Breaking News

Dr Arvinder Singh Udaipur, Dr Arvinder Singh Jaipur, Dr Arvinder Singh Rajasthan, Governor Rajasthan, Arth Diagnostics, Arth Skin and Fitness, Arth Group, World Record Holder, World Record, Cosmetic Dermatologist, Clinical Cosmetology, Gold Medalist

Current News / दुनिया के सबसे समृद्ध मंदिरों में था उदयपुर का जगदीश मंदिर,जानिए अनकहा इतिहास !

clean-udaipur दुनिया के सबसे समृद्ध मंदिरों में था उदयपुर का जगदीश मंदिर,जानिए अनकहा इतिहास !
News Agency India July 02, 2021 03:34 AM IST

दुनिया के सबसे समृद्ध मंदिरों में था उदयपुर का जगदीश मंदिर,जानिए अनकहा इतिहास !

जगदीश मंदिर उदयपुर का बड़ा ही सुन्दर ,प्राचीन और विख्यात मंदिर है। आद्यात्मिक्ता के क्षेत्र में इसका अपना एक विशेष स्थान हैं। साथ ही मेवाड़ के इतिहास में भी इसका बड़ा योगदान रहा है। यह मंदिर उदयपुर में रॉयल पैलेस के समीप ही स्थित है। जगदीश मन्दिर की कुल बत्तीस सीढ़िया है।


इसे जगन्नाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है । इसकी ऊंचाई 125 फीट है । यह मंदिर 50 कलात्मक खंभों पर टिका है । यहाँ से सिटी पेलेस का बारा पोल सीधा देखा जा सकता है एवं गणगौर घाट भी यहाँ से नज़दीक ही है । मंदिर में भगवान जगन्नाथ का श्रृंगार बेहद खूबसूरत होता है । शंख, घधा ,पद्म व चक्र धारी श्री जगन्नाथ जी के दर्शन कर हर कोई धन्य महसूस करता है ।

जगदीश मंदिर पुराने उदयपुर शहर के मध्य में स्थित एक विशाल मंदिर है। इस मंदिर को जगन्नाथराय का मंदिर भी कहते हैं। इसका निर्माण 1652 में पूरा हुआ था। उदयपुर के महाराणा जगत सिंह प्रथम ने इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। इसके निर्माण में कुल 25 साल लगे थे।

कहा जाता है कि महाराजा जगत सिंह की जगन्नाथ पुरी के विष्णु भगवान में अखंड आस्था थी। एक दिन सपने में उन्हें विष्णु भगवान ने कहा कि वह उनका मंदिर उदयपुर में बनवाएं, वह वहीं आकर निवास करेंगे। इसी सपने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। मंदिर आधार तल से 125 फीट ऊंचाई पर है। इसका शिखर 100 फीट ऊंचा है। मंदिर में कुल 50 कलात्मक स्तंभ हैं। इस मंदिर में जो प्रतिमा स्थापित है, वह राजस्थान के डूंगरपुर के कुनबा गांव के नजदीक पश्वशरण पर्वत से लाई गई थी। गर्भ गृह में काले पत्थर की सुंदर विष्णु प्रतिमा स्थापित की गई है। इस मंदिर को जागृत मंदिर माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि साक्षात जगदीश यहां वास करते हैं। शिखर और गर्भ गृह के लिहाज से यह नागर शैली में बना मंदिर है। मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिरों का निर्माण कराया गया है, जो पंचायतन शैली का उदाहरण है। मंदिर परिसर में एक शिलालेख भी है, जो गुहिल राजाओं के बारे में जानकारी देता है।

यह मंदिर मारू-गुजराना स्थापत्य शैली का भी उत्कृष्ट उदाहरण है। नक्काशीदार खंभे, सुंदर छत और चित्रित दीवारों के साथ यह मंदिर एक चमत्कारी वास्तुशिल्प की संरचना प्रतीत होता है। यह मंदिर एक ऊंचे विशाल चबूतरे पर निर्मित है। मंदिर के बाहरी हिस्सों में चारों तरफ अत्यन्त सुंदर नक्काशी का काम किया गया है। इसमें गजथर, अश्वथर तथा संसारथर को प्रदर्शित किया गया है।

जगदीश मंदिर के पत्थरों की कारीगरी भदेसर के पत्थरों से करी गयी है और जहाँ इन पत्थरों की गढ़ाई हुई वह आज उदयपुर में भदेसर का चौक कहलाता है ऐसा पुराने लोग कहते है। मंदिर में जहां पंक्ति पर लोग दर्शन कर के बैठ जाते थे, वहां पगल्या जी लगाए गए ताकि लोग उस पंक्ति पर नही बैठे क्योंकि जमाने से लोग अपने दर्द को दूर करने शरीर के अंग को जैसे कमर घुटनें पेट आदि को उस शिला से रगड़ते थे मान्यता है ऐसा करने से लोग दर्द से राहत पाते है। मन्दिर में जगदीश भगवान की मूर्ति काले पाषाण से बनी है जो कि कसोटी नामक पाषाण से बनी है जिसे सोनी लोग सोने को परखने के लिए करते हैं।

