राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने आज रविवार सवेरे अचानक असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया से मिलने उदयपुर स्थित उनके निवास पहुंच कर चर्चाओं का नया बाजार गर्म कर दिया है।
तकरीबन 40 मिनट चली मुलाकात और कटारिया से बातचीत के बाद और फिर वे अपनी गाड़ी से वापस लौट गईं। ये मुलाकात इतनी गोपनीय थी कि किसी भी स्थानीय भाजपा नेता को राजे के आने की भनक तक नहीं लगी। यहां तक कि वसुंधरा ग्रुप के भाजपा नेता भी अंदरखाने अपने संपर्कों को फोन कर उनके आने के कारण के बारे में जानकारी लेते रहे।
दोनों नेता खुश नहीं है आलाकमान से
वसुन्धरा राजे के गुपचुप इस तरह मेवाड़ भाजपा के कद्दावर नेता गुलाब चंद कटारिया से 40 मिनट तक मुलाकात करने के कई सियासी कयास स्थानीय नेताओं की जुबानी निकाले जा रहे हैं। कोई कह रहा है कि शायद वसुन्धरा उदयपुर शहर सीट से चुनाव लड़ सकती है तो कई स्थानीय भाजपा और कांग्रेस के नेता कह रहे है कि शायद असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया इस्तीफा देकर उदयपुर सीट से भाजपा की कमान संभाल सकते है। आपकों बताते चले कि कुछ दिन पहले गुलाब चंद कटारिया गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर अपनी बात रख चूके है लेकिन मीटिंग के अंदर चर्चा का लब्बो लुआब सिर्फ शाह और कटारिया के पास ही है। सूत्र कह रहे थे कि मुलाकात के बाद कटारिया जी ज्यादा खुश नहीं दिखाई दे रहे थे। कटारिया ने हाल ही में मीडिया को दिए अपने एक बयान में कहा था कि, 'इस देश ने लोकतंत्र स्वीकार किया है। लोकतंत्र में राज जनता के हाथ में है। किसी पार्टी और नेता के हाथ में नहीं। इसलिए जनता को अपना बहुमत देने से पहले दिल और दिमाग सोच लेना चाहिए कि देश की जनता और भारत का हित किस विषय में है। इसलिए जनता से यही प्रार्थना है कि जब तक आप अपने बहुमत से अच्छा जनप्रतिनिधि नहीं चुनेंगे, तब तक लोकतंत्र अच्छा नहीं हो सकता।' गुलाब चंद कटारिया के इस बयान के कई आशय निकाले जा सकते है।
वहीं आज की मुलाकात के बाद कुछ विपरीत समीकरण के कयास भी चर्चा में है क्योंकि दोनों ही नेता अपने शीर्ष नेतृत्व से खफा चल रहे हैं। वसुन्धरा राजे के समर्थकों को राजस्थान भाजपा की पहली लिस्ट जिसमें 41 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए , नजरंदाज किया गया। जिस तरह से उनको ओर उनके नेताओं को दरकिनार किया गया है। जिस तरह से राजस्थान की राजनीति में भाजपा वसुन्धरा राजे को साइड लाइन करती जा रही है,ऐसे में इस तरह के दांव सामने आने के अनुमान पहले से ही लगाए जा रहे थे। लगता है कि अब केवल मेवाड़ की नहीं बल्कि राजस्थान की राजनीति भी कोई नया मोड़ ले सकती है।