संगठनों ने जांच की कि क्या "भारतीय राज्य सरकारें अदालत के निर्देशों का पालन कर रही हैं और पाया कि इंटरनेट एक्सेस को बंद करने के फैसले अक्सर अनिश्चित होते हैं और कानून-व्यवस्था की समस्या की अस्पष्ट, कमजोर और निराधार समझ पर आधारित होते हैं।"