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Current News / उदयपुर की झीलें खुद क्या चाहती है, यह ज़ानना है जरूरी

clean-udaipur उदयपुर की झीलें खुद क्या चाहती है, यह ज़ानना है जरूरी
दिनेश भट्ट September 04, 2022 01:35 PM IST

उदयपुर, 4 सितंबर 2022 :झीलों तालाबों मे नाव संचालन पर समस्त हितधारकों के  सुझाव मांगने के क्रम मे तीन दिवसीय  नागरिक बैठक गुरुवार से प्रारंभ हुई।

सिटीज़न साइंस डानिडा लैब , उदयपुर वॉटर फॉरम , विद्या भवन पॉलिटेक्निक में आयोजित प्रथम दिवसीय बैठक में सुझावकर्ताओं ने कहा कि न्यायालयी निर्णयों मे  नदी- झील - तालाब को एक कानूनी  व्यक्ति , सांस्कृतिक सामाजिक रूप से एक जैविक समुदाय तथा पर्यावरण विज्ञान की दृष्टि जीवित तंत्र माना गया है। 

अत: इस कानूनी व्यक्ति, समुदाय व जीवित तंत्र से भी यह पूछना जरूरी है कि नाव संचालन पर उनका क्या मत है। झीलों के  कानूनी, सामाजिक व पर्यावरणीय हक को  नजरअंदाज नही किया जा सकता है। 

वही, पर्यटन व्यवसाय तथा सरोवर विज्ञान, मत्स्य विज्ञान , कानूनविदों व आम जागरूक नागरिकों से भी आग्रह किया गया कि वह अपने सुझाव प्रस्तुत करें। 

झीलों मे नाव संचालन की रीति -नीति पर नागरिक सुझाव आमंत्रित करने के क्रम मे शुक्रवार को सिटीज़न साइंस लेब, उदयपुर वॉटर फ़ॉरम,विद्या भवन पॉलिटेक्निक मे मछलियों की ओर से पूर्व मत्यसकी  उपनिदेशक इस्माइल अली दुर्गा पंहुचे।  मछलियों की दलील थी कि झीलें उनका घर है। बिना उससे पूछे उसके घर के साथ छेड़छाड़ हो रही है। जब नाव चलती है तो ऐसा लगता है कि उनके घर की छत पर कोई  हथौड़ा पीट रहा है। पर्यटन व्यवसाइयों की ओर से भाजपा पर्यटन व पर्यावरण प्रकोष्ठ संयोजक दिलीप सिंह राठौड़ ने सुझाव प्रस्तुत किये, उन्होंने पुरजोर शब्दों मे वॉटर टैक्सी, वॉटर स्पोर्ट की आवश्यकता बताई।

पर्यावरणविद महेश शर्मा ने बोट एक्ट मे सुधार पर सुझाव दिये। कलाविद् हरीश श्रीमाली व सामाजिक कार्यकर्ता निगरानी दल के संरक्षक रूप लाल मेनारिया ने पर्यावरण बचाने पर , सागर डूंगपुर मे सोलर बोट के संचालन कर्ता अतुल बजाज ने सोलर बोट के फायदों पर जानकारी दी। भूजल वैज्ञानिक रवि शर्मा,  डी एच आई के डॉ कुलदीप परेटा,  विद्या भवन वॉटर फॉरम शोधकर्ता डॉ योगीता दशोरा, डवलपमेंट अल्टरनेटिव  के पंकज सैनी उपस्थित रहे। 

उदयपुर की झीलों में नाव संचालन के मुद्दे पर चल रहे जन मंथन के तहत शनिवार को आयोजित विचार विमर्श में नावों के प्रकार, नावों की साइज, नावों की संख्या, नावों के परिभ्रमण क्षेत्र, जेटी के प्रकार, जेटी की आवश्यकता इत्यादि पर विस्तृत विचार विमर्श हुआ। जानकारों ने द्रव विज्ञान व मेवाड़ शासन के अनुभव के आधार पर उपरोक्त सभी के मानक व पैरामीटर निर्धारित करने के सुझाव दिए। 

