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Current News / वामपंथ से जुड़ी कविता कृष्णन ने अखबार में यूपी के विज्ञापन को बताया ‘इस्लामोफोबिक'

clean-udaipur वामपंथ से जुड़ी कविता कृष्णन ने अखबार में यूपी के विज्ञापन को बताया  ‘इस्लामोफोबिक'
newsagencyindia.com January 02, 2022 09:43 AM IST

वामपंथी नेता कविता कृष्णन ने आज शनिवार, 1 जनवरी 2022 ट्विटर पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अखबारों में दंगा मुक्त उत्तर प्रदेश से संबंधित एक विज्ञापन को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा खड़ा करने की कोशिश को अंजाम दिया है। विज्ञापन में कहा गया है कि 2017 से पहले दंगाइयों का ख़ौफ़ और 2017 के बाद माँग रहे है माफी। कविता कृष्णन ने इस विज्ञापन को ‘इस्लामोफोबिक’ बताया है।

 

कृष्णन ने ट्वीट किया, “प्रिय @rajkamaljha – इस @IndianExpress के फ्रंट पेज पर एक नज़र डालें, जिसमें यूपी सरकार का एक बड़ा इस्लामोफोबिक विज्ञापन का आनंद लिया जा रहा है। आप यह ढोंग नहीं कर सकते कि यह केवल एक व्यावसायिक निर्णय है – यह विज्ञापन संपादकीय निर्णय है और यह अखबार को फासीवाद का वाहक बनाता है। यह डराने वाला है।”

 

यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि कविता कृष्णन ने विज्ञापन को इस्लामोफोबिक कहा, लेकिन विज्ञापन को देखने पर पता चलता है कि वास्तव में ऐसा कुछ है नहीं जिसे कविता बताने की कोशिश में है। विज्ञापन में कहीं भी नही दिखाया गया है कि दंगा करने वाला सम्प्रदाय विशेष से है। यहाँ तक दंगाई ने कोई विशेष कपड़े नहीं पहने है जो विशेष धर्म से संबंधित हो और न ही कोई धार्मिक निशान दिखाया गया है।

 

 विज्ञापन में ही नीचे नारा दिया गया है, ‘सोच ईमानदार, काम दमदार’। इसका अर्थ है, ‘ईमानदार इरादे, अच्छे काम’।

 

दंगाइयों से संबंधित विज्ञापन की कविता की नई सोच को कई लोगों ने आड़े हाथों लेते हुए पुछा कि क्या कविता कृष्णन ने स्वीकार कर लिया कि सभी दंगाई वास्तव में सम्प्रदाय विशेष से ही आते हैं। लेखक अनीश गोखले के ट्वीट को जवाब देते हुए कृष्णन ने कहा- “विज्ञापन योगी सरकार द्वारा एक ‘डॉग ह्वीसिल’ था और योगी के डॉग ह्वीसिल को सुनकर तुम भागते चले आए।”

 

 

इसके बाद कविता कृष्णन ने सफाई देते हुए कहा कि विज्ञापन में दंगाइयों ने कैफिया पहना हुआ है। इसलिए यह स्पष्ट था कि विज्ञापन का अर्थ था कि दंगा करने वाला सम्प्रदाय विशेष से था।

 

आपको बताते चले कि कैफिया स्कार्फ जैसा ही होता है। आमतौर सऊदी अरब में सिर के चारों ओर पहने जाने वाले सादे सफेद कपड़े को भी कैफिया कहा जाता है। यह मूल रूप से सिर या गले में पहना जाने वाला दुपट्टा होता है। कैफिया के लिए कोई विशिष्ट डिज़ाइन नहीं होती है। फिर भी कविता कृष्णन इस निष्कर्ष पर पहुँच गई कि दंगाइयों द्वारा पहना जा रहा दुपट्टा विशेष रूप से कैफिया है।

 

इसी क्रम में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने गैंगस्टरों, माफिया सरगनाओं और दंगाइयों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया हुआ है। दंगाईयो, हिस्ट्रीशीटर और माफिया को गिरफ्तार किया जा रहा और हिंसा के कारण राज्य को हुए नुकसान की भरपाई के लिए उनकी संपत्ति को कुर्क किया जा रहा है। 

 

गैंगस्टरों के खिलाफ सरकार की किसी भी कार्रवाई को जान बूझ कर भय का कारण बताया जा रहा है क्योंकि किसी भी तरह केंद्र की नरेंद्र मोदी और राज्य में योगी आदित्यनाथ की सरकार का विरोध करना इनका प्राथमिकता है।

 

वहीं कुछ लोग इसे हाल ही विभिन्न NGO को मिलने वाले विदेशी फण्ड (FCRA) पर सरकार द्वारा लगायी जाने वाली रोक से जोड़ कर भी देख रहे है। लोगों का कहना है विदेशी चंदो की पाबंदी ने ऐसे लोगों की खीज़ बढ़ा दी है और अब ये उल जुलूल बातों से मोदी विरोध करना चाहते है ।

 

चूंकि आतंकियों और दंगाईयो का कोई धर्म नहीं माना जाता तो फिर ऐसा दिखाने या जताने के पीछे क्या कारण है। क्या जान बूझ कर UP चुनाव से पहले इस तरह का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है जिससे वोटिंग से पहले ध्रुवीकरण का कार्ड खेला जा सके।

 

इस तरह के ट्वीट से कहीं साम्प्रदायिक सौहार्द को सुलगाने की कोशिश तो नहीं की जा रही। लोग इसे षड्यंत्र का हिस्सा भी मान कर चल रहे है।

 

क्या ये अब जरूरी है कि अखबार के विज्ञापन      छापने के लिए विशेष व्यक्तित्व की मंजूरी आवश्यक है।

 

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