मन्दिर पुराने उदयपुर के सिटी पैलेस (महलों) के बाद दुसरी सबसे ऊंची चोटी पर बना है। यह बात इसके कुर्सी लैवल यानि धरातल से शिखर तक पुरानी सिटी में हर जगह से दिखता है लेकिन अब ताबड़तोड़ निर्माण से यह इमारतों के बीच छुप गया है। वर्तमान में शायद ही कोई ऐसा सैलानी होगा जो इस मंदिर से होकर न गुज़रे।

यह मन्दिर महाराणा जगत सिंह जी प्रथम ने 6 लाख रूपये लगाकर 1652 ईस्वी में बनवाया था। लेकिन औरंगजेब द्वारा नुकसान पहुंचाने पर महाराणा संग्राम सिंह ने इसे फिर दुरूस्त करवाया। मन्दिर की परिकृमा में सुर्य शक्ति गणपति शिव के चार अन्य मन्दिर है।आज भी जगदीश मन्दिर की बाहर तक्षण शैली की मुर्तियां खण्डित है। इस मन्दिर में इन्हीं महाराणा ने रत्नों का कल्पवृक्ष दान किया था।

 

उदयपुर की पहचान पंचायतन शैली (विष्णु के पंचायतन मंदिर में मध्य का मुख्य विशाल मंदिर भगवान विष्णु का होता है और मंदिर के परिक्रमा के चारों कोणों में से ईशान कोण में शंकर जी,अग्नि में गणपति जी, नैऋत्शय कोण में सूर्य और वायव्य कोण में देवी के छोटे छोटे मंदिर होते है ) के जगदीश मंदिर का निर्माण और प्रतिष्ठा महाराणा जगतसिंह ने 13 मई 1652 ईस्वी (चैत्रादि वि.स.1703 वैशाखी पूर्णिमा ) गुरुवार के दिन भव्य समारोह के साथ की थी। समारोह भी ऐसा जिसमे उस समय पूरे शहर सहित समूचे मेवाड़ को आमंत्रित किया गया। महाराणा ने हज़ार गायें ,सैकड़ो हाथी,घोड़े,सोना और 05 गाँवो को मन्दिर व्यवस्था हेतू ब्राह्मणों को दान किया था। साथ ही मंदिर बनाने वाले सूत्रधार भाणा उसके पुत्र मुकुंद को सोने और चाँदी के हाथी के साथ चित्तौड़ के पास एक गांव दान किया गया।

सिन्धुर दीधा सातसै ,हय वय पाँच हज़ार।
एकावन सासन दिया,जगपत जगदातार।।

'अर्थात जगत के दाता जगत सिंह 700 हाथी ,5 हज़ार घोड़े और 51 गाँव दान किये।'

जगदीश मंदिर की प्रशस्ति शिला प्रथम श्लोक 110 -111 के अनुसार उस समय महाराणा जगतसिंह ने लाखों रुपयों का कल्पवृक्ष जो स्फटिक की वेदी पर बना था जिसके मूल में नीलम मणि ,सर पर वैडूर्यमणि (लहसनिया) और कंधो पर हीरे ,शाखों पर मरकत (माणिक) ,पत्तो की जगह विद्रुम (मूंगा) और उसके नीचे ब्रह्मा,विष्णु ,शिव और कामदेव की मूर्तियाँ बनी थी। ये दान वि.सम्वत 1705 भाद्रपद सुदि 3 के दिन ब्राह्मणों को दिया गया था।


मंदिर की विशाल प्रशस्ति कृष्णभट्ट से लिखवायी गयी। मेवाड़ के इतिहास के सबसे समृद्ध शिलालेख जगदीश मंदिर की प्रशस्ति है जिसे पढ़कर आपको मेवाड़ के समृद्ध अध्यात्म और बेहतर राजकाज की व्यवस्था देखने में आएगी।

शुरुआत में महाराणा स्वयं रथयात्रा में रथ को मंदिर प्राँगण में खींचते और बाद में रथ को बड़ा बाजार होते हुए माजी के मंदिर से पुनः जगदीश मंदिर लाया जाता। पुरे शहर को भोजन कराया जाता। धीऱे धीरे राज काज और अन्य कारणों से रथयात्रा सिर्फ मंदिर प्रांगण तक सीमित रह गयी। 1996 में जन प्रयासो के बाद इसे दुबारा शुरू किया गया।

