राजस्थान सरकार प्रदेश की जनता को स्वास्थ्य का कानूनी अधिकार देने के लिए राइट टू हेल्थ बिल लागू करने जा रही है। विधानसभा सत्र में 'राइट टू हेल्थ बिल' पेश होने से पहले डॉक्टरों ने मोर्चा खोल दिया है। राजस्थान आईएमए ने डॉक्टरों के सुझाव को बिल में शामिल करने की मांग की है। प्रमुख चिकित्सा शिक्षा सचिव के साथ वार्ता में आईएमए ने डॉक्टरों का पक्ष रखा और बिल में सुझाव को शामिल करने की मांग की। उन्होंने चेतावनी दी है कि सुझाव को शामिल नहीं करने पर सरकार को तीखा विरोध झेलना पड़ेगा। आईएमए ने विरोध में रविवार को सुबह 8 से शाम 8 बजे तक चिकित्सा सेवाओं को सांकेतिक रूप से बंद का आह्वान किया गया है।
पिछले विधानसभा सत्र में इसे पेश भी किया था लेकिन प्रदेश के प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर इस बिल का विरोध कर रहे हैं। राइट टू हेल्थ के बिल को निजी अस्पतालों के डॉक्टर राइट टू किल बता रहे हैं। पहली बार बनाए जा रहे स्वास्थ्य का अधिकार कानून से प्राइवेट अस्पताल इलाज के लिए बाध्य हो जाएंगे। बिना किसी पेमेंट के इलाज के लिए बाध्य किए जाने पर निजी अस्पतालों के डॉक्टर इस बिल के विरोध में उतर आए हैं। डॉक्टरों के प्रतिनिधि मंडल ने बुधवार 18 जनवरी को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ वार्ता की और इस बिल में बदलाव करने के सुझाव दिए। अब डॉक्टरों की ओर से बताए गए सुझावों को प्रवर समिति को भेजे जाएंगे। प्रवर समिति इन सुझावों पर मंथन करेगी और उसके बाद इसे कानूनी रूप दिया जाएगा।
बिल में ऐसे क्या प्रावधान हैं जिन पर है विवाद
- बिल में निजी अस्पतालों में मुफ्त आपातकालीन इलाज करना अनिवार्य किया गया
- बिल में मेडिकल इमरजेंसी की कोई परिभाषा नहीं दी गई है
- सुविधा का लाभ उठाने के लिए मरीज लक्षणों को मेडिकल इमरजेंसी घोषित करेंगे
- बिल में मुफ्त आपातकालीन इलाज शुल्क प्रतिपूर्ति / भुगतान प्रक्रिया का उल्लेख नहीं
- निजी स्वास्थ्य प्रदाता, ऐसी सेवाओं की लागत को स्वयं वहन नहीं कर सकते हैं
- बिल में सभी प्रकार के चिकित्सा आपातकालीन रोगियों का इलाज करना अनिवार्य
- एमबीबीएस डॉक्टर प्रसूति या हार्ट अटैक के मरीज का इलाज कैसे करेगा
- सड़क दुर्घटना के मरीजों को मुफ्त परिवहन, मुफ्त इलाज और मुफ्त बीमा देना
- दूर-दराज के निजी अस्पताल कैसे एंबुलेंस की व्यवस्था करेंगे
- एंबुलेंस प्रदान करने के लिए राज्य सरकार की तरफ से एजेंसियों का कर्तव्य होना चाहिए
- उचित रेफरल और परिवहन में वाहन, उपकरण, दवाएं, प्रशिक्षित कर्मचारी की लागत आती है
- निजी अस्पतालों में मुफ्त ओपीडी और इलाज करना अनिवार्य
- राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण या जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण को शिकायतों की जांच करने की शक्तियां
- समिति में ग्राम प्रधान और अन्य स्थानीय प्रतिनिधि डॉक्टरों के खिलाफ पक्षपाती हो सकते है
- कार्यस्थल पर शारीरिक सुरक्षा और सुरक्षा का अधिकार नहीं
- सर्वोत्तम सेवाएं प्रदान करने के बाद भी प्रतिकूल परिणाम से सुरक्षा का अधिकार नहीं
- बिल में डॉक्टरों और अस्पतालों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की रोकथाम का कोई प्रावधान नहीं
- रोगियों और परिचारकों की तरफ से हिंसा के लिए कानून में सजा का प्रावधान नहीं
- तर्कहीन और अनुचित पैकेज दरें ठीक से गुणवत्तापूर्ण उपचार करना असंभव