मंथन के संयोजक डॉ. अनिल मेहता ने बताया कि झीलों में नाव संचालन को लेकर मंथन में कई ऐतिहासिक तथ्य भी सामने आए । उदयपुर की झीलों में नाव का संचालन झीलों के निर्माण के साथ ही शुरू हो गया था। नागानगरी में नाव मरम्मत का कारखाना था तो नावों का संचालन नाव घाट से होता था। नावें लकड़ी की होती थीं और चप्पू द्वारा चलाई जाती थीं। गणगौर नाव सबसे बड़ी नाव थी। यह सब व्यवस्थाएं आधुनिक द्रव विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती हैं। 

बैठक मे सुझाव रहा कि नाव के पैंदे द्वारा उसके नीचे का कितना पानी विस्थापित होता है, झील में पानी का फैलाव कितना है तथा झील के अन्य द्रव गुणों के आधार पर ही नावों की संख्या तय होनी चाहिए। झील के घटते जल स्तर (गेज) के साथ नावों की संख्या भी निर्धारित सूत्र के आधार पर घटनी चाहिए। विशेषज्ञों की मदद से यह फॉर्मूला तैयार करवाया जा सकता है, जो उदयपुर की झीलों जैसी समस्त झीलों के लिए प्रयुक्त हो सकेगा। 

वक्ताओं ने कहा कि मैटल, फाइबर व अन्य आधुनिक पदार्थों के स्थान पर लकड़ी से ही नाव निर्मित हो। चूंकि यह नावें चप्पू चालित होंगी अतः स्पीड भी कम ही रहेगी। इससे नाव के संचालित होने पर बनने वाली लहरें व हलचल नियंत्रित रहेगी और झील के पेंदे सहित किनारों व बांध को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। यह उदयपुर के पर्यटन को ऊंचाइयों तक पहुंचा देगा। मंथन में यह भी तथ्य रखे गए कि विश्व मे ऐसे शहर हैं जहां प्रकृति आधारित पारंपरिक व्यवस्थाएं हैं और इन्हीं की बदौलत वहां पर्यटन परवान पर रहता है। 

वक्ताओं ने कहा कि मैटल की बड़ी नावों व तेज स्पीड से बांध पर आघात भी बढ़ता है तथा जलीय जीवों को भी परेशानी होती है। अतः गणगौर नाव की साइज उदयपुर की झीलों में नाव की अधिकतम साइज व क्षमता का मापदंड माना जाना चाहिए। इससे ज्यादा बड़ी नाव उदयपुर की झीलों में अनुमत नहीं होनी चाहिए। 

सुझावकर्ताओं ने कहा कि मैटल व अन्य पदार्थों से बनी पानी की सतह पर तैरती जेटियां इन पेयजल झीलों के पर्यावरण तंत्र के लिए घातक हैं। अतः समस्त जेटियों को हटाकर मेवाड़ शासन के समय की तरह के नाव घाट होने चाहिए। उन्हें खूबसूरत हैरिटेज लुक दिया जा सकता है जिससे वे भी आकर्षण का केन्द्र बनें। जिन होटलों के पास सड़क मार्ग हैं, उन्हें किसी भी स्थिति में नावों से पर्यटक परिवहन की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। 

नावों के रूट व परिभ्रमण क्षेत्र निर्धारित करना जरूरी है। पिछोला में यह लेक पैलेस, जग मंदिर के कुछ पीछे तक, फतहसागर में नेहरू गार्डन के पीछे तक ही नाव का संचालन हो। इसके लिए फ्लोट लगाकर सीमा निर्धारण जरूरी है। झीलों के बायोडायवर्सिटी जोन में प्रवेश पर प्रतिबंध होना चाहिए ताकि झीलों की जैविक प्रक्रियाएं बाधित नहीं हों तथा देशी प्रवासी पक्षियों, जलीय जीवों के प्राकृतिक आवास मे अतिक्रमण नहीं हो। 

शनिवार को प्रत्यक्ष में उपस्थित होकर डॉ तेज राजदान, डॉ विवेक, निर्मल नागर, महेश शर्मा, विक्रम सिंह राव, मनीषा शर्मा, कौशल ने सुझाव दिए। विद्या भवन के उदयपुर वाटर फोरम, सिटीजन साइंस लैब में आयोजित तीन दिवसीय जन सुझाव प्रक्रिया सोशल माध्यमों से भी कई नागरिकों व विशेषज्ञों के सुझाव प्राप्त हुए हैं।

 

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