मन्दिर का वैभव धीरे धीरे दिल्ली के बादशाह के कानों तक भी पहुँचा । उस पर औरंगजेब ने जब 1679 ईस्वी में हिन्दुओं पर जजिया कर (टैक्स) लगाया ,तब इस कर का सशक्त और मुखर विरोध महाराणा राजसिंह ने किया। बादशाह औरंगजेब तिलमिला उठा और उसने मेवाड़ सहित जगदीश मंदिर को लूटने का प्रण लेकर मेवाड़ की ओर कूच कर डाली। उधर महाराणा राजसिंह ने उदयपुर के दक्षिण के सघन पहाड़ों पर मोर्चे बना लिए। बादशाह औरंगजेब महाराणा राजसिंह के समय में जगदीश मंदिर और उदयपुर के मंदिरो को लूटने माण्डल से होता हुआ देबारी घाटे पर पंहुचा और शहज़ादा मुहम्मद आज़म के साथ मुग़ल सेना से राठौड़ गौरासिंह (बल्लूदासोत) ने लोहा लिया और वीरगति पायी। लड़ाई में रावत मानसिंह (सारंगदेवोत) गंभीर घायल हो गये। देबारी घाटे पर मुग़ल सेना का अधिकार हो गया।

महाराणा राजसिंह ने अपने जिग़र के टुकड़े को गिर्वा की पहाड़ियों पर कुँवर जयसिंह (महाराणा के पुत्र व भावी महाराणा) को तैनात कर दिया। देसूरी की नाल के इलाक़े में बदनोर के सांवलदास राठौड़ को कमान सौंपी गयी थी। बदनोर-देसूरी के पहाड़ी भाग पर विक्रमादित्य सौलंकी व गोपीनाथ घाणेराव युद्ध के लिए तैयार थे। मालवा सीमा पर मंत्री दयालदास को नियुक्त किया गया। देबारी,नाई और उदयपुर के पहाड़ी नाकों पर स्वयं महाराणा राजसिंह तैनात हुए।

बादशाह ने शहज़ादा मुहम्मद ,आज़म सादुल्लाख़ा, ख़ानेजहाँ ,रहुल्लाखा और इक्का ताज खान को उदयपुर भेजा। उदयपुर पहुँचने पर उन्होंने उदयपुर खाली पाया। मुग़ल फौज जैसे ही जगदीश मन्दिर गिराने पहुँची तो महाराणा राज सिंह के बारहठ नरु जी के नेतृत्व में एक एक कर के मंदिर से माचातोड़ योद्धा निकले। पूरे दिन 20 योद्धाओं ने हज़ारों की मुग़ल सेना को रोके रखा। अंत में सभी माचातोड़ योद्धा वीर गति को प्राप्त हुए। इनका एक फोटो मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में प्रवेश करते ही देखा जा सकता है और नरु बारहठ की समाधि का पत्थर स्कूल वाले गेट के नीचे आप देख सकते है।

जगदीश मंदिर को बचाने की इस गौरव गाथा के बाद विडम्बना ही है कि इस मंदिर में आने वाले प्रतिदिन सैंकड़ों श्रद्धालुओं को इस अभूतपूर्व बलिदान की भनक तक नहीं है | मेवाड़ के दुर्ग तो दुर्ग सही, यहां का हर मंदिर राजपूतों के बलिदान की खूनी गाथा अपने अंदर समेटे हुए है।

इतिहासकार : जोगेन्द्र नाथ पुरोहित

Byline/Credit by : Dinesh Bhatt 

Email:dinesh.bhatt@newsagencyindia.com

नोट : उपरोक्त तथ्य लोगों की जानकारी के लिए है और काल खण्ड ,तथ्य और समय की जानकारी देते यद्धपि सावधानी बरती गयी है , फिर भी किसी वाद -विवाद के लिए अधिकृत जानकारी को महत्ता दी जाए। न्यूज़एजेंसीइंडिया.कॉम किसी भी तथ्य और प्रासंगिकता के लिए उत्तरदायी नहीं है।

Disclaimer :​ All the information on this website is published in good faith and for general information purpose only. www.newsagencyindia.com does not make any warranties about the completeness, reliability and accuracy of this information. Any action you take upon the information you find on this website www.newsagencyindia.com , is strictly at your own risk

 

 
 
 
  • fb-share
  • twitter-share
  • whatsapp-share
clean-udaipur

Disclaimer : All the information on this website is published in good faith and for general information purpose only. www.newsagencyindia.com does not make any warranties about the completeness, reliability and accuracy of this information. Any action you take upon the information you find on this website www.newsagencyindia.com , is strictly at your own risk
#

RELATED NEWS