यदि आप रेलवे स्टेशन पर हैं और वहां पर खाना तलाश रहे हैं तो ध्यान रखें कि प्लेटफार्म पर घूमने वाले युवकों से सोचसमझ कर ही पैक्ड फूड खरीदें। पैक्ड फूड ठण्डा, कुछ घंटों पुराना भी हो सकता है। जब तक आप रेलगाड़ी में चढ़कर इसे खाने के लिए इसे खोलेंगे, तब तक खाना बेचने वाले युवक दूर जा चुके होंगे और रेलगाड़ी भी प्लेटफार्म छोड़ चुकी होगी। ऐसे में आप उसी ठण्डे भोजन को खाने के लिए मजबूर होंगे। इतना ही नहीं, इस बात की शिकायत आप करना भी चाहेंगे तो नहीं कर पाएंगे क्योंकि उस पैक्ड फूड पर न तो किसी का नाम अंकित होता है न ही मूल्य।
एक ओर सरकार शुद्ध भोजन के लिए पूरे देश में एफएसएसआई कानून के तहत काम करती है। पिसे हुए मसालों को भी यदि पैक करके बेचा जा रहा है तो उस पर फर्म का नाम, पैकिंग का वक्त और कीमत अंकित करना अनिवार्य कहा गया है। लेकिन, रेलवे स्टेशनों पर मिलने वाला पैक्ड फूड बिना किसी ऐसी जानकारी के अंकन के बेखौफ बिक रहा है। खाना ठण्डा और कुछ घंटों पुराना पैक हो सकता है यह बात तो है ही, लेकिन यदि उस पैकेट की कीमत अंकित नहीं होने से यात्री से निर्धारित से ज्यादा कीमत लिए जाने की आशंका भी बनी रहती है। कुछ यात्रियों की मानें तो रेलवे स्टेशन पर कुछ युवक पैक्ड फूड की कीमत 100 से 200 रुपये तक भी बता देते हैं, यदि जानकार उनसे नियमानुसार रेट पर चर्चा करना शुरू करता है, तब वे ढीठाई पर और उतर आते हैं और कहते हैं लेना है तो यही है, वर्ना 30 रुपये में आगे रेहड़ी वाले से सब्जी पूड़ी मिल जाएगी। यदि उन्हें शक हो जाए कि अगला कोई ऐसा व्यक्ति है जो उन पर कार्रवाई कर सकता है, तब वे बहाना बनाकर इधर-उधर खिसक लेते हैं।
यह तो रेलगाड़ी के बाहर की बात है। कुछ यात्रियों का यह अनुभव भी सामने आया है कि रेलगाड़ी के अंदर पेंट्री कार का डाटा चोरी हो रहा है। आपने पेंट्री कार के कार्मिक को फूड लाने का ऑर्डर दिया है तो इस मुगालते में न रहें कि फूड लाने वाला पेंट्री कार का ही होगा, क्योंकि कुछ यात्रियों का कहना है कि फूड देने वाला आया और उसने पूछा कि आपका ऑर्डर था, तो उन्होंने फूड लेकर पैसे दे दिए, कुछ ही देर में दूसरा वही व्यक्ति आया जिसे उन्होंने ऑर्डर दिया था, तब वह व्यक्ति खुद आश्चर्य करता है कि उसके बजाय आपको कौन फूड दे गया। रेलवे को इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत आन पड़ी है।
यात्रा के दौरान इस ठगी का शिकार हो जाने के बाद कौन अपनी यात्रा रोककर इसकी कार्यवाही करने की सोचेगा। यदि कोई सोच भी ले और ऐसे बंदों को तलाशने के लिए सीसीटीवी के भरोसे कितनी देर कोई ठहर सकता है। यदि ऐसे लोगों की पहचान हो भी जाए तो वे यह जवाब देकर बच निकल सकते हैं कि उन्होंने बेचने के लिए नहीं, बल्कि अपने साथी यात्रियों के लिए ही पैक्ड फूड खरीदे थे।
वैसे रेलवे अपनी सेवाओं के लिए फीडबैक लेता रहता है, लेकिन पैक किए हुए खाने को लेकर किसी को शिकायत करनी हो तो टोल फ्री नंबर नहीं मिल पाता। रेलवे इस सम्बंध में शिकायत के लिए अधिकृत टोल फ्री नंबर भी उन फूड पैकेट पर अंकित करवाना अनिवार्य कर दे तो यात्री उसी समय उस पर अपनी पीड़ा बता सकता है।
इन परिस्थितियों में रेलवे को एफएसएसआई नियमों को ही सख्ती से लागू करना होगा। जब सामान्य बाजार में सूखे माल भी एफएसएसआई फर्म, पैकेजिंग डेट, दर, वेज/नॉनवेज के संकेत आदि के नियम लागू करता है, तब रेलवे में पके-पकाये खाने के पैक पर यह क्यों लागू नहीं हो सकता। इससे न केवल रेलवे के फूड की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि यात्री 60 रुपये की चीज के दो से चार गुना पैसे देकर ठगाने से बचेगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)