ASI ने करीब 100 दिन तक ज्ञानवापी का सर्वे करने के बाद 839 पन्नों की इस रिपोर्ट में परिसर के प्रमुख स्थानों का उल्लेख किया है और कुल 321 साक्ष्य भी कोर्ट में जमा किए हैं। रिपोर्ट में ASI ने दावा किया कि ज्ञानवापी में एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था।
रिपोर्ट की कुछ महत्वपूर्ण बातें
पहले से मौजूद संरचनाएँ - परिसर में पहले से मौजूद कई संरचनाएँ पाई गईं जो साबित करती हैं कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले, वहाँ एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था।
रिपोर्ट के सबसे महत्वपूर्ण भाग के बिंदु 22 एवं 23 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि परिसर के पूर्वी भाग में तहखाने बनाते समय पुराने मंदिरों के स्तंभों का पुन: उपयोग किया गया, यहाँ स्तंभ बने हुए हैं जिन पर घंटियाँ उकेरी हुई हैं, चारों ओर दीपक रखने के लिए जगह हैं और संवत् 1669 (1613 ईस्वी) का एक शिलालेख अंकित है।
हिंदू देवताओं की मूर्तियां और नक्काशीदार वास्तुशिल्प परिसर के तहखाने S2 में डंप की गई मिट्टी के नीचे दबा हुआ मिला है।
ASI को सर्वे में मौजूदा संरचना में पहले से मौजूद संरचना का केंद्रीय कक्ष और मुख्य प्रवेश द्वार मिला है, इसके अलावा पश्चिमी कक्ष और पश्चिमी दीवार के साथ साथ मौजूदा ढाँचे के तहखानों में मूर्तिकला के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
केन्द्रीय कक्ष एवं मुख्य प्रवेश द्वार
ASI के अनुसार, इस ज्ञानवापी मंदिर में एक बड़ा केंद्रीय कक्ष था और कम से कम एक कक्ष क्रमशः उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम में रहा होगा। उत्तर, दक्षिण और पश्चिम में तीन कमरों के अवशेष अभी भी मौजूद हैं, लेकिन पूर्व में कक्ष के अवशेष और इसके आगे के विस्तार की मौजूदगी का स्पष्ट रूप से पता नहीं लगाया जा सका है, क्योंकि यह क्षेत्र को पत्थर के फर्श वाले एक मंच के नीचे ढक दिया गया।
पहले से मौजूद संरचना का केंद्रीय कक्ष मौजूदा ढाँचे का केंद्रीय कक्ष (सेंट्रल चेंबर) बनाता है। मोटी और मजबूत दीवारों वाली इस संरचना का सभी वास्तुशिल्प और फूलों की सजावट के साथ-साथ "मस्जिद" के मुख्य हॉल के रूप में उपयोग किया गया था।
पहले से मौजूद संरचना के सजाए गए मेहराबों के निचले सिरों पर उकेरी गई जानवरों की आकृतियाँ विकृत कर दी गई थीं, और गुंबद के अंदरूनी हिस्से को ज्यामितीय डिजाइनों से सजाया गया है।
इन दीवारों पर स्वस्तिक एवं त्रिशूल को देखा जा सकता है।
ASI के अनुसार, मंदिर के केंद्रीय कक्ष का मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम से था, जिसे पत्थर की चिनाई से अवरुद्ध कर दिया गया था।
इस प्रवेश द्वार को जानवरों और पक्षियों की नक्काशी और एक सजावटी तोरण से सजाया गया था। इस बड़े मेहराबदार प्रवेश द्वार में एक और छोटा प्रवेश द्वार था।
इस छोटे प्रवेश द्वार के ललाटबिम्ब पर उकेरी गई आकृति को काट दिया गया है। इसका एक छोटा सा हिस्सा दिखाई देता है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा ईंटों, पत्थर और मोर्टार से ढका हुआ है जिनका उपयोग प्रवेश द्वार को अवरुद्ध करने के लिए किया गया था।
अब पश्चिमी कक्ष और पश्चिमी दीवार की बात करें तो -
पश्चिमी कक्ष का पूर्वी आधा भाग अभी भी मौजूद है जबकि पश्चिमी आधे हिस्से की उकेर नष्ट हो चुकी है। कूड़ा-कचरा और मलबा हटाने पर उत्तर पश्चिम दिशा में इस गलियारे के अवशेष सामने आए।
मौजूदा संरचना की पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद हिंदू मंदिर का शेष हिस्सा है। पत्थरों से निर्मित एवं क्षैतिज सांचों से बनी यह सुंदर दीवार पश्चिमी कक्ष के शेष हिस्सों, सेंट्रल हॉल के पश्चिमी हिस्से और इसके उत्तर और दक्षिण में मौजूद दो चेम्बर्स की पश्चिमी दीवारों से बनी है। दीवार से जुड़ा केंद्रीय कक्ष अभी भी अपरिवर्तित है जबकि शेष दोनों चेम्बर्स से छेड़छाड़ की गई।
ये सभी कक्ष चारों दिशाओं में खुलते थे लेकिन पश्चिम की ओर मौजूद मध्य, उत्तर और दक्षिण कक्षों के सुसज्जित मेहराबदार प्रवेश द्वारों को अवरुद्ध कर दिया गया है।
उत्तर और दक्षिण हॉल के धनुषाकार आर्क को छत की ओर जाने वाली सीढ़ियों में बदल दिया गया।
