17 मई 2022 : 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर पर हमला करने का फरमान जारी किया। उसकी सेना ने मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया, लेकिन इसमें विराजित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग पर आंच तक नहीं आई। क्योंकि उस दिन भगवान की रक्षा में मंदिर महंत लगे हुए थे। हमलावर सेना को आता देख महंत शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कुंड में कूद गए।
353 साल पुराना ज्ञानवापी कुंड पिछले साल काशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तार में कॉरिडोर का हिस्सा बन गया है।
विश्वनाथ मंदिर को 1194 में मोहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुड़वाया था। मंदिर को 14वीं सदी में हुसैन शाह शर्की ने ध्वस्त करा दिया था। विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था और प्रदेश सरकार 1983 से इसका प्रबंधन कर रही है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत परिवार के मुखिया डॉ. कुलपति तिवारी के मुताबिक, 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। लेकिन औरंगजेब के सैनिक भगवान नंदी की मूर्ति को हज़ार कोशिशों के बाद भी तोड़ नहीं पाए थे। हथौड़े थक गए और नंदी वहीं खड़े रहे। इसके पहले 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तान ने मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया था। इसके बाद मुगल बादशाह अकबर ने 1585 में विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। अकबर के वित्तमंत्री टोडरमल द्वारा पं. नारायण भट्ट के सहयोग से मंदिर में पन्ने का शिवलिंग स्थापित कराया था। शिवलिंग को बचाने के लिए महंत परिवार के मुखिया शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कूप में कूद गए थे। अहिल्याबाई होल्कर द्वारा पुनर्निर्माण के बाद 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत ने सोना दान किया, जिससे मंदिर के शिखर को स्वर्णमंडित कराया गया।
तहखाने नहीं है, बल्कि मंडप हैं ज्ञानवापी में
पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बताया कि ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे की कार्यवाही के दौरान जिसको तहखाना कहा जा रहा है, वह असल में प्राचीन मंदिर का मंडप है। इसमें एक ज्ञान मंडप, दूसरा शृंगार मंडप, तीसरा ऐश्वर्य मंडप और चौथा मुक्ति मंडप के नाम से विख्यात था।