उत्तरी हॉल के मेहराबदार प्रवेश द्वार में बनी सीढ़ियाँ अभी भी इस्तेमाल में हैं। दक्षिणी आधे हिस्से के धनुषाकार प्रवेश द्वार में बनी सीढ़ियाँ छत पर पत्थर की चिनाई से अवरुद्ध कर दी गईं थीं।
अब ज्ञानवापी के सबसे महत्वपूँर ढाँचे - खंभे एवं स्तंभ (PILLARS & PILASTERS )
ASI के सर्वे में पाया गया है कि मस्जिद निर्माण और उसका आँगन तैयार करने के लिए मंदिर के खंभे और स्तंभों सहित पहले से मौजूद मंदिर के कुछ हिस्सों को थोड़ा-बहुत संशोधनों के साथ पुन: उपयोग किया गया था।
ज्ञानवापी के गलियारे में स्तंभों और स्तंभों के सूक्ष्म अध्ययन से पता चलता है कि वे मूल रूप से पहले से मौजूद हिंदू मंदिर का हिस्सा थे। मौजूदा संरचना में उनके पुन: उपयोग के लिए, कमलदल के दोनों ओर उकेरी गई 'व्याला आकृतियों' (Vyala Figure) को विकृत कर दिया गया।
ASI को सर्वेक्षण के दौरान, मौजूदा और पहले से मौजूद ढाँचों पर कई शिलालेख प्राप्त हुए। वर्तमान सर्वेक्षण के दौरान कुल 34 शिलालेख दर्ज किए गए और 32 स्टैंपिंग लिए गए।ये वास्तव में पहले से मौजूद हिंदू मंदिरों के पत्थरों पर शिलालेख हैं, जिनका मौजूदा ढांचे के निर्माण/मरम्मत के दौरान पुन: उपयोग किया गया है।
इनमें देवनागरी, ग्रंथ, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों में शिलालेख शामिल हैं। इन शिलालेखों में तीन देवताओं के नाम जैसे “जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर” पाए गए हैं। तीन शिलालेखों में उल्लिखित “महा-मुक्तिमंडप” जैसे शब्द बहुत कुछ कहते हैं।
एक पत्थर पर उत्कीर्ण एक शिलालेख में मुगल आतंकी औरंगजेब के 20वें शासनकाल में 1676-77 ईस्वी के अनुरूप मस्जिद का निर्माण दर्ज किया गया था। इस शिलालेख में यह भी दर्ज है कि 1792-93 ईस्वी में यहाँ मस्जिद की मरम्मत और आँगन निर्माण किया गया था। इस पत्थर के शिलालेख की तस्वीर वर्ष 1965-66 में ASI रिकॉर्ड में दर्ज की गई थी।
हाल ही में हुए सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद के एक कमरे से शिलालेख वाला यह पत्थर बरामद हुआ था। हालाँकि, मस्जिद के निर्माण और उसके विस्तार से संबंधित पंक्तियां स्पष्ट नहीं हैं।
यह बात औरंगजेब की जीवनी 'मासिर-ए-आलमगिरी' में भी दर्ज है, जिसमें कहा गया है कि औरंगजेब ने सभी प्रांतों के राज्यपालों को ‘काफिरों के स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने के आदेश जारी किए’
(स्रोत: जदुनाथ सरकार, मासिर-ए-आलमगिरी, पृष्ठ संख्या 51-52)।
जदुनाथ सरकार की पुस्तक 'मासिर-ए-आलमगिरी' के अनुसार, "यह बताया गया कि सम्राट (औरंगज़ेब) के आदेश के अनुसार, उनके अधिकारियों ने काशी में विश्वनाथ के मंदिर को ध्वस्त कर दिया था")
ASI के सर्वे, ज्ञानवापी के शिलालेख और सनातनियों की आस्था एवं इतिहास में दर्ज तारीख़ें इस बात की तस्दीक़ करती हैं कि ज्ञानवापी मंदिर पर मुग़ल आक्रांताओं द्वारा थोपी गई एक बर्बरता की निशानी थी।
वैज्ञानिक अध्ययन/सर्वेक्षण, वास्तुशिल्प अवशेषों, आकृतियों की सुंदरता कलाकृतियों, शिलालेखों, मूर्तियों के अध्ययन के आधार पर, यह कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले वहां एक हिंदू मंदिर मौजूद था।
ASI की विस्तृत रिपोर्ट में हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाओं को स्पष्ट देखा जा सकता है, उसके अलावा एक उदाहरण देखिए -
जैसे 'एसेट नंबर 187': यह एक मानव आकृति है और यह महिला की है। इसमें एक महिला आकृति को दर्शाया गया है जो हाथ जोड़े हुए है और उसका सिर कटा हुआ है। उसका हाथ अंजली मुद्रा में है। महिला के हाथ में चूड़ियाँ हैं। इसे भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।
एसेट नंबर- 112: ASI की रिपोर्ट में एसेट नंबर 112 एक योनिपट्ट है। ASI ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि 'यह एक गोलाकार पार्ट योनिपट्ट का है। यह शिवलिंग का गोलाकार हिस्सा है। जिस तरफ से यह खंडित हैं उस तरफ एक सांप की आकृति बनी है।
एसेट नंबर 189: यह नंदी जी की प्रतिमा है, जिसे क्षतिग्रस्त कर उसका सिर का हिस्सा तोड़ दिया गया होगा। यह ज्ञानवापी परिसर के पश्चिमी चेंबर में मिला है।
ना जाने कितने प्रमाण ज्ञानवापी से ASI को प्राप्त हुए हैं, इनमें भगवान शिव हैं, हनुमान जी की प्रतिमाएँ हैं और जिन्हें कुछ भी समझ ना आता हो वे यह भगवान श्रीराम के नाम का देवनागिरी में लिखा हुआ शिलालेख पढ़ सकते